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Sunday, March 8, 2009

पिछले दिनों

आज बहुत दिनों बाद लिख रहा हूँ , पिछले दिनों कई घटनाएँ
घट गई बांग्ला देश में बी.डी.आर का विद्रोह,पाकिस्तान में स्वात से
लेकर क्रिकेट खिलाड़ियों पर हमला तक, तालिबानी घटनाक्रम देख कर
ऐसा लगा कि भस्मासुर स्वयं ही भस्म होगा,
पर उसकी आंच से भारत
को बचाना एक बड़ी चुनौती होगी। जिसके लिए भारत में एकता होना बहुत
जरुरी है। जो वर्तमान समय में है। विशेषकर हिंदू और मुसलमानों
में।मेरे विचार से जैसे किसी झाड़-झंखाड़ को खेत या बगीचे से केवल
पत्ते काट कर नहीं समाप्त किया जा सकता,उसे समाप्त करने के लिए
उसकी जड़ व उसके बीज एक साथ समाप्त करने पड़ते हैं, वरना वह और
अधिक बढ़ता जाता है ।ऐसे ही आतंकवाद और तालिबानी सोच के लिए
करना पड़ेगा। पर यही दुर्भाग्य है कि उस बारे में कोई भी सोचने की
हिम्मत नहीं कर रहा, कारण क्या है? कारण है इसका किसी धर्म विशेष
से जुड़ा होना, जब तक उन बातों पर खुल कर तर्क-वितर्क (कुतर्क नहीं)
दुनिया के सभी धर्मों के बड़े-बड़े धर्माचार्यों, नेताओं, समाज-
शास्त्रियों तथा नामी-गिरामी लोगों के बीच न हो तब तक इसके बीज का नाश
होना मुस्किल है। अभी भी कुछ धर्म गुरु अपने धर्म ग्रंथों की
सही व्याख्या बताते तो हैं लेकिन वह उस पर पूरी बात करने से साफ-साफ
कन्नी कट जाते हैं
।इस तरह न धर्म का भला होना न इन्सान का, जबकि
धर्म मतलब समाज में रहने के नियम-कानून जिनको हमारे धर्म
ग्रंथों में पाप का भय पुण्य का लाभ या दोजख-जन्नत की लाभ-हानी
या लोक-परलोक के तंत्रों में उलझा कर मनुष्य को इन्हे मानने के लिए
प्रेरित किया है।क्योंकि मनुष्य पशुओं से अधिक विशेषताएं लिए
हुए था लेकिन पशुओं से अधिक ही क्रूरता,हिंसा और आपसी बैर लिए हुए
था।आरम्भ में पेट भरने को शिकार के लिए संगठित होने की आवश्यकता
हुयी तो समाज की स्थापना हो गई सभ्यता का विकास होने लगा जैसे-जैसे
सभ्यता का विकास हुआ नियम बनते गए।जब और विकास हुआ लिपि बनी
तो इनके ग्रन्थ बन गए।उस मूल धर्म के टुकड़े होते गए अपनी-अपनी
परिभाषाएं बनाते गए बाद में अपने मानने वालों की संख्या
बढ़ाने के लिए तन-मन-धन(बल से,विचारों से, लालच से)योगदान
देने लगे। और जब इससे भी बात कम बनी तो सीधे-सीधे आतंकवाद पर
उतर आए।
राजनीति ने इसमे इनका सहयोग किया उनके अपने स्वार्थ थे।जिस
तरह एक देश के अन्दर एक नेता की अपनी राजनीति अपना स्वार्थ होता है
उसी तरह पुरे विश्व के परिप्रेक्ष में किसी देश की अपनी राजनीति अपना
स्वार्थ होता है।इससे आतंकवाद का सारा खेल हुआ । खैर ये मेरे विचार
हैं, “कोई भी असहमत हो सकता है”।
पिछले दिनों से कुछ और पहले (५जन०९)भारत के लिए एक और बड़ी
बात हुयी, “बहुत बड़ी बात”स्वामी रामदेव ने भारत स्वाभिमान के नाम
से एक राष्ट्रीय संस्था का गठन किया और कार्य आरम्भ कर दिया है।
उस दिन भी टी.वी.न्यूज चैनलों में नहीं देखा, आज लगभग दो माह हो गए
हैं पर न किसी चैनल ने न ही किसी समाचार पत्र ने इस समाचार को
गंभीरता से तो दूर सामान्यतया भी नहीं दिखाया।आखिर इन राष्ट्रभक्त
समाचार माध्यमों को बाबा रामदेव से क्या बैर हो सकता
है।जबकि बाबा
तो मानवतावादी हैं कोई किसी धर्म का हो किसी देश का हो वह सबकी
भलाई की बात करते हैं। इनकी(समाचार माध्यमों)भी आज तक कोई
बुराई स्वामी जी ने नहीं की,तो ये अघोषित बहिष्कार क्यों?आखिर क्या
कारण हो सकता
है।मैंने पहले भी कहा था आज फ़िर समझ आ रहा है
दरअसल मैं आस्था चैनल पर प्रतिदिन सुबह स्वामी जी का कार्यक्रम
देखता हूँ आज पॉँच-छः साल हो गए हैं न कभी उनके विचारों से
असहमत हुआ न कभी ऊबा, चैनल लगा दिया तो जब कार्यक्रम समाप्त
हुआ तभी चैनल बदला उनकी कथनी-करनी में एकरूपता, विचारों में
मानवता के लिए जज्बा देखा है ,वही जज्बा पॉँच जनवरी के बाद देश
के लिए इतना मुखर हो गया है कि जो भी इस देश से, यहाँ की संस्कृति
से ,यहाँ की अच्छी परम्पराओं से, अच्छे रीती-रिवाजों से लगाव रखने
वाला होगा, राष्ट्रभक्त होगा, भारत को केवल भूमि नहीं माता
मानने वाला होगा उसे स्वामी जी की अभिव्यक्ति बिल्कुल भी ग़लत नहीं
लगेंगी, लेकिन जिसको इन सब से थोड़ा सा भी विरोध होगा वह अगर विरोध
नहीं भी करेगा तो इतना प्रयास अवश्य करेगा कि ये विचार ज्यादा लोगों
तक न पहुंचें वही प्रयास ये समाचार माध्यम कर रहे हैं ।

स्वामी जी ने मुख्य मुद्दा भ्रष्टाचार को बनाया हुआ है , स्वदेश
प्रेम को बनाया हुआ है,स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल को बनाया हुआ है,
विदेशी कम्पनियों की पोल स्वामी जी खोलते हैं ,किस तरह हमारी सरकारों,
हमारे नेताओं-अधिकारीयों की मिलीभगत से ये कम्पनियां यहाँ की
जनता को लूट रही हैं।स्वामी जी सब बताते हैं कि हमारे यहाँ के भ्रष्ट
लोगों का कितना पैसा विदेशों में जमा है
,कुछ दिन पहले सुभाष
गाताडे का लेख(२७फ़र.०९राष्ट्रीय सहारा) पढ़ा था की स्विस बैंक में जितना
पैसा भारत के लोगों का है उसे अगर बांटा जाए तो वह पैंतालिस करोड़
लोगों में एक लाख प्रति की औसत से बंट
जाएगा।अगर ऐसा हो जाए तो कोई
गरीबी रेखा से नीचे नहीं होगा। आतंकवाद के विरोध में स्वामी जी बोल
रहे हैं , मतलब,शायद इतनी बड़ी लड़ाई १९४७ से पहले विदेशियों के
खिलाफ भी नहीं लड़ी गई हो इतनी बड़ी लड़ाई की भूमिका स्वामी जी ने
बना दी है शायद ज्ञात इतिहास में यह एक सबसे बड़ा आन्दोलन होगा।
लेकिन हमारे समाचार माध्यमों को विज्ञापनों, फिल्मों,अपराधों,
राजनीतिज्ञों,ज्योतिषियों, अंधविश्वासों के समाचार ही दिखा-पढ़ा कर लगता है की ये
समाज और देश का भला कर रहे हैं। लेकिन शायद इनकी भी मज़बूरी
है
क्योंकि स्वामी जी जिनका विरोध करते हैं(बहुराष्ट्रीय कम्पनियों)
९० प्रतिशत विज्ञापन तो उन्ही कम्पनियों के इन चैनलों पर होते हैं।
जैसे भ्रष्ट राज नेताओं का विरोध स्वामी जी करते हैं क्या पता वह भी
इन चैनलों को दबाव में रखते हों।
आख़िर पैसा किसे अच्छा नहीं लगता
स्वामी जी को हाई लाईट करने के चक्कर में कहीं अपना बाजार बंद न हो
जाए। कुछ भी कारण हो सकता है। लेकिन इस तरह तो इनकी निष्ठां पर संदेह
होना लाजमी है।
चुनाव घोषित हो गए ये और एक बात पिछले दिनों हूई है। समाचार
माध्यमों का कमाई का मौसम है वैसे तो साल भर कमाई होती है
पर इस समय “ऑफ दा रिकार्ड”कमाई का अवसर होता है नेता अपनी जीत के लिए
प्रचार के नाम पर खुल कर पैसा बांटते हैं। इन दिनों तो ये स्वामी जी के
नजदीक भी नहीं चाहेंगे क्योंकि वह इन नेताओं की भी बखिया
उधेड़ रहे हैं। वह चाहे किसी पार्टी का हो। जितनी आग स्वामी जी आजकल
उगल रहे हैं उसके समर्थन में तो कोई भी अपने स्वार्थों के कारण
नहीं बोल रहा पर कोई विरोध करने की हिम्मत भी नहीं कर रहा।
यह भी
अपने आप को दिलासा देने की बात है कि स्वामी जी के शब्दों में "९९प्रतिशत
लोग उनके विचारो से सहमत हैं।आज इतना ही ...... कोशिश करूँगा फ़िर से नियमित लिखूं।

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