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Wednesday, June 17, 2009

राज मार्ग की दुर्घटना

घटना- घटते ही ये लोग, दुर्घटना की जबरदस्त आवाज के साथ दौड़ पड़ते हैं ,घटना स्थल पर आते ही ये सबसे पहले बिखरे पड़े कीमती सामन पर छीना-झपटी करते हैं, घायल और मरने वालों के शरीरों से
भी गहने और नकदी निकाल लेते हैं,घायलों की कराहों की तरफ़ उनका ध्यान बिल्कुल


हम रोडवेज की बस से सफर कर रहे थे जैसे ही टोल रोड पर मुड़े एक राहत की
साँस ली, कि दस-बारह किलोमीटर का रास्ता बिना ब्रेक के पार हो जाएगा और स्पीड
भी अच्छी रहेगी लेकिन कुछ आगे चलने पर जैसे ही बस ने गति पकड़ी,
अचानक से कई सारी भैंसें लगभग दौड़ती हुयी सड़क पर आ गयीं।
चालक ने किसी तरह संभाल लिया, और गुस्से में भैसों के पीछे आ रहे
आदमी को गाली देकर आगे बढ़ गया ,एक बार तो बस में बैठे प्रत्येक
सवार की धड़कन तेज हो गई थी। हमारे चालक ने तो संभाल लिया ,
पर कभी-कभी इन टोल रोडों पर किनारे से अचानक कोई ट्रेक्टर वाला
या कोई बुग्गी(भैंसा गाड़ी) वाला बिना अपनी या दुसरे की परवाह किए
बीच में आ जाता है जिससे सीधे चलने वाले चालक के लिए संभालना
मुश्किल हो जाता है, और दुर्घटना घट जाती है, छोटी गाड़ियों के तो
परखच्चे उड़ जाते हैं। अक्सर ऐसी ख़बर समाचार-पत्र में पढ़
कर इन राजमार्गों की कमी पर मन दुखी होता है,और कमी यही है कि इनके
किनारे से कहीं से भी अचानक कोई ट्रेक्टर,भैसा गाड़ी,या भैसें ही सही
घुस आते हैं जिससे बड़ी दुर्घटना हो जाती है। उसके बाद का नजारा समाचारों
में पढ़ कर तो मन, स्थानीय लोगों (ग्रामीणों ) की अमानवीयता के प्रति घृणा
से भर जाता है।घटना घटते ही ये लोग दुर्घटना की जबरदस्त आवाज के साथ दौड़ पड़ते हैं ,घटना स्थल पर आते ही ये सबसे पहले बिखरे पड़े कीमती सामान पर छीना-झपटी करते हैं, घायल और मरने वालों के शरीरों से
भी गहने और नकदी निकाल लेते हैं,घायलों कि कराहों की तरफ़ उनका ध्यान बिल्कुल भी नहीं जाता, यहाँ तक कि वे रोते हुए बच्चों तक को नहीं उठाते
नोचने- खसोटने में उस समय ये चील- कौओं की तरह नजर आते हैं।
ये हमारे ग्रामीण समाज की मानवीयता का नजारा है ।
उस दृश्य को सोच कर तो ऐसा
लगता है कि जैसे ये ट्रेक्टर ट्रौलियाँ जानबूझ कर तो बीच में नहीं लायी जाती,क्योंकि
ये भारी सामान से भरी होती हैं,इनसे टकरा कर छोटी गाड़ियों के तो परखच्चे
उड़ जाते हैं पर इनका कुछ नहीं बिगड़ता। जब तक अन्य लोग या पुलिस वाले आते हैं
तब तक मेरे देश के वीर जवान घायलों व मुर्दों को नोच चुके होते हैं।
ईश्वर न करे कि ये हाल सभी जगह का हो,टोल रोड के बनाने वालों को भी ये समझना चाहिए कि जिस गति से उस पर वाहन चलने के लिए उन्हें बनाया
गया है उसके लिए उसमे ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि कोई भी अचानक बीच में न घुस सके । दुर्घटना के बाद जहाँ ग्रामीणों को मौका नहीं मिलता वहां पुलिस वाले
नोच लेते हैं। नाम ग्रामीणों का लगा देते हैं
। दोनों ही बातें अमानवीय हैं।
“राष्ट्रिय राजमार्ग”साधारण मार्ग से कुछ अलग सा अहसास कराते हैं।
अब तो इन पर कहीं-कहीं टोल रोड बन गई है ,जिससे गाड़ी चलाने का मजा
वाकई बहुत बढ़ जाता है। हलाँकि ये उतने अच्छे नहीं कहे जा सकते
जैसे विदेशों के सुने हैं ,फ़िर भी साधारण मार्गों से ये ज्यादा अच्छे
और कम भीड़-भाड़ के लिए जाने जाते हैं। पर ये कमी इन पर काला धब्बा लगा देती है जिस समय इस तरह का दृश्य पढ़ा तो वह गाना याद आ गया
" ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का इस देश का यारो क्या कहना "।

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