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Sunday, August 9, 2009
तय करो किस ओर हो तुम
आज देश का हाल सभी जानते हैं ,शायद इतना बुरा हाल पिछले हजारों सालों में भी नहीं रहा जब कि हम परतंत्र भी हुए पर अपनी मानसिकता को कभी गुलाम नहीं होने दिया ,आज ,आज तो हम मानसिक रूप से ही गुलाम हो गए ,कोई बात ग़लत हो रही है और हमें पता है कि ग़लत है समाज के प्रति इसका प्रभाव बुरा होगा फ़िर भी हम मानसिक गुलामी के कारण निर्लज्जता से उसको सही ठहराने के प्रयास करते हैं ऐसा ही असुर करते थे । जैसे रावण ने अपनी बहन सूर्पनखा से ये नहीं पूछा कि वह क्यों वहां(राम -लक्षमण के पास) अपने राक्षसी चरित्र का बखान व जबरदस्ती करने गई थी बल्कि वह उल्टा राम को ही ग़लत बताता है वही आज होने लगा है । आज भी नहीं पूछा जा रहा ।इस स्थिति को सुधारने का बहुतों ने प्रयास किया कुछ हद तक सफल भी रहे और देवासुर संग्राम चलता रहा ,लेकिन अब लग रहा है कि स्वामी रामदेव के द्वारा इसमें निर्णायक तरीके से प्रहार किया जाएगा जितनी शक्ति और जनसमर्थन उन्होंने देवत्व के पक्ष में कर लिया है उसे देख कर लगता है कि अब असुरत्व को झुक कर रहना पड़ेगा, समाप्त तो नहीं होगा क्योंकि समाप्त कुछ होता ही नहींहै । इसलिए तय करो किस और हो तुम ।
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तय किया हुआ है। हम मजलूमों के साथ हैं।
ReplyDeleteसाथियों की टिप्पणी से लगता है कि उन्हें यह गलतफहमी हुई है कि यह कविता बाबा रामदेव के बारे में है। ऐसा नहीं है। यह कविता पानीपत में जीटी रोड पर स्थित बाबा के ढाबे के बारे में है। काम करते-करते कभी देर हो जाती थी तो हम लोग इसी पर खाना खाने जाते थे, क्योंकि यह रात भर चलता था। बाद में जीटी रोड जब सिक्स लेन होने लगा तो यह ढाबा हटा दिया गया। ढाबा के मालिक करीब साठ साल का था। उसने शादी नहीं की थी। उसके पास कई तरह के किस्से थे, जिन्हें वह हम जैसे लोगों को जिनसे अक्सर आने से जान पहचान हो गई थी, सुनाता था। या अपने कारिंदे लड़कों को सुनाता था। यह उसीपर आधारित कविता है। यह कविता रोचक बनी तो ब्लॉग पर डाल दी।
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