कोई तो होती ……
जो, पलट के कहती,
कि; हमें आरक्षण क्यों ?
हम पुरुषों से कम नहीं ,
पुरुष हमसे हैं,
तो, बिना पुरुषों के हम नहीं,
हम अशक्त नहीं, सशक्त हैं;
पुरुषों की धमनियों में,
बह रहा है जो, वो रक्त हैं ,
आरक्षण देकर हमें अशक्त ना बनाओ,
बल्कि राजनीति में जो; अपराधी,भ्रष्ट
और छिछोरे हैं; उन्हें भगाओ ,
स्वस्थ-संस्कारित समाज और राजनीति बनाओ,
अगर तुमसे ना बन पाए तो; "ओ कायरो"
हम बनायेंगी , तुम घर बैठ जाओ ।
समस्या तो फिर वहीं रहती. कुछ ही दिनों (वर्षों) में पुरूष आरक्षण मांगने लगते
ReplyDeleteयही जागृति तो चाहिए!पर आये कहाँ से?पता नहीं क्यूँ पिछलग्गू बन कर क्या नया हथिया लिया उन नादानों ने?
ReplyDeleteकुंवर जी,