“लोग हड़ताल क्यों करते हैं”
मैंने कहा बेटा जब किसी को उसके अधिकार नहीं मिलते और सरकार कुछ सुनती नहीं तो तब वे हड़ताल करते हैं।
मैंने कहा बेटा जब किसी को उसके अधिकार नहीं मिलते और सरकार कुछ सुनती नहीं तो तब वे हड़ताल करते हैं।
लेकिन साहब नया ज़माना है,बच्चे केवल कार्टून ही नहीं देखते कभी-कभी समाचार भी देख लेते हैं, मेरा लड़का झट से बोला कि ,
पर पापा ये तो सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल है,
इन्हें तो सरकार ने ही सब कुछ दिया हुआ है,ये फ़िर भी सरकार
के खिलाफ हड़ताल करते हैं। मैंने अपने दिमाग में फ़िर कुछ सोचा और बोला
कि बेटे सरकारी नियमों के अनुसार इन्हें कुछ और मिलना चाहिए जिसे देने
में सरकार देर करती है,तब ये हड़ताल करते हैं। तो ये सरकार कि नौकरी छोड़
क्यों नहीं देते। जहाँ अच्छी नौकरी मिले इन्हें वहां नौकरी करनी चाहिए ।
पर बेटा सरकार ने ही तो इन्हें हड़ताल करने का अधिकार दे रखा है।
ये तो ग़लत दिया है। इससे जनता को कितनी परेशानी होती होगी ,
के खिलाफ हड़ताल करते हैं। मैंने अपने दिमाग में फ़िर कुछ सोचा और बोला
कि बेटे सरकारी नियमों के अनुसार इन्हें कुछ और मिलना चाहिए जिसे देने
में सरकार देर करती है,तब ये हड़ताल करते हैं। तो ये सरकार कि नौकरी छोड़
क्यों नहीं देते। जहाँ अच्छी नौकरी मिले इन्हें वहां नौकरी करनी चाहिए ।
पर बेटा सरकार ने ही तो इन्हें हड़ताल करने का अधिकार दे रखा है।
ये तो ग़लत दिया है। इससे जनता को कितनी परेशानी होती होगी ,
खैर … बच्चा उसके बाद बेशक चुप हो गया पर मेरे मन में कई सवाल
घूमने लगे कि वास्तव में अगर हमारी जरुरत सरकार पूरी नहीं कर रही तो
क्यों न हम दूसरी जगह नौकरी करें जहाँ हमें वो सब कुछ मिले जो
सरकार नहीं दे रही । क्या सरकारी नौकरी की चाह केवल इसलिए नहीं है कि
उसमे ये दामाद की तरह आराम करते हैं,साल में ३६५ दिन वो भी २४ घंटे वाले,
इनकी नौकरी ५ से सात घंटे की ,मतलब साल का तिहाई हिस्सा (लगभग) ,
यानि १२२ दिन, जिसमे से जिनकी साप्ताहिक दो छुट्टियाँ होती हैं १०४ दिन
तो छुट्टियों में गए और त्यौहारों के लिए अलग,हारी-बिमारी व
आवश्यक कार्य के लिए अलग छुट्टियाँ निर्धारित हैं।
घूमने लगे कि वास्तव में अगर हमारी जरुरत सरकार पूरी नहीं कर रही तो
क्यों न हम दूसरी जगह नौकरी करें जहाँ हमें वो सब कुछ मिले जो
सरकार नहीं दे रही । क्या सरकारी नौकरी की चाह केवल इसलिए नहीं है कि
उसमे ये दामाद की तरह आराम करते हैं,साल में ३६५ दिन वो भी २४ घंटे वाले,
इनकी नौकरी ५ से सात घंटे की ,मतलब साल का तिहाई हिस्सा (लगभग) ,
यानि १२२ दिन, जिसमे से जिनकी साप्ताहिक दो छुट्टियाँ होती हैं १०४ दिन
तो छुट्टियों में गए और त्यौहारों के लिए अलग,हारी-बिमारी व
आवश्यक कार्य के लिए अलग छुट्टियाँ निर्धारित हैं।
सोच लो, कि आख़िर ये कितना काम करते हैं ।
हड़ताल से जनता के साथ अन्याय होता है सरकार का कुछ नहीं बिगड़ता।
जब तक खाली पेट थे (नौकरी नहीं थी) तो कार(कार्य) चाहिए था।
जब पेट भर गया (नौकरी मिल गई) तो,अधिकार(ज्यादा से ज्यादा) चाहिए।
हड़ताल से जनता के साथ अन्याय होता है सरकार का कुछ नहीं बिगड़ता।
जब तक खाली पेट थे (नौकरी नहीं थी) तो कार(कार्य) चाहिए था।
जब पेट भर गया (नौकरी मिल गई) तो,अधिकार(ज्यादा से ज्यादा) चाहिए।
और उसके लिए हड़ताल करना हमारे सरकारी कर्मचारियों का संविधान सम्मत
अधिकार है। वरना आम आदमी तो यही सोचता है कि ये नौकरी छोड़ क्यों नही
देते ,बहुत लम्बी लाईन लगी है बेरोजगारों की ।
सच कहा आपने दुःख तो ये है की ये अब एक स्थापित परंपरा बनती जा रही है..सामयिक क aऔर सार्थक लेख के लिए धन्यवाद..
ReplyDeleteएक विचारणीय आलेख.
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