होली…. कहते हैं उमंगों- तरंगों का त्यौहार होता है।
(क्योंकि इस समय मौसम में वातावरण में उमंग होती है)
“पर, ये कैसी होली”जब उमंग लाने के लिए शराब पीनी पड़े।
महिलाऐं सोचती होंगी
“सखी री होरी कैसे खेलूं, मैं, शराबी, सांवरिया के संग”।
कैसी बदबू आवे मुहं से, कैसे लगाऊं प्यार से अंग।
सखी री होरी …….
छि ..घिन लागे मोहे ऐसे मरद से, जो नशे में करे हुडदंग।
सखी री होरी …….
कैसे मिलूं मैं उससे गले(गले पड़ जाता है) और कैसे लगाऊं रंग।
सखी री होरी …….
बहुत सही कहा है आपने...आजकल होली और शराब या भांग एक दुसरे का पर्याय हो गए हैं......बेहतरीन रचना है ये आपकी...
ReplyDeleteआपको होली की शुभकामनाएं.
नीरज
होली की ढेर सारी शुभकामनायें....
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