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Monday, June 8, 2009

पर्यावरण

पर्यावरण के लिए आज सभी चिंतित हैं ।
बुद्धिजीवी का काम तो है ही चिंतित होना ,
और कुछ नहीं कर सकता, पर चिंतित जरुर हो सकता है।
सो , होता ही है ।
सरकार का काम चिंतित होने के साथ-साथ कुछ करने
का भी होता है । जिसके लिए हमारी सरकार कदम उठाने
की बात कह कर कदम रखना भूल जाती है । जबकि ये मुद्दा
आर्थिक मंदी से ज्यादा गंभीर है । (क्योंकि पीने के पानी की कमी होने लगी है )।
स्वयं सेवी संस्थायें अपनी मीटिंगों में ही पुरा बजट खर्च
कर देती हैं । धरातल पर केवल विज्ञापन ही नजर आते हैं ।
न्यूज चैनल वाले तो केवल वही मुद्दे अपने चैनलों पर दिखाते
हैं जिनसे कमाई होती है ।( वोट दो कैम्पेन की तरह )
जनता; जो सामान्य है, वो तो अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करने में ही
व्यस्त है, जो विशेष है वो नई गाड़ियों व नए फ्लैटों को खरीदने
में व्यस्त है । युवा बाईकिंग करने में मस्त हैं।
उद्योगपति; अपने लिए सेज की जमीन का इंतजाम कराने के लिए नेताओं को
उपाय बता रहे हैं।( कृषि भूमि पर उद्योग लगना है)।
पर; ये कोई नहीं समझ रहा की ये प्रकृति बचेगी तभी कुछ होगा
वरना ;प्रकृति अपने को बचाने के लिए जो कुछ करेगी उसमे सभी
लपेट में आयेंगे । अभी तो निरीह तोते व अन्य प्राणी खामियाजा भुगत
कर हमें चेतावनी देते रह रहे हैं। (नदियाँ सूख रहीं हैं )।
पर लगता नहीं कि कोई समझ रहा है। वैज्ञानिक केवल कारण बता सकते हैं।

हमारा काम भी टेंशन पैदा करना ही है, और कुछ नहीं कर सकते । शायद किसी को चिंता हो जाए ।

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