रीता बहुगुणा जोशी बनाम मायावती दोनों में झगड़ा शुरू, बड़ा मजा आएगा, अभी तक वोटों के लिए और अपने कार्यकर्ताओंकी संख्या बढ़ाने के लिए नेता, दिखावे के तौर पर लड़ते थे। अंग्रेजों के समय से ये परम्परा चली आ रही है।हमारी आजादी के " स्वयंघोषित , एकलौते नेता और पार्टी वाले" बाहर अंग्रेजों का डटकर विरोध(दिखावा) करते थे संसद में उनकी जी हजूरी करते थे। बाहर आम जनता इन्हें देख कर ज्यादा जोश में आ जाती थी और पिटती थी या मरती थी ये अहिंसावादी बन कर जेलों के अन्दर शरण लेलेते थे।
यही आज के नेता करते आ रहे थे ,इनके दिखावे के कारण कार्यकर्ता आपस में खूनखराबा तक कर
देते हैं, पर ये सचमुच की लड़ाई है। मजा तो आएगा ही। अब हम तो आम आदमी की श्रेणी के आदमी हैं कोई पार्टी वाले होते तो दो बंदरों की लड़ाई में बिल्ली के फायदे वाली बात सोचते। कार्यकर्ताओं को भी अब तटस्थ हो जाना चाहिए ,क्या है कि जमाना बदल गया है, क्या पता कल को ये पार्टी छोड़ कर वो पार्टी पकड़नी पड़े । ऐसे में थोडी बहुत शर्मिंदगी तो होती ही होगी,स्वयं न भी हो तो मीडिया वाले करवा देते हैं।
वैसे टक्कर में बराबरी नहीं लगती एक मुख्यमंत्री दूसरी प्रदेश अध्यक्ष, अब देखना ये है कि कांग्रेसी (विशेषकर हाईकमान)इस लड़ाई को बराबरी का बनाने के लिए अपनी नेता का कितना साथ देते हैं।
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