तो दिल्ली
फिर विज्ञापनों का फायदा ही क्या ? जो बोला या लिखा या दिखाया जाये; अगर सच ना माना जाये तो।
भई हम तो विज्ञापन आधारित जीवन जी रहे हैं, पानी भी पीते हैं तो विज्ञापन पर विश्वास करके पीते हैं । कई विज्ञापन बूढ़े को जवान बनाने के आते हैं, आज तक कोई बूढ़ा जवान नहीं हुआ पर फिर भी लोग भरोसा करते हैं। अब बताओ अंतर्वस्त्रों में कोई सुंदरी या सुन्दरा खुले में निकल जाये तो उसका आत्मविश्वास बढेगा या शर्म आएगी ? पर विज्ञापनों में उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। हम विज्ञापनों पर भरोसा करते है क्योंकि वो बार-बार दीखते हैं और बार-बार जो बोला या दिखाया जाये वह सच हो जाता है चाहे झूठ हो। जैसे "भारत आजाद है" इतनी बार बोला
इसी तरह दिल्ली को
"इसलिए दिल्ली पाकिस्तान में बार-बार दिखाओ , सच में हो जायेगी ! " हा-हा-हा आप भी कडवे सच बोल देते हो मेरी तरह ! जब पाकिस्तान का सैनिक अधिकारी हमारा आइकॉन हो सकता है, तो दिल्ली पाकिस्तान में क्यों नहीं ?
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