घोंसले में बैठा नन्हा पंछी , ऊँचा उड़ने को बेचैन।
ऊँचा उड़ते गिद्धों को देखता रोज, सोचता रहता दिन-रैन।
एक दिन हिम्मत करके उड़ चला ,कुछ उड़ा,कुछ और ऊँचा
बस, हार गया ऊंचाई से, पास में कोई न था घबरा गया
तन्हाई से ।
गिरा जमीं पर घायल हुआ ,क्या लाभ ;अगर अब पड़ जाए चैन।
महिला दिवस पर अलग-अलग माध्यमों से पता लगा(ब्लोगों में भी पढ़कर)
कि, हमारे देश में महिलाओं की हालत बड़ी दयनीय है। संसार की पहली माँ,
जाहिर है कोई महिला ही होगी। उसे ही आदि शक्ति कहा गया,"(माँ) महिला तो
शक्ति का श्रोत है”लेकिन यह भी सच है की श्रोत ,जहाँ पर होता है वहां
पर शक्ति कम होती है , लेकिन; जब कुछ अन्य शक्तियां उससे मिलती हैं तो
वह भागीरथी गंगा की तरह प्रचंड शक्ति के साथ अपना प्रदर्शन करती
है। जिसे नियंत्रित करने के लिए महादेव को अपनी जटाओं में उलझाना पड़ा
था, कहते हैं की वरना गंगा पाताल में चली जाती।
माफ़ करना मैं महिलाओं का विरोधी नहीं हूँ, लेकिन;मुझे ये समझ
नहीं आता की “रानी लक्ष्मी बाई,चेन्नमा,रजिया सुलतान,सरोजिनी नायडू,विजय लक्ष्मी
पंडित, माता जीजा बाई,मेडम भिकाजी कामा,इंदिरा गाँधी, किरण बेदी इत्यादि को
किस सशक्तिकरण की जरुरत पड़ी थी। हम अपने पौराणिक इतिहास को देखें तो उन
महिलाओं को आज तक जिस तरह आदर्श मन जाता है शायद आज की सशक्तिकरण
वालियों को कोई याद करना भी न चाहे। क्योंकि इनकी तथाकथित “आजाद खयाली”
को ये महिलाओं का सशक्तिकरण मानती हैं,ये पबों में जाकर शराब पीनेको
महिलाओं की आज़ादी व अधिकार मानती हैं,लिव इन रिलेशनशिप की ये समर्थक हैं,
अल्प-वस्त्रों वाला फैशन शो इन्हें महिलाओं की आज़ादी लगता है,इन्होंने प्यार को
ऐसे परिभाषित किया की लोग माँ-बाप,भाई-बहन के प्यार को भूलने लगे हैं केवल
वैलेन्टाइन डे के दिन उछ्रंख्लता को ही प्यार मानने लगे हैं, फिल्मों में अभिनय
के नाम पर अंग-प्रदर्शन, कला के नाम पर अश्लील नृत्य ;अगर जाँच की जाए या
रिसर्च की जाए कि महिलाओं के प्रति अपराधों में कब से बढोतरी हुयी है तो शयद
पता लगेगा की जब से पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ा है तब से ही ये अपराध
बढे हैं तब से ही पैदा होने से पहले ही बच्ची को कोख में अधिक मारा जा रहा
है । मतलब; पहले भी होता होगा लेकिन उसके बाद अधिक होने लगा। जैसे पर्यावरण
को प्रदूषित कोई करता है हानि कोई और उठाता है,ऐसे ही ये आधुनिकाएँ भी
करती हैं। इन्हें क्या पता की घर से भागी हुयी लड़की का हस्र देख कर, उसके माता-
पिता की बदनामी देख कर दुसरे माँ-बाप लड़की पैदा करना नहीं चाहते । ये दहेज़ से
बड़ा कारण है। छेड़छाड़,गुंडागर्दी तो कानूनी मसला है।
क्या होगा आरक्षण दे कर, जब इज्जत ही न हो और इज्जत, उपरोक्त तथाकथित आधुनिक
कर्मों से तो कम से कम भारत में तो नहीं मिलेगी। केवल कानून बनाकर या आरक्षण
लागु कर समस्या का समाधान नहीं हो सकता “जन के मन” के अनुरूप माहौल बनाना
होगा। जो निन्यनाब्बे प्रतिशत हैं उनमे महिलाऐं भी हैं। निचले स्तर पर जो आरक्षण दिया है
उसे जाकर देखो बिना पति के महिलाऐं कोई कार्य नहीं कर पा रही और पति को पॉँच साल तक
शराब पीने का अच्छा अवसर मिल जाता है । पहले शराब को बंद करवाएँ इसका सबसे अधिक
नुकशान महिलाओं को ही होता है ।
विचारणीय आलेख.
ReplyDeleteसार्थक चिंतन.
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