आस्ट्रेलिया पिछले कुछ समय से नस्लवाद का केन्द्र बनता जा रहा है।
इसका नमूना हम क्रिकेट में भी यदा-कदा देखते रहते हैं।
दरअसल आस्ट्रेलियाईयों की ये गलत फहमी कि, वे सर्वश्रेष्ठ हैं, और जब ये बात ग़लत साबित
होती है उनकी आक्रामकता को बढ़ाती है। जिसे हम कहते हैं “खिसियानी बिल्ली खम्बा
नोंचे”और जब खम्बा नोंचने से भी काम नहीं चलता तब वह झपटने
लगती है। पर ऐसे में कुछ भारतीय छात्रों की जान पर भी बन आई, जो
काफी दुखद है। भारतीय शांत और सरल होते हैं , ये सही है। पर,
भारतीय आक्रामक भी होते हैं, और जब आक्रामक होते हैं तब आस्ट्रेलिया वाले
केवल अपने बाल नोंचते हैं और कुछ नहीं कर पाते। ये सिद्ध किया है ,
हरभजन सिंह ने , (क्रिकेट मैदान में)
वैसे घर छोड़ कर जाने वाले का बाहर कम ही सम्मान होता है
या,घर से पूरी आड़ हो ,जैसे “बड़े घर से आई बहू और छोटे घर से आई बहू”
तो, मेरी सरकार,(भारत) आक्रामक बनो ,हरभजन की तरह (पूरी क्रिकेट टीम को आईना दिखा दिया था)। और भारतवासियो दूसरे के पेड़ पर -अपने पेड़ से ज्यादा आम देखने से
ऐसा ही होता है। अपने देश में भी तो सब कुछ है, उस पर संतोष करो, दूसरे के
पेड़ से आम तोड़ने जाओगे तो डंडा तो मारेंगे ही।
यही गलतफ़हमी हमें भी तो है, कि हम भारतीय सर्वश्रेष्ठ हैं.
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट से भी यही दंभ झलक रहा है।
दंभों के बीच में तो प्रभु लडा़इयां ही नियति है।
आपकी दूसरी सीख में दम है, दूसरों के पेड़ से आम....