“भ्रष्टाचारी, बलात्कारी, मिलावट खोर और हत्यारा, इन को चौराहे पर फांसी दे देनी चाहिए; ये चाहे नेता हो ; बड़ा अधिकारी हो; या सामान्य व्यक्ति हो, कोई हो;उसे छूट नहीं मिलनी चाहिए”। ‘आज से सात-आठ साल पहले जब मैंने टेलीविजन पर ये वाक्य सुने, तो ध्यान से सुनने लगा,देखा; आस्था चैनल पर मंच बना था; एक बाबा जी बैठे बोल रहे थे । उनके आगे विशाल मैदान में भारी जनसमुद्र बैठा उनको बड़े ध्यान से सुन रहा था। बाबाओं के मुहं से ऐसी बातें सुनने का अभ्यास नहीं था, आध्यात्मिक प्रवचन के स्थान पर 'ये' "बाबा जी" क्या बोलने लगे। क्या ये अध्यात्म का ही विषय है; या कोई और बात है; सोच कर उसी चैनल पर रुक गया।
तो , देखा सामने बड़े मैदान में बैठे जनसमुद्र को पुचकारते हुए बाबा जी कह रहे थे, "कर लो – कर लो; बस पांच मिनट और, थक गए तो धीरे-धीरे कर लो तभी फायदा होगा,बी.पी. हाई हो, लो हो, माइग्रेन हो, वजन बढ़ा हो; शारीर में कोई भी बीमारी हो सब ठीक होगी,अभी आपको एक्यूप्रेसर के पॉइंट भी बताएँगे, देखो भई करना तो तुम्हें ही पड़ेगा, बाबा के करने से थोड़े ही तुम्हें लाभ होगा। निरंतर करो खाली मत बैठो, बस पांच मिनट और; अनुलोम-विलोम, फिर भ्रामरी,उद्गीत और प्रणव जप’।
उसी के बीच-बीच में उपरोक्त विचार भी बाबा जी बोल रहे थे,जैसे"ठंडा मतलब-टॉयलेट क्लीनर,इसकी जगह तुम्हारे फ्रिज में नहीं; बाथरूम में है। जरा एक ढक्कन डाल के देखना कैसे तुम्हारे टॉयलेट को साफ करता है। इसमें जहर है; ये तुम्हारी हड्डियों को गलाता है; दांतों के लिए बहुत खतरनाक है। इसको खरीदने से देश का पैसा बाहर जाता है। इसलिए इसे कभी मत पीना... नीम्बू पियो, छाछ पियो, अपनी देशी चीजें क्या कम हैं पीने के लिए....., अरे ! सादा पानी पियो ना;प्यास तो उसी से बुझेगी"।ये सब देख-सुन कर पहली नजर में बाबाजी की बातो में नयापन लगा। उसके कुछ दिन बाद समाचार पत्रों में पढ़ा(टी.वी.में नहीं देखा) , कि “ऐलोपेथी को शीर्षासन करा दूंगा बाबा रामदेव ने कहा” समाचार था; कि हमरे पौराणिक ग्रंथों में रोगों से स्वस्थ होने-रहने के उपाय दिए गए है, जिन्हें हम भूल गए थे और अब बाबा जी ने पा लिए हैं; जिससे वह सफलतापूर्वक रोगों का उपचार कर रहे हैं । हालाँकि शीर्षासन करने की बात, पत्र- पत्रिकाओं ने बढ़ा-चढ़ा कर लिख दिया था; ऐसा कुछ दिन बाद बाबाजी से सुबह आस्था चैनल पर सुना।
तो; बाबा जी को प्रतिदिन देखना मेरा कार्यक्रम बन गया कभी-कभी शाम को भी देख लेता था,पहले एक दिन पुराना कार्यक्रम दिखाया जाता था । एक तो अपने पौराणिक ग्रंथों पर आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके से सोचने का मेरा "अपना दृष्टिकोण", फिर बाबा जी के द्वारा “प्राणायाम” को भी “रोगों”को ठीक करने के लिए तर्कों के साथ विज्ञान सिद्ध करना। ‘ये बाबा जी’ अन्य बाबाओं,संतों, महाराजों से कुछ ‘हट के’ लगे; और प्रभावित करने लगे। ये सन 2004 की बात है |
लोगों को गंभीर बिमारियों से ठीक होते देख कर बाबाजी की ख्याति बढती गयी। बाबा जी ने योग शिक्षक बनाने शुरू कर दिए,पर शर्त थी कि जिस पर कोई जिम्मेदारी ना हो या पचास-साठ साल से ज्यादा का हो वह योग शिक्षक बने। जाहिर है, अपना' नंबर नहीं आना था। पर बहुत बड़ी संख्या में लोग योग शिक्षक बनने लगे। बाबा जी का अभियान बहुत तेजी से बढ़ने लगा । पहले बाबाजी विदेश जाने से मना करते थे; 'कि जब तक भारत में बीमार हैं विदेश नहीं जाऊंगा। पर विदेश में ख्याति विस्तार पा चुकी थी। इसलिए जाना पड़ा , इसी बीच आस्था चैनल पर भी सीधा प्रसारण की व्यवस्था हो चुकी थी; और संसार के एक सौ सत्तर देशों में विस्तार पा चुका था, जिससे स्वामीजी पूरे संसार में प्रसिद्द हो गए। करोड़ों अनुयायी, लाखों सदस्य हो गए, क्योंकि बाबा जी कहते हैं "जो प्राणायाम सीख गया वह औरों को सिखाये, कम से कम सौ जनों को सिखाना ही गुरु दक्षिणा समझे"; सब को योग के लिए प्रेरित करे। इन सब में गुणात्मक रूप से विस्तार हुआ।
और विस्तार हुआ बाबा जी के प्राणायाम सीखने से ठीक हुए गंभीर रोगियों की संख्या का, लाखों की संख्या में लोग शिविरों में जुटने लगे, जिससे लगा लोग स्वस्थ होना चाहते हैं;और एलोपैथी में उनके रोग दूर करने की सामर्थ्य नहीं है। तात्कालिक उपचार के लिए तो बेशक एलोपैथी कारगर है; या रोगों की पहचान (निदान)में भी ये कारगर हैं। पर रोग के लिए जीवन भर दवा खाते रहने के आलावा एलोपैथी के पास शायद कोई उपचार नहीं हैं। ये भी हो सकता हैं कि अपनी दवाओं की बिक्री के लिए दवा निर्माता कंपनियों ने षड्यंत्र के तहत इस तरह की व्यवस्था ही बना दी, कि लोगों की मानसिकता ही हो गयी; कि कोई रोग हो गया तो डॉक्टर की सलाह पर जीवन भर दवाईयाँ खाने की मज़बूरी ही हैं। उन दवाइयों के दुष्परिणाम भी भुगतने ही पड़ेंगे। ये षड्यंत्र ही हो सकता है; वरना आयुर्वेद जैसी जीवन पद्दति 'जिसमे रोगी होने से बचना, ही बताया गया है'; क्यों लोग भूलते ? तो षड्यंत्र के तहत ही लोगों की जीवन चर्या बदल दी गयी। सुविधा के नाम पर, सबकुछ रेडीमेड उपलब्ध करवा दिया, विज्ञापनों ने बड़ी बेशर्मी से लोगों का 'ब्रेन वास' किया जिससे भारत वासी अपने ज्ञान-विज्ञान को भूल गए। खैर...... ।
बाबा जी की ख्याति गुणात्मक रूप से बढती रही। बाबाजी की योजनाओं का विस्तार होने लगा बड़े-बड़े लोग स्वामी जी के साथ जुड़ने लगे बड़े-बड़े डॉक्टर, इंजिनियर,उद्योगपति, साधारण जन सभी बाबाजी को चाहने लगे।
आयुर्वेदिक दवाएं बाबाजी पहले से ही बनाते थे; "आचार्य बालकृष्ण जी " जैसे आयुर्वेद के ज्ञाता 'मैं समझता हूँ वर्तमान में आयुर्वेद के क्षेत्र में उनसे अधिक ज्ञानी कोई नहीं होगा' जड़ी-बूटी, वनस्पति और चिकित्सा तथा पतंजलि योग पीठों की स्थापना, सब कुछ में "आचार्य बालकृष्ण" का कार्य; "योजनाओ" को मूर्त रूप देना था। दवाओं की फैक्ट्रियां विस्तार पाने लगीं। इसी बीच एक कम्युनिष्ट नेत्री पतंजलि योग पीठ से तकरार कर बैठी पर सफल नहीं हो पाई। दवाओं को बदनाम करने के प्रयास हुए; मिलावट बताई गयी महंगा बताया गया पर सब बेकार। दरअसल लोगों का विश्वास स्वामी जी पर पक्का हो गया था, उलटे उन विवादों का लाभ ही अधिक मिला , और बाबाजी मुखर होते गए। विरोध को अपनी ताकत बनाते गए।
मनुष्यों की बीमारी ठीक करते-करते स्वामीजी को देश में व्याप्त बुराईयों;भ्रष्टाचार,कुसंस्कृति,अपराध-आतंकवाद ने परेशान कर दिया। हालाँकि शुरू से ही बाबा रामदेव जी भ्रष्टाचार,कुसंस्कृति , कुविचार अन्य जो भी बुराईयाँ और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की मनमानी पर बड़े जोरों से अपने शिविरों में कुठाराघात करते थे। शाकाहार के लिए जिस तरह से लोगों को बाबाजी प्रेरित करते हैं, शायद ही कोई दोबारा मांसाहार करता हो। कोल्ड-ड्रिंक और अंडे के लिए तो बाबाजी ने अपने नारे ही गढ़े हुए हैं ;"ठंडा मतलब-टॉयलेट क्लीनर, सन्डे हो या मंडे कभी ना खाना अंडे "। शराब ,बीडी-सिगरेट,तम्बाखू-गुटखा जैसी चीजें बाबाजी अपनी झोली में डालने के लिए कहते हैं मतलब,इन्हें छोड़ने का आह्वान करते हैं ।
बाबाजी का जो भी आन्दोलन चला वह जनता के बीच में जनता के सहयोग द्वारा ही चला, स्वामीजी वैसे बेशक मीडिया को अपना शुभचिंतक बताते हों पर मुख्य धारा के मीडिया ने उन्हें कभी भी उस महत्व के साथ नहीं दिखाया, जितना दिखाना चाहिए था। कारण मैंने पहले भी लिखा था; कि हो सकता है मीडिया को अपने विज्ञापनों में कटौती का डर हो, क्योंकि स्वामीजी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, नेताओं और सरकारों के विरोध में बहुत कटुवचन बोलते हैं। नशे का व्यापार करने वाले नकली दवाओं का व्यापार करने वाले और भ्रष्टाचारी तो बाबाजी को फूटी आँख नहीं सुहाते। विदेशी बैंकों में सौ लाख करोड़ रूपये का मुद्दा सर्व प्रथम बाबाजी ने ही उठाया; तब राजनीतिक पार्टियों ने उस पर बोला, अब नेता तो इस पर चुप हैं पर बाबाजी ने इसे ही मुख्य मुद्दा बनाया हुआ है; खैर ..... । इसी दौरान भाई राजीव दीक्षित जी भी बाबा जी से प्रभावित होकर अपने संगठन के साथ शामिल हो गए और ......
पिछले वर्ष पांच जनवरी 2009 को बाबाजी ने "भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना" और "नयी आजादी नयी व्यवस्था" के लिए आन्दोलन छेड़ दिया ।तब देश के लोगों को पता लगा कि15अगस्त 1947 को देश के साथ धोखा हुआ है,हम आजाद नहीं हुए केवल सत्ता परिवर्तन हुआ है, इसीलिए कोई भी निति नहीं बदली गयी सब कुछ वही रहा जो अंग्रेजों के समय में था ।
तब से समाज देश दुनिया के लिए जो गलत है उसका विरोध और जो सही है उसका जोर शोर;से डंके की चोट पर समर्थन बाबा जी करते आ रहे हैं। जिससे सब (भ्रष्ट)परेशान हैं, और दुःख की बात ये है कि भ्रष्ट सभी जगह हैं राजनीति भ्रष्ट धर्मनीति भ्रष्ट,न्यायनिति भ्रष्ट, बुद्धिजीवी(पत्रकारिता)भ्रष्ट। विरोध तो कर नहीं सकते(क्योंकि फिर तो सब नजर में आ जायेंगे);और समर्थन करते हैं तो अपना बाजार बंद। इसलिए सबको "सांप सूंघ गया है"; 'बाबाजी ने ये क्या बबाल खड़ा कर दिया है अच्छी भली जिंदगी चल रही थी खूब खा(कमा) रहे थे (चाहे स्वास्थ्य कारणों से चिकित्सक ने खाना बंद कर रखा हो), पी रहे थे (शराब,कोला,सोडा,ब्राउन शुगर आदि),आलिशान बंगला (बंगले में बेशक नींद ना आये), बड़ा बैंक बैलेंस(परलोक में काम आता),बड़ी गाडी (अपने पांवों पर चाहे खड़ा ना पाए) और भी सभी;कई व्यभिचार अय्यासी के साधन(जिनको सुख सुविधा समझ लिया है),मिल रहे थे। इन सबकी पूर्ति के लिए येन-केन प्रकारेण, भ्रष्टाचार या बेईमानी से धन कमा ले रहे थे 'इससे बाबाजी को क्या हानि हो रही थी जो उन्होंने ये बखेड़ा खड़ा कर दिया';और लगे जनता को जगाने। वरना; जनता को क्या पड़ी थी वह तो लम्बे समय से इस सबकी आदि बन चुकी थी। फिर उसको भी तो मौका मिलता रहता है;जहाँ पर मौका मिले वह भी तो इस सबके लिए लालायित रहती थी। अब जनता तो सुधरने लगी है और बाबाजी के साथ जुटने लगी है। स्वस्थ होने लगी है अब क्या होगा ! क्या ये जनता जो सदियों से सोयी थी जाग जाएगी'; अगर जाग गयी तो...?तो हमारा क्या होगा; इसलिए "इन " सबको सांप सूंघ गया है। विरोध तो कर ही नहीं सकते क्योंकि कोई भी बात गलत नहीं है । विरोध करते हैं तो (हस्र) कुछ ज्यादा ही बुरा होने का खतरा है; जनता के जूतों का पता नहीं कैसे पड़ें, (कई तरीके हैं) क्याकरें......? बड़े तनाव में हैं ! कुछ सूझ नहीं रहा,कुछ ने देखा;नेता तो कोई राजी होगा नहीं,'छुटभइये से लेकर बड़भइये'तक, इसलिए बाबा के बदले कोई बाबा को राजी करो, (शायद)एकाध बाबा को राजी भी किया कि किसी तरीके से विरोध करो,कोशिश भी हुयी,या; हो रही है, पर दबी जुबान से। कभी योग-प्राणायाम का व्यवसायी करण का आरोप लगाया जाता है, कभी राजनीति में हस्तक्षेप की आलोचना। कुछ ने तो प्राणायाम को स्वयं की उपज समझ कर अजीबोगरीब तरीके से सिखाने या कराने के अड्डे खोल लिए हैं। प्राणायाम या योगासन पहले भी कराये जाते रहे हैं, पर केवल कुण्डलिनी जागरण के नाम पर, ध्यान या समाधी योग के नाम पर, या शारीरिक स्वस्थता के नाम पर कुछ आसन और क्रियाएं करायी जाती थी , प्रतिफल कुछ नहीं मिलता था; इससे लोग इन सब क्रियाओं से ऊब चुके थे । ये तो जन-जन तक प्राणायाम को पहुँचाने वाले बाबा रामदेव जी ने ही बताया कि लगातार दस-पंद्रह मिनट "कपालभाती; अनुलोम-विलोम" करके "रोग" भी "ठीक" होते हैं और "असाध्य" रोग।
ये जितनी जल्दी लोकप्रिय हुआ उतना ही "वो" 'जो व्यापार को चालाकी समझते हैं';"राजनीती के व्यापारी,धर्म-आध्यात्म के व्यापारी,समाज सुधार के व्यापारी,चिकित्सा के व्यापारी आदि-आदि,जो जितना अच्छे तरीके से जनता को मूर्ख बना कर अधिक से अधिक लाभ कमा ले व अपनी सुख-सुविधा बढ़ा ले वह अपने को उतना ही सफल मान ले और और उसके जैसे ही कुछ लोग उसे नाम-सम्मान दे दें. जितनी अधिक धूर्तता से,नीचता से वह लोगों की जेब से धन निकाल सकता है वह अपने क्षेत्र में उतना बड़ा व्यापारी,"चिंतित" होने लगे कि अब उनका खर्चा -पानी कैसे चलेगा।
उनके लिए तो; 'ये अँधेरा जो व्याप्त है जिसमें उनकी छीना-झपटी को कोई समझ नहीं पा रहा' ना छंटे तो अच्छा था। वो अँधेरा चाहने वाले दूसरों का मुहं भी ढंकने का प्रयास कर रहे हैं,उन्हें अँधेरे में ही रखने में उन्हें लाभ है ,उन्हें क्या लेना भारत की संस्कृती से, उन्हें क्या लेना भारत के भविष्य से,उन्हें क्या लेना साधारण मनुष्य से,पेट भरे या भूखा रहे; उनकी तो दारू बिक रही है ना, उनकी तो फ़िल्में नंगा होने से ज्यादा बिक रहीं है ना, उनकी तो राजनीति लोगों को मूर्ख बनाने में ही चलेगी, उनका तो धर्म का व्यवसाय तभी चलेगा जब लोग अन्धविश्वासी रहेंगे,उनका व्यापार तो तभी चलेगा जब करोड़ों के झूठे विज्ञापन देंगे,उनका चिकित्सा व्यवसाय तभी चलेगा जब लोगों को बिमारियों के नाम पर डराया जायेगा।
ये सब अगर जनता जान गयी तो इनके पास आने वाले धन में कमी आएगी, और धन में कमी आई तो ये अपनी आसुरी प्रव्रत्तियों (अय्यासियों) को कैसे पूरा करेंगे। इसलिए "ये" 'अँधेरे के साथी,समर्थक और चाहने वाले',उजाला नहीं होने देना चाहते;पर रोक नहीं पा रहे,कौन रोक पाता है...? "होती हुयी भोर को ,उगते हुए सूरज को,चढ़ते हुए दिन को"इसलिए प्रत्यक्ष में तो सब सुन्न हैं, आपस में अघोषित एका कर लिया है, पत्रकारो-बुद्धिजीवियो तुम चुप रहने का प्रयास करना, (प्रयास ही कर सकते हैं क्यों कि;सभी पत्रकार तो वैसे नहीं हैं कोई ना कोई बाबाजी को समाचारों में दिखा ही देता है),नेताओं ने तो अपने लिए; या साथियों के लिए आचार संहिता जैसी बना ली है कि कोई भी बाबा रामदेव का नाम नहीं लेगा; ना उनके विचारों के समर्थन में ना विरोध में, सब सोये हुए का नाटक सा करो। राजनीतिज्ञ हैं ना, जब देखेंगे बाबा जी के कारण बहुत लाभ हो सकता है;तो तलवे चाटने में भी लज्जा नहीं आएगी, इसलिए अभी से क्यों "रिस्क"लिया जाये। उद्योगपति; कुछ तो साथ हैं, कुछ; डरे हुए हैं, क्योंकि उन्हें "इस व्यवस्था" से मनमाना लाभ कमाने की "लत" लग गयी है उस "लाभ" से वे अपने चाहने वालों को "महंगे-महंगे उपहार"देकर देश व दुनिया में नाम कमाने में गर्वित अनुभव करते हैं, या अपने नौनिहालों की शादियों में अरबों खर्च करके भारत ही नहीं विश्व भर के लोगों(गरीबों) की दुआएं प्राप्त करना चाहते हैं;ऐसे में बाबा जी सफल हो गए तो, उनका तो "एम्पायर"सबसे पहले नजरों में आएगा। अब रहे चिकित्सक और साधू , चिकित्सक; 'वो तो अब अधिकतर मानने लगे हैं प्राणायाम से तो लाभ होते ही हैं(जिनकी दुकान नहीं चलरही उन्हें छोड़ कर) अब स्वामीजी जो भारत स्वाभिमान का आन्दोलन चला रहे हैं वह भी सफल होगा और साथ दे रहे हैं', अपने को "धर्मात्मा"(धर्म-आध्यात्म का व्यवसाय करने वाले) घोषित करने वाले "साधू या बाबाजी"प्रकार के लोग, 'जो व्यवसायी नहीं हैं वो अधिकतर तो स्वामीजी के समर्थन में "मुखर" होकर या अंदरूनी तौर पर खड़े हो गए';पर जो "स्वयंभू"हैं, ज्ञानी नहीं हैं केवल चोला पहना है या कुंठित हैं,उनके प्रयास यदा-कदा होते रहते हैं; हो सकता है इसमें उन्हें उकसाने में उपरोक्त विरोधियों का भी मस्तिष्क होता हो।
इस बार तो इस लेख में पूरी भड़ास ही निकल रही है, सारी "टेंशन", 'भगवान् करे इन भारत विरोधियों को हो जाये, तो इनकी टेंशन "डबल" हो जाये; कि आम जन भी तुम्हारी "शकुनी प्रवृत्ति"(षड्यंत्रकारी प्रवृत्ति) को जान रहा है। वरना कोई नामधारी बाबा बुरा काम करे और समाचार चैनल उसे पूरे-पूरे दिन दिखाएँ या किसी अन्य बाबा को और उसके अपराधों को लगातार दिखाते रहें, सिनेमा के बारे में इसके व्यवसायियों(हीरो-हिरोईन) के विषय में कई-कई घंटे इनके पास होते हैं। यही हाल समाचार पत्रों का है वह भी मोटापे को कम करने के लिए अभी तक पुराने तरीके की बातें ही लिखते हैं या दिल के मरीजों के लिए भी उसी प्रकार की सलाह, या जो इनके "विशेषज्ञ" होते हैं वह अपना ही राग अलापते नजर आते हैं, जबकि आज प्राणायाम से मोटापा,मधुमेह, दिल की सारी समस्याएं,पेट की सारी समस्याएं शारीर की जो भी बीमारियाँ हैं सब प्राणायाम से ठीक होती हैं, और ये नया (वैसे हमारा पौराणिक ज्ञान, जिसे हम भूल गए थे ) तरीका है। ये विज्ञान है , ये तार्किक है, ये सिद्ध कर दिखाया है बाबा रामदेव जी महाराज ने, इसके सारे प्रमाणों के साथ एक पुस्तक भी बाबाजी कई साल पहले छपवा चुके हैं "विज्ञान की कसौटी पर योग"। इसके बाद भी कोई रोगों के इलाज विषय में बात करे, मरीजों को या जन साधारण को सलाह दे और प्राणायाम के विषय में ना बोले या लिखे तो वह मनुष्यता और भारतीयता का शत्रु ही लगता है। अगर यह ज्ञान किसी "गोरी चमड़ी" वाले को मिला होता ये पत्र-पत्रिकाएं अपने प्रतिष्ठान के लिए "उसके नौकर तक के चरणामृत"घोल के पी गए होते,'जैसी इनकी प्रवृत्ति हो गयी है'। ये चैनल वाले; "उसके"गुणगान में अपनी "जिव्ह्या" ही भेंट कर चुके होते, इस सबके बावजूद "वह"इनसे पैसे वसूलता क्योंकि "उसका" पेटेंट किया हुआ ज्ञान होता।
यहाँ लाखों लोग कैंसर से बच गए,हार्ट अटैक से बच गए नजाने कितने लोगों ने अपना वजन कम कर लिया, अन्य भी कई ऐसी बीमारियाँ, 'जिन्हें अभी मेडिकल साईंस समझ ही नहीं पाया ठीक हो रहीं हैं', लगातार ठीक होने में ही हैं (अब तो व्यापक रूप से विस्तार हो रहा है) । और इनके कानों में जूं ना रेंगे; तो जरुर इनका स्वार्थ आड़े रहा है,मुझे "इस बात" का कोई शोक नहीं है कि "ये" लोग नहीं दिखा रहे तो कोई हानि हो रही है,"हानि नहीं हो रही"; मुझे इस बात का "दुःख" है कि " ये"अपने को "लोकतंत्र का चौथा खम्भा"कहने वाले, जनसाधारण का हितैषी बताने वाले क्यों मौन हैं ? ये क्यों नहीं चाहते कि "भारत वासी बिना दवाएं खाए जिन्दा रहे", अपने रोग दूर करे। ये क्यों नहीं चाहते कि भारत से; भ्रष्टाचार, भूख, गरीबी , बीमारी, बेकारी, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की षड्यंत्रकारी लूट ,भ्रष्ट नेताओं-अधिकारीयों की लूट समाप्त हो । क्यों मौन हैं "वो बुद्धिजीवी" जो अमेरिकी गुणगान में मस्त रहते हैं और उसकी किसी थूकी हुयी टिपण्णी, कि "भारत पचास सालों में विश्व की महाशक्ति होगा"अपने हाथों में ले लेते हैं।
जबकि बाबा रामदेव कह रहे हैं "भारत अगले पांच साल में विश्व कि महाशक्ति होगा" पर कोई बात नहीं करते। क्या इन्हें बुरा लगता हैं कि भारत पांच साल में महाशक्ति बने ?"बंद करो अपनी दुकानदारी ओ लोक और तंत्र के हितैषी होने का दम भरने वालो"तुम लोक और तंत्र को ठग रहे हो",तुम ईमानदारी की रोटी नहीं खा रहे; अपितु चापलूसी-बेईमानी की रोटी भी बंद ना हो जाये, क्या इससे डर रहे हो ?
अगर हाँ ! तो तुम्हारी आत्मा तुम्हें धिक्कारती नहीं ?
अभियान तो फिर भी बढ़ रहा हैं, बढेगा ही ; पर "ये" अगर अपने को ईमानदार कहकर अपनी पीठ थपथपाते हैं तो कैसे इतने बड़े आन्दोलन (शायद स्वतंत्रता आंदोलन के समकक्ष) को नजरंदाज कर रहे हैं या छोटे-मोटे विरोध को चटपटे तरीके से दिखा कर या बाबाजी की बातों को व्यंग्यात्मक लहजे में कह कर या कोई महत्त्व ना देकर "ये" क्या सिद्ध करना चाहते हैं।
तो , देखा सामने बड़े मैदान में बैठे जनसमुद्र को पुचकारते हुए बाबा जी कह रहे थे, "कर लो – कर लो; बस पांच मिनट और, थक गए तो धीरे-धीरे कर लो तभी फायदा होगा,बी.पी. हाई हो, लो हो, माइग्रेन हो, वजन बढ़ा हो; शारीर में कोई भी बीमारी हो सब ठीक होगी,अभी आपको एक्यूप्रेसर के पॉइंट भी बताएँगे, देखो भई करना तो तुम्हें ही पड़ेगा, बाबा के करने से थोड़े ही तुम्हें लाभ होगा। निरंतर करो खाली मत बैठो, बस पांच मिनट और; अनुलोम-विलोम, फिर भ्रामरी,उद्गीत और प्रणव जप’।
उसी के बीच-बीच में उपरोक्त विचार भी बाबा जी बोल रहे थे,जैसे"ठंडा मतलब-टॉयलेट क्लीनर,इसकी जगह तुम्हारे फ्रिज में नहीं; बाथरूम में है। जरा एक ढक्कन डाल के देखना कैसे तुम्हारे टॉयलेट को साफ करता है। इसमें जहर है; ये तुम्हारी हड्डियों को गलाता है; दांतों के लिए बहुत खतरनाक है। इसको खरीदने से देश का पैसा बाहर जाता है। इसलिए इसे कभी मत पीना... नीम्बू पियो, छाछ पियो, अपनी देशी चीजें क्या कम हैं पीने के लिए....., अरे ! सादा पानी पियो ना;प्यास तो उसी से बुझेगी"।ये सब देख-सुन कर पहली नजर में बाबाजी की बातो में नयापन लगा। उसके कुछ दिन बाद समाचार पत्रों में पढ़ा(टी.वी.में नहीं देखा) , कि “ऐलोपेथी को शीर्षासन करा दूंगा बाबा रामदेव ने कहा” समाचार था; कि हमरे पौराणिक ग्रंथों में रोगों से स्वस्थ होने-रहने के उपाय दिए गए है, जिन्हें हम भूल गए थे और अब बाबा जी ने पा लिए हैं; जिससे वह सफलतापूर्वक रोगों का उपचार कर रहे हैं । हालाँकि शीर्षासन करने की बात, पत्र- पत्रिकाओं ने बढ़ा-चढ़ा कर लिख दिया था; ऐसा कुछ दिन बाद बाबाजी से सुबह आस्था चैनल पर सुना।
तो; बाबा जी को प्रतिदिन देखना मेरा कार्यक्रम बन गया कभी-कभी शाम को भी देख लेता था,पहले एक दिन पुराना कार्यक्रम दिखाया जाता था । एक तो अपने पौराणिक ग्रंथों पर आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके से सोचने का मेरा "अपना दृष्टिकोण", फिर बाबा जी के द्वारा “प्राणायाम” को भी “रोगों”को ठीक करने के लिए तर्कों के साथ विज्ञान सिद्ध करना। ‘ये बाबा जी’ अन्य बाबाओं,संतों, महाराजों से कुछ ‘हट के’ लगे; और प्रभावित करने लगे। ये सन 2004 की बात है |
लोगों को गंभीर बिमारियों से ठीक होते देख कर बाबाजी की ख्याति बढती गयी। बाबा जी ने योग शिक्षक बनाने शुरू कर दिए,पर शर्त थी कि जिस पर कोई जिम्मेदारी ना हो या पचास-साठ साल से ज्यादा का हो वह योग शिक्षक बने। जाहिर है, अपना' नंबर नहीं आना था। पर बहुत बड़ी संख्या में लोग योग शिक्षक बनने लगे। बाबा जी का अभियान बहुत तेजी से बढ़ने लगा । पहले बाबाजी विदेश जाने से मना करते थे; 'कि जब तक भारत में बीमार हैं विदेश नहीं जाऊंगा। पर विदेश में ख्याति विस्तार पा चुकी थी। इसलिए जाना पड़ा , इसी बीच आस्था चैनल पर भी सीधा प्रसारण की व्यवस्था हो चुकी थी; और संसार के एक सौ सत्तर देशों में विस्तार पा चुका था, जिससे स्वामीजी पूरे संसार में प्रसिद्द हो गए। करोड़ों अनुयायी, लाखों सदस्य हो गए, क्योंकि बाबा जी कहते हैं "जो प्राणायाम सीख गया वह औरों को सिखाये, कम से कम सौ जनों को सिखाना ही गुरु दक्षिणा समझे"; सब को योग के लिए प्रेरित करे। इन सब में गुणात्मक रूप से विस्तार हुआ।
और विस्तार हुआ बाबा जी के प्राणायाम सीखने से ठीक हुए गंभीर रोगियों की संख्या का, लाखों की संख्या में लोग शिविरों में जुटने लगे, जिससे लगा लोग स्वस्थ होना चाहते हैं;और एलोपैथी में उनके रोग दूर करने की सामर्थ्य नहीं है। तात्कालिक उपचार के लिए तो बेशक एलोपैथी कारगर है; या रोगों की पहचान (निदान)में भी ये कारगर हैं। पर रोग के लिए जीवन भर दवा खाते रहने के आलावा एलोपैथी के पास शायद कोई उपचार नहीं हैं। ये भी हो सकता हैं कि अपनी दवाओं की बिक्री के लिए दवा निर्माता कंपनियों ने षड्यंत्र के तहत इस तरह की व्यवस्था ही बना दी, कि लोगों की मानसिकता ही हो गयी; कि कोई रोग हो गया तो डॉक्टर की सलाह पर जीवन भर दवाईयाँ खाने की मज़बूरी ही हैं। उन दवाइयों के दुष्परिणाम भी भुगतने ही पड़ेंगे। ये षड्यंत्र ही हो सकता है; वरना आयुर्वेद जैसी जीवन पद्दति 'जिसमे रोगी होने से बचना, ही बताया गया है'; क्यों लोग भूलते ? तो षड्यंत्र के तहत ही लोगों की जीवन चर्या बदल दी गयी। सुविधा के नाम पर, सबकुछ रेडीमेड उपलब्ध करवा दिया, विज्ञापनों ने बड़ी बेशर्मी से लोगों का 'ब्रेन वास' किया जिससे भारत वासी अपने ज्ञान-विज्ञान को भूल गए। खैर...... ।
बाबा जी की ख्याति गुणात्मक रूप से बढती रही। बाबाजी की योजनाओं का विस्तार होने लगा बड़े-बड़े लोग स्वामी जी के साथ जुड़ने लगे बड़े-बड़े डॉक्टर, इंजिनियर,उद्योगपति, साधारण जन सभी बाबाजी को चाहने लगे।
आयुर्वेदिक दवाएं बाबाजी पहले से ही बनाते थे; "आचार्य बालकृष्ण जी " जैसे आयुर्वेद के ज्ञाता 'मैं समझता हूँ वर्तमान में आयुर्वेद के क्षेत्र में उनसे अधिक ज्ञानी कोई नहीं होगा' जड़ी-बूटी, वनस्पति और चिकित्सा तथा पतंजलि योग पीठों की स्थापना, सब कुछ में "आचार्य बालकृष्ण" का कार्य; "योजनाओ" को मूर्त रूप देना था। दवाओं की फैक्ट्रियां विस्तार पाने लगीं। इसी बीच एक कम्युनिष्ट नेत्री पतंजलि योग पीठ से तकरार कर बैठी पर सफल नहीं हो पाई। दवाओं को बदनाम करने के प्रयास हुए; मिलावट बताई गयी महंगा बताया गया पर सब बेकार। दरअसल लोगों का विश्वास स्वामी जी पर पक्का हो गया था, उलटे उन विवादों का लाभ ही अधिक मिला , और बाबाजी मुखर होते गए। विरोध को अपनी ताकत बनाते गए।
मनुष्यों की बीमारी ठीक करते-करते स्वामीजी को देश में व्याप्त बुराईयों;भ्रष्टाचार,कुसंस्कृति,अपराध-आतंकवाद ने परेशान कर दिया। हालाँकि शुरू से ही बाबा रामदेव जी भ्रष्टाचार,कुसंस्कृति , कुविचार अन्य जो भी बुराईयाँ और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की मनमानी पर बड़े जोरों से अपने शिविरों में कुठाराघात करते थे। शाकाहार के लिए जिस तरह से लोगों को बाबाजी प्रेरित करते हैं, शायद ही कोई दोबारा मांसाहार करता हो। कोल्ड-ड्रिंक और अंडे के लिए तो बाबाजी ने अपने नारे ही गढ़े हुए हैं ;"ठंडा मतलब-टॉयलेट क्लीनर, सन्डे हो या मंडे कभी ना खाना अंडे "। शराब ,बीडी-सिगरेट,तम्बाखू-गुटखा जैसी चीजें बाबाजी अपनी झोली में डालने के लिए कहते हैं मतलब,इन्हें छोड़ने का आह्वान करते हैं ।
बाबाजी का जो भी आन्दोलन चला वह जनता के बीच में जनता के सहयोग द्वारा ही चला, स्वामीजी वैसे बेशक मीडिया को अपना शुभचिंतक बताते हों पर मुख्य धारा के मीडिया ने उन्हें कभी भी उस महत्व के साथ नहीं दिखाया, जितना दिखाना चाहिए था। कारण मैंने पहले भी लिखा था; कि हो सकता है मीडिया को अपने विज्ञापनों में कटौती का डर हो, क्योंकि स्वामीजी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, नेताओं और सरकारों के विरोध में बहुत कटुवचन बोलते हैं। नशे का व्यापार करने वाले नकली दवाओं का व्यापार करने वाले और भ्रष्टाचारी तो बाबाजी को फूटी आँख नहीं सुहाते। विदेशी बैंकों में सौ लाख करोड़ रूपये का मुद्दा सर्व प्रथम बाबाजी ने ही उठाया; तब राजनीतिक पार्टियों ने उस पर बोला, अब नेता तो इस पर चुप हैं पर बाबाजी ने इसे ही मुख्य मुद्दा बनाया हुआ है; खैर ..... । इसी दौरान भाई राजीव दीक्षित जी भी बाबा जी से प्रभावित होकर अपने संगठन के साथ शामिल हो गए और ......
पिछले वर्ष पांच जनवरी 2009 को बाबाजी ने "भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना" और "नयी आजादी नयी व्यवस्था" के लिए आन्दोलन छेड़ दिया ।तब देश के लोगों को पता लगा कि15अगस्त 1947 को देश के साथ धोखा हुआ है,हम आजाद नहीं हुए केवल सत्ता परिवर्तन हुआ है, इसीलिए कोई भी निति नहीं बदली गयी सब कुछ वही रहा जो अंग्रेजों के समय में था ।
तब से समाज देश दुनिया के लिए जो गलत है उसका विरोध और जो सही है उसका जोर शोर;से डंके की चोट पर समर्थन बाबा जी करते आ रहे हैं। जिससे सब (भ्रष्ट)परेशान हैं, और दुःख की बात ये है कि भ्रष्ट सभी जगह हैं राजनीति भ्रष्ट धर्मनीति भ्रष्ट,न्यायनिति भ्रष्ट, बुद्धिजीवी(पत्रकारिता)भ्रष्ट। विरोध तो कर नहीं सकते(क्योंकि फिर तो सब नजर में आ जायेंगे);और समर्थन करते हैं तो अपना बाजार बंद। इसलिए सबको "सांप सूंघ गया है"; 'बाबाजी ने ये क्या बबाल खड़ा कर दिया है अच्छी भली जिंदगी चल रही थी खूब खा(कमा) रहे थे (चाहे स्वास्थ्य कारणों से चिकित्सक ने खाना बंद कर रखा हो), पी रहे थे (शराब,कोला,सोडा,ब्राउन शुगर आदि),आलिशान बंगला (बंगले में बेशक नींद ना आये), बड़ा बैंक बैलेंस(परलोक में काम आता),बड़ी गाडी (अपने पांवों पर चाहे खड़ा ना पाए) और भी सभी;कई व्यभिचार अय्यासी के साधन(जिनको सुख सुविधा समझ लिया है),मिल रहे थे। इन सबकी पूर्ति के लिए येन-केन प्रकारेण, भ्रष्टाचार या बेईमानी से धन कमा ले रहे थे 'इससे बाबाजी को क्या हानि हो रही थी जो उन्होंने ये बखेड़ा खड़ा कर दिया';और लगे जनता को जगाने। वरना; जनता को क्या पड़ी थी वह तो लम्बे समय से इस सबकी आदि बन चुकी थी। फिर उसको भी तो मौका मिलता रहता है;जहाँ पर मौका मिले वह भी तो इस सबके लिए लालायित रहती थी। अब जनता तो सुधरने लगी है और बाबाजी के साथ जुटने लगी है। स्वस्थ होने लगी है अब क्या होगा ! क्या ये जनता जो सदियों से सोयी थी जाग जाएगी'; अगर जाग गयी तो...?तो हमारा क्या होगा; इसलिए "इन " सबको सांप सूंघ गया है। विरोध तो कर ही नहीं सकते क्योंकि कोई भी बात गलत नहीं है । विरोध करते हैं तो (हस्र) कुछ ज्यादा ही बुरा होने का खतरा है; जनता के जूतों का पता नहीं कैसे पड़ें, (कई तरीके हैं) क्याकरें......? बड़े तनाव में हैं ! कुछ सूझ नहीं रहा,कुछ ने देखा;नेता तो कोई राजी होगा नहीं,'छुटभइये से लेकर बड़भइये'तक, इसलिए बाबा के बदले कोई बाबा को राजी करो, (शायद)एकाध बाबा को राजी भी किया कि किसी तरीके से विरोध करो,कोशिश भी हुयी,या; हो रही है, पर दबी जुबान से। कभी योग-प्राणायाम का व्यवसायी करण का आरोप लगाया जाता है, कभी राजनीति में हस्तक्षेप की आलोचना। कुछ ने तो प्राणायाम को स्वयं की उपज समझ कर अजीबोगरीब तरीके से सिखाने या कराने के अड्डे खोल लिए हैं। प्राणायाम या योगासन पहले भी कराये जाते रहे हैं, पर केवल कुण्डलिनी जागरण के नाम पर, ध्यान या समाधी योग के नाम पर, या शारीरिक स्वस्थता के नाम पर कुछ आसन और क्रियाएं करायी जाती थी , प्रतिफल कुछ नहीं मिलता था; इससे लोग इन सब क्रियाओं से ऊब चुके थे । ये तो जन-जन तक प्राणायाम को पहुँचाने वाले बाबा रामदेव जी ने ही बताया कि लगातार दस-पंद्रह मिनट "कपालभाती; अनुलोम-विलोम" करके "रोग" भी "ठीक" होते हैं और "असाध्य" रोग।
ये जितनी जल्दी लोकप्रिय हुआ उतना ही "वो" 'जो व्यापार को चालाकी समझते हैं';"राजनीती के व्यापारी,धर्म-आध्यात्म के व्यापारी,समाज सुधार के व्यापारी,चिकित्सा के व्यापारी आदि-आदि,जो जितना अच्छे तरीके से जनता को मूर्ख बना कर अधिक से अधिक लाभ कमा ले व अपनी सुख-सुविधा बढ़ा ले वह अपने को उतना ही सफल मान ले और और उसके जैसे ही कुछ लोग उसे नाम-सम्मान दे दें. जितनी अधिक धूर्तता से,नीचता से वह लोगों की जेब से धन निकाल सकता है वह अपने क्षेत्र में उतना बड़ा व्यापारी,"चिंतित" होने लगे कि अब उनका खर्चा -पानी कैसे चलेगा।
उनके लिए तो; 'ये अँधेरा जो व्याप्त है जिसमें उनकी छीना-झपटी को कोई समझ नहीं पा रहा' ना छंटे तो अच्छा था। वो अँधेरा चाहने वाले दूसरों का मुहं भी ढंकने का प्रयास कर रहे हैं,उन्हें अँधेरे में ही रखने में उन्हें लाभ है ,उन्हें क्या लेना भारत की संस्कृती से, उन्हें क्या लेना भारत के भविष्य से,उन्हें क्या लेना साधारण मनुष्य से,पेट भरे या भूखा रहे; उनकी तो दारू बिक रही है ना, उनकी तो फ़िल्में नंगा होने से ज्यादा बिक रहीं है ना, उनकी तो राजनीति लोगों को मूर्ख बनाने में ही चलेगी, उनका तो धर्म का व्यवसाय तभी चलेगा जब लोग अन्धविश्वासी रहेंगे,उनका व्यापार तो तभी चलेगा जब करोड़ों के झूठे विज्ञापन देंगे,उनका चिकित्सा व्यवसाय तभी चलेगा जब लोगों को बिमारियों के नाम पर डराया जायेगा।
ये सब अगर जनता जान गयी तो इनके पास आने वाले धन में कमी आएगी, और धन में कमी आई तो ये अपनी आसुरी प्रव्रत्तियों (अय्यासियों) को कैसे पूरा करेंगे। इसलिए "ये" 'अँधेरे के साथी,समर्थक और चाहने वाले',उजाला नहीं होने देना चाहते;पर रोक नहीं पा रहे,कौन रोक पाता है...? "होती हुयी भोर को ,उगते हुए सूरज को,चढ़ते हुए दिन को"इसलिए प्रत्यक्ष में तो सब सुन्न हैं, आपस में अघोषित एका कर लिया है, पत्रकारो-बुद्धिजीवियो तुम चुप रहने का प्रयास करना, (प्रयास ही कर सकते हैं क्यों कि;सभी पत्रकार तो वैसे नहीं हैं कोई ना कोई बाबाजी को समाचारों में दिखा ही देता है),नेताओं ने तो अपने लिए; या साथियों के लिए आचार संहिता जैसी बना ली है कि कोई भी बाबा रामदेव का नाम नहीं लेगा; ना उनके विचारों के समर्थन में ना विरोध में, सब सोये हुए का नाटक सा करो। राजनीतिज्ञ हैं ना, जब देखेंगे बाबा जी के कारण बहुत लाभ हो सकता है;तो तलवे चाटने में भी लज्जा नहीं आएगी, इसलिए अभी से क्यों "रिस्क"लिया जाये। उद्योगपति; कुछ तो साथ हैं, कुछ; डरे हुए हैं, क्योंकि उन्हें "इस व्यवस्था" से मनमाना लाभ कमाने की "लत" लग गयी है उस "लाभ" से वे अपने चाहने वालों को "महंगे-महंगे उपहार"देकर देश व दुनिया में नाम कमाने में गर्वित अनुभव करते हैं, या अपने नौनिहालों की शादियों में अरबों खर्च करके भारत ही नहीं विश्व भर के लोगों(गरीबों) की दुआएं प्राप्त करना चाहते हैं;ऐसे में बाबा जी सफल हो गए तो, उनका तो "एम्पायर"सबसे पहले नजरों में आएगा। अब रहे चिकित्सक और साधू , चिकित्सक; 'वो तो अब अधिकतर मानने लगे हैं प्राणायाम से तो लाभ होते ही हैं(जिनकी दुकान नहीं चलरही उन्हें छोड़ कर) अब स्वामीजी जो भारत स्वाभिमान का आन्दोलन चला रहे हैं वह भी सफल होगा और साथ दे रहे हैं', अपने को "धर्मात्मा"(धर्म-आध्यात्म का व्यवसाय करने वाले) घोषित करने वाले "साधू या बाबाजी"प्रकार के लोग, 'जो व्यवसायी नहीं हैं वो अधिकतर तो स्वामीजी के समर्थन में "मुखर" होकर या अंदरूनी तौर पर खड़े हो गए';पर जो "स्वयंभू"हैं, ज्ञानी नहीं हैं केवल चोला पहना है या कुंठित हैं,उनके प्रयास यदा-कदा होते रहते हैं; हो सकता है इसमें उन्हें उकसाने में उपरोक्त विरोधियों का भी मस्तिष्क होता हो।
इस बार तो इस लेख में पूरी भड़ास ही निकल रही है, सारी "टेंशन", 'भगवान् करे इन भारत विरोधियों को हो जाये, तो इनकी टेंशन "डबल" हो जाये; कि आम जन भी तुम्हारी "शकुनी प्रवृत्ति"(षड्यंत्रकारी प्रवृत्ति) को जान रहा है। वरना कोई नामधारी बाबा बुरा काम करे और समाचार चैनल उसे पूरे-पूरे दिन दिखाएँ या किसी अन्य बाबा को और उसके अपराधों को लगातार दिखाते रहें, सिनेमा के बारे में इसके व्यवसायियों(हीरो-हिरोईन) के विषय में कई-कई घंटे इनके पास होते हैं। यही हाल समाचार पत्रों का है वह भी मोटापे को कम करने के लिए अभी तक पुराने तरीके की बातें ही लिखते हैं या दिल के मरीजों के लिए भी उसी प्रकार की सलाह, या जो इनके "विशेषज्ञ" होते हैं वह अपना ही राग अलापते नजर आते हैं, जबकि आज प्राणायाम से मोटापा,मधुमेह, दिल की सारी समस्याएं,पेट की सारी समस्याएं शारीर की जो भी बीमारियाँ हैं सब प्राणायाम से ठीक होती हैं, और ये नया (वैसे हमारा पौराणिक ज्ञान, जिसे हम भूल गए थे ) तरीका है। ये विज्ञान है , ये तार्किक है, ये सिद्ध कर दिखाया है बाबा रामदेव जी महाराज ने, इसके सारे प्रमाणों के साथ एक पुस्तक भी बाबाजी कई साल पहले छपवा चुके हैं "विज्ञान की कसौटी पर योग"। इसके बाद भी कोई रोगों के इलाज विषय में बात करे, मरीजों को या जन साधारण को सलाह दे और प्राणायाम के विषय में ना बोले या लिखे तो वह मनुष्यता और भारतीयता का शत्रु ही लगता है। अगर यह ज्ञान किसी "गोरी चमड़ी" वाले को मिला होता ये पत्र-पत्रिकाएं अपने प्रतिष्ठान के लिए "उसके नौकर तक के चरणामृत"घोल के पी गए होते,'जैसी इनकी प्रवृत्ति हो गयी है'। ये चैनल वाले; "उसके"गुणगान में अपनी "जिव्ह्या" ही भेंट कर चुके होते, इस सबके बावजूद "वह"इनसे पैसे वसूलता क्योंकि "उसका" पेटेंट किया हुआ ज्ञान होता।
यहाँ लाखों लोग कैंसर से बच गए,हार्ट अटैक से बच गए नजाने कितने लोगों ने अपना वजन कम कर लिया, अन्य भी कई ऐसी बीमारियाँ, 'जिन्हें अभी मेडिकल साईंस समझ ही नहीं पाया ठीक हो रहीं हैं', लगातार ठीक होने में ही हैं (अब तो व्यापक रूप से विस्तार हो रहा है) । और इनके कानों में जूं ना रेंगे; तो जरुर इनका स्वार्थ आड़े रहा है,मुझे "इस बात" का कोई शोक नहीं है कि "ये" लोग नहीं दिखा रहे तो कोई हानि हो रही है,"हानि नहीं हो रही"; मुझे इस बात का "दुःख" है कि " ये"अपने को "लोकतंत्र का चौथा खम्भा"कहने वाले, जनसाधारण का हितैषी बताने वाले क्यों मौन हैं ? ये क्यों नहीं चाहते कि "भारत वासी बिना दवाएं खाए जिन्दा रहे", अपने रोग दूर करे। ये क्यों नहीं चाहते कि भारत से; भ्रष्टाचार, भूख, गरीबी , बीमारी, बेकारी, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की षड्यंत्रकारी लूट ,भ्रष्ट नेताओं-अधिकारीयों की लूट समाप्त हो । क्यों मौन हैं "वो बुद्धिजीवी" जो अमेरिकी गुणगान में मस्त रहते हैं और उसकी किसी थूकी हुयी टिपण्णी, कि "भारत पचास सालों में विश्व की महाशक्ति होगा"अपने हाथों में ले लेते हैं।
जबकि बाबा रामदेव कह रहे हैं "भारत अगले पांच साल में विश्व कि महाशक्ति होगा" पर कोई बात नहीं करते। क्या इन्हें बुरा लगता हैं कि भारत पांच साल में महाशक्ति बने ?"बंद करो अपनी दुकानदारी ओ लोक और तंत्र के हितैषी होने का दम भरने वालो"तुम लोक और तंत्र को ठग रहे हो",तुम ईमानदारी की रोटी नहीं खा रहे; अपितु चापलूसी-बेईमानी की रोटी भी बंद ना हो जाये, क्या इससे डर रहे हो ?
अगर हाँ ! तो तुम्हारी आत्मा तुम्हें धिक्कारती नहीं ?
अभियान तो फिर भी बढ़ रहा हैं, बढेगा ही ; पर "ये" अगर अपने को ईमानदार कहकर अपनी पीठ थपथपाते हैं तो कैसे इतने बड़े आन्दोलन (शायद स्वतंत्रता आंदोलन के समकक्ष) को नजरंदाज कर रहे हैं या छोटे-मोटे विरोध को चटपटे तरीके से दिखा कर या बाबाजी की बातों को व्यंग्यात्मक लहजे में कह कर या कोई महत्त्व ना देकर "ये" क्या सिद्ध करना चाहते हैं।
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