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Saturday, July 25, 2009

सच का सामना

हाँ सच का सामना अवश्य करना चाहिए ,
मनुष्य, आरम्भ में तो नंगा ही था , (पशुओं की तरह)
वस्त्रों की आवश्यकता क्यों पड़ी ? ये जानना चाहिए ।
करता था जीवन-यापन वनों में ,(वन्यजीवों की तरह )
सामाजिक बंधन की आवश्यकता क्यों पड़ी ? ये जानना चाहिए ।
रह सकता था मनुष्य भी अकेला ,(किसी हिंस्र पशु की तरह)
पारिवारिक मर्यादाओं की आवश्यकता क्यों पड़ी ? ये जानना चाहिए ।
पारिवारिक मर्यादाएं कम न थी , (हिन्दुस्तान में )
सामाजिक मर्यादाओं की आवश्यकता क्यों पड़ी ? ये जानना चाहिए ।

अरे, सच जानने वालो ये भी सच है, कि हम कुछ भी "खाद्य" खाएं ,
वह मल ही बनेगा ,इसका मतलब ये तो नहीं कि ,मल ही खाना चाहिए ।

4 comments:

  1. वाह शंकर भाई, क्या बात कही है… सचमुच आज "खुलेपन के हिमायती" मल खाने को उतारू हो रहे हैं…

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  2. sach kaa saamanaa kryakram ke baare me likha rahaa hoo हो सकता है कुछ समय बाद यह सुनने को मिले कि जो कुछ भी कार्य क्रम मे प्रस्तुत किया जाता है उसकी रिहर्सल की जाती है सवालो की भी और जवाबो की भी इसके सम्वाद लिखे जते है और प्रस्तुतकर्ता और प्रतिभागी के परिवार के सदस्य उससे वाकिफ रहते है तभी तो परिवार् के सदस्य हर उत्तर पर

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