हमारे फोटो वाले
'भुला (छोटे भाई) हिरोईनों के फोटो छपने से अखबार ज्यादा बिकता है', अरे! भैंस की मुस्कान के साथ फोटो छपेगा तो मेरा दावा है कि तब भी अखबार ज्यादा बिकेगा, कभी भैंस का फोटो, कभी गधी का फोटो, कभी …. . रोजाना नए-नए फोटो मिलते रहेंगे व्यापार चलता रहेगा । दाज्यू “थोड़े नंगे” बदन चित्रों को छापने से अगर अखबार ज्यादा बिकता है तो भैंस-गाय,गधी-घोड़ी, कुतिया-बिल्ली आदि-आदि तो बिलकुल कपडा नहीं पहनते, उनके फोटो क्यों नहीं छापते…?'कैसी बात करते हो यार भैंस भी कभी हंसती है क्या' ? क्यों नहीं हंसती होगी ? जब उसके आगे बीन बजाते हैं तो जरुर हंसती होगी कि ये कैसे मूर्ख हैं मेरे आगे बीन बजा रहे हैं; और फिर खोजी पत्रकारिता का दम क्यों भरते हो, भैंस की मुस्कान खोजो ना !
पहले तो नंगे बदन, उस पर मुस्कान ! “मज़बूरी में मानना” पड़ रहा है (“ बेशर्मों का जमाना” है ना), वर्ना थोडा सा पल्लू सरकते ही शर्म आती तो हम आज भी देख रहे हैं। पर जिन्हें शर्म नहीं आती वो “जानवर बन गए” जिन्हें शर्म आती थी उनके लिए “कपड़ों का अविष्कार हुआ.”…. मैं दाज्यू को बता ही रहा था कि वह एक दम “भर गए” अच्छा भुला; 'इस बारे में बाद में बात करेंगे' कह कर चल दिए। अब; हमें खाली होना था; तो हमने सब कुछ “ब्लॉग पर उंडेल दिया” और खाली हो गए।tensionpoint.blogspot.com/bhrashton ko kaise raas aa sakta hai aisa rashtrvaad
सही फिट किया दाज्यू (पत्रकार) को.
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