पहाडों की मिटटी,पानी व जवानी,पहाडों से यूँही बह जाते हैं।
मैदानों में जाकर पूरी ताकत से, सारे काम यही संवारते हैं।
अब तो कुछ नौकरियां मिलने लगीं , पर स्वरोजगार के नाम पर,
सरकार,नेता,मंत्री,संतरी, सब यूँही बहकाते हैं।
बेरोजगारों के सपने ,बैंक-मैनेजरों की "मनमानी" की भेंट
चढ़ जाते हैं।
पहाडियों में स्वरोजगार के लिए चेतना जगाने की आवश्यकता है. मैंने काफी पहले इस विषय में यहाँ लिखा है.
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