ताजा प्रविष्ठियां
Sunday, August 30, 2009
जी हाँ जो अभी तक महान हैं उन्हीं की महानता कम होने का डर है
जी हाँ , जो अभी तक महान हैं ,जाहिर है उन्हीं की महानता कम होने का डर है । जिन्हें महान माना ही नहीं उन्हें क्या डर, या जिन्हें दबी-ढंकी आवाज में महान माना, जैसे मज़बूरी हो, उन्हें भी कोई डर नहीं हो सकता , जैसे…. सरदार बल्लभ भाई पटेल,नेताजी सुभाष चंद्र बोस , लाल बहादुर शास्त्री, वीर सावरकर, व अन्य भी बहुत से वे क्रान्तिकारी जिन्हें ,बापू व अंकल भटके हुए समझते थे और इस कारण अंग्रेजो से शाबाशी पाते थे । जिनकी कानूनी पैरवी जिन्ना ने तो करी पर बापू व अंकल ने नहीं करी । आजादी के समय के समझौतों को और घटनाओं को आम जन को पता लगने पर सबसे ज्यादा डर उन्हीं को है जिनके बारे में इतना भ्रम फैलाया गया कि अब ये डर है कि कहीं सच पता चलने पर उनकी इतनी इज्जत भी न रहे जितनी होनी चाहिए थी । जबकि आजादी के समय कुछ समझौते मज़बूरी के कारण भी करने पड़े थे ,जैसा जसवंत सिंह की पुस्तक के बारे में चर्चाएँ पढ़- सुन कर लग रहा है ….उस समय पटेल नंबर वन नहीं थे इसलिए हो सकता है वो मज़बूरी में हों, पर जो नंबर वन थे उनकी मज़बूरी थी या अन्य कोई कारण । इस बात का पता लगने पर हो सकता है उनकी महानता कम हो जाए । ऐसा डर है। इससे किसी के वोट कम हो सकते हैं और किसी के वोट बढ़ भी सकते हैं। पर जसवंत सिंह जैसे लेखक होते रहेंगे (तब भी हुए थे) इतिहासकार तो नहीं पर सच लिख कर कोपभाजन होते हैं। इसीलिए इतिहास को दबाया-छुपाया नहीं जा सकता ।
महात्मा गाँधी को किसलिए महान माना जाता है...?`
महात्मा गाँधी को किसलिए महान माना जाता है… ?
अगर स्वतंत्रता मिलने के लिए महान माना जाता है तो , हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि स्वतंत्रता अकेले उनके प्रयासों से नहीं मिली थी , उनके आन्दोलन में आने से पहले से ही इसके लिए प्रयास आरम्भ हो चुके थे ,
और प्रयास ही नहीं हुए थे ,बल्कि कईयों ने अपनी जान तक देदी थी ।
और अगर अहिंसा के कारण महान माना जाता है तो यह सिद्धांत भी उन्होंने ही दिया था ऐसा नहीं कह सकते । हाँ इस अहिंसावादी सिद्धांत को उन्होंने पूर्ण रूप से जिया था और अपने कुछ अनुयायियों पर इसका प्रभाव छोड़ा था , लेकिन ये तो एकदम झूठ है कि हमें आजादी, बापू के अहिंसात्मक आन्दोलन से मिली ।
पर बापू महान थे तो किसलिए, जो सपना उन्होंने देखा था उसके लिए, कि भारत में स्व का तंत्र होना चाहिए । इसके लिए तो बापू वास्तव में महान थे ,ये और बात है कि उनके अनुयायियों ने उनके सपनों को पूरा नहीं किया। और करते भी क्यों , जब केवल उनकी महानता के किस्से कह-कह कर ही उन्हें लाभ मिलता रहा ,जनता बहलती रही ,लेकिन समझने वाले तब भी समझते थे अब भी समझते हैं ।
अगर स्वतंत्रता मिलने के लिए महान माना जाता है तो , हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि स्वतंत्रता अकेले उनके प्रयासों से नहीं मिली थी , उनके आन्दोलन में आने से पहले से ही इसके लिए प्रयास आरम्भ हो चुके थे ,
और प्रयास ही नहीं हुए थे ,बल्कि कईयों ने अपनी जान तक देदी थी ।
और अगर अहिंसा के कारण महान माना जाता है तो यह सिद्धांत भी उन्होंने ही दिया था ऐसा नहीं कह सकते । हाँ इस अहिंसावादी सिद्धांत को उन्होंने पूर्ण रूप से जिया था और अपने कुछ अनुयायियों पर इसका प्रभाव छोड़ा था , लेकिन ये तो एकदम झूठ है कि हमें आजादी, बापू के अहिंसात्मक आन्दोलन से मिली ।
पर बापू महान थे तो किसलिए, जो सपना उन्होंने देखा था उसके लिए, कि भारत में स्व का तंत्र होना चाहिए । इसके लिए तो बापू वास्तव में महान थे ,ये और बात है कि उनके अनुयायियों ने उनके सपनों को पूरा नहीं किया। और करते भी क्यों , जब केवल उनकी महानता के किस्से कह-कह कर ही उन्हें लाभ मिलता रहा ,जनता बहलती रही ,लेकिन समझने वाले तब भी समझते थे अब भी समझते हैं ।
Saturday, August 29, 2009
हमारे महान नेता कौन होते अगर.......?

(अंकल)नेहरू के नेतृत्व की जगह किसी और के नेतृत्व
में सरकार बनती तो........?
शायद हमारे महान नेताओं में और भी बहुत से स्वतंत्रता
शायद हमारे महान नेताओं में और भी बहुत से स्वतंत्रता
सेनानी जिनको आज भी सरकारें भूल जाती हैं,जिनका योगदान किसी से कम नहीं था, उन्होंने कालेपानी की सजा
उनको, जो अपनी सुविधानुसार अंग्रेजों की कुछ सुविधाजनक
जेलों में आराम करने चले जाते थे ,आम जनता को दिखाने के
लिएअनसन और उपवास रखा करते थे ।
जैसे आज जसवंत सिंह ने जिन्ना को महान बताने के लिए किताब लिखी है ऐसे ही बहुत पहले से और भी बहुत से लोग किताबें लिखते रहे हैं उनमें से एक हैं गुरुदत्त,जिन्होंने उपन्यासों ,
कहानियों को ऐतिहासिक तिथियों के आधार पर लिखा है ।
उनकी एक किताब है "भारत गाँधी-नेहरू की छाया में" (१९६८ में प्रकाशित) जो तथ्यों व तर्कों से परिपूर्ण विवेचना है और इनकी कमियों व गलतियों को उजागर करती है ।
आज देश का इतना बुरा हाल जो है वह अंकल नेहरू की ग़लत
जैसे आज जसवंत सिंह ने जिन्ना को महान बताने के लिए किताब लिखी है ऐसे ही बहुत पहले से और भी बहुत से लोग किताबें लिखते रहे हैं उनमें से एक हैं गुरुदत्त,जिन्होंने उपन्यासों ,
कहानियों को ऐतिहासिक तिथियों के आधार पर लिखा है ।
उनकी एक किताब है "भारत गाँधी-नेहरू की छाया में" (१९६८ में प्रकाशित) जो तथ्यों व तर्कों से परिपूर्ण विवेचना है और इनकी कमियों व गलतियों को उजागर करती है ।
आज देश का इतना बुरा हाल जो है वह अंकल नेहरू की ग़लत
व जिद भरी नीतियों के कारण ही है। क्योंकि भारत की
भोली-भाली जनता ने आँख बंद करके इनपर भरोसा किया था ।
जाहिर है इनकी सरकार न बनती तो शायद पाकिस्तान न बनता ,
जाहिर है इनकी सरकार न बनती तो शायद पाकिस्तान न बनता ,
शायद महान की श्रेणी में कुछ सही और सच्चे आदर्श वादी नेता होते ।
Friday, August 28, 2009
अगर भारत आजाद होते समय विभाजित नहीं होता तो…….?
अगर भारत आजाद होते समय विभाजित नहीं होता तो…….?
इस प्रश्न के कई उत्तर होते हैं ,प्रश्न बेशक एक लाईन का है लेकिन उत्तर लिखने वाले पूरी किताब भी लिख सकते हैं ,क्या पता लिखी भी हो पर मैं यहाँ पर कुछेक बिन्दुओं पर ही केवल प्रकाश डालूँगा ।
शायद एकाध और महान नेता के बारे में हमें पढ़ाया जाता । कभी तो केवल दो ही नेता (गाँधी जी व नेहरू जी) महान बताये जाते थे । पिछले कुछ समय से तीसरे नेता (सर.पटेल) को भी महान बताने लगे । वैसे आम जनता की नजरों में तो अन्य भी कई महान नेता हैं लेकिन उनकी बात करने में सरकारी महानों की महानता का कम होने का डर ,जैसा हमारी सरकार खास कर कांग्रेस सरकार को होने लगता है। ये तो सर.पटेल को भी महान नहीं कहना चाहते थे ,वो तो भला हो हिंदूवादी राजनीती का जिसने बल्लभ भाई पटेल को भी महान कहने के लिए मजबूर कर दिया ।
अब बासठ साल बाद पता लग रहा है कि जिन्ना भी महान थे ,तो फ़िर अकेले जिन्ना ही क्यों ….. ? पकिस्तान अकेले जिन्ना की जिद से तो नहीं बना होगा , पकिस्तान के जो भी नेता होंगे ,अगर देश विभाजित नहीं होता तो वे भी तो हमारे नेता ही होते अपनी सुविधा के अनुसार सरकार उन्हें महान बताती।
अगर भारत विभाजित नहीं होता तो …… राजधानी कहाँ होती ,शायद दिल्ली ही होती ।
अगर भारत विभाजित नहीं होता तो …. शायद आतंकवाद नहीं पनपता । कई सारे प्रश्न दिमाग में उठने लगते हैं इस बात की कल्पना करने में कि भारत आजाद होते समय विभाजित नहीं होता तो….?
इस प्रश्न के कई उत्तर होते हैं ,प्रश्न बेशक एक लाईन का है लेकिन उत्तर लिखने वाले पूरी किताब भी लिख सकते हैं ,क्या पता लिखी भी हो पर मैं यहाँ पर कुछेक बिन्दुओं पर ही केवल प्रकाश डालूँगा ।
शायद एकाध और महान नेता के बारे में हमें पढ़ाया जाता । कभी तो केवल दो ही नेता (गाँधी जी व नेहरू जी) महान बताये जाते थे । पिछले कुछ समय से तीसरे नेता (सर.पटेल) को भी महान बताने लगे । वैसे आम जनता की नजरों में तो अन्य भी कई महान नेता हैं लेकिन उनकी बात करने में सरकारी महानों की महानता का कम होने का डर ,जैसा हमारी सरकार खास कर कांग्रेस सरकार को होने लगता है। ये तो सर.पटेल को भी महान नहीं कहना चाहते थे ,वो तो भला हो हिंदूवादी राजनीती का जिसने बल्लभ भाई पटेल को भी महान कहने के लिए मजबूर कर दिया ।
अब बासठ साल बाद पता लग रहा है कि जिन्ना भी महान थे ,तो फ़िर अकेले जिन्ना ही क्यों ….. ? पकिस्तान अकेले जिन्ना की जिद से तो नहीं बना होगा , पकिस्तान के जो भी नेता होंगे ,अगर देश विभाजित नहीं होता तो वे भी तो हमारे नेता ही होते अपनी सुविधा के अनुसार सरकार उन्हें महान बताती।
अगर भारत विभाजित नहीं होता तो …… राजधानी कहाँ होती ,शायद दिल्ली ही होती ।
अगर भारत विभाजित नहीं होता तो …. शायद आतंकवाद नहीं पनपता । कई सारे प्रश्न दिमाग में उठने लगते हैं इस बात की कल्पना करने में कि भारत आजाद होते समय विभाजित नहीं होता तो….?
Tuesday, August 25, 2009
यक्ष प्रश्न
आजकल जिन्ना प्रकरण के कारण कई बातें उटपटांग सी, मेरे दिमाग में उठ रहीं हैं जिनके बारे में कई बार
सोचा ,कि लिखूं ,पर एक स्पष्ट सी रुपरेखा नहीं बन पाई ,तो,
कुछ सवाल जो मेरे मन में बहुत पहले से उठते रहे हैं कि
१. अगर भारत आजाद होते समय विभाजित नहीं होता तो, क्या होता.... ?
२. विभाजित ही सही, आजाद होने के तुंरत बाद कांग्रेस की सरकार नहीं बनती तो हमारे महान नेता कौन-कौन होते...... ?
३. महात्मा गाँधी को किसलिए महान माना जाता है , अहिंसा के लिए या आजादी के लिए.... ?
४.अगर आजादी के समय के समझौतों को आम जन को पता लगने दें तो क्या किसी की महानता कम होने का डर है.... ?
५.क्या इतिहास को दबाया,छुपाया और झुठलाया जा सकता है,जबकि वह लाखों-करोड़ों लोगों के सामने घटित हुआ हो...... ?
इन सवालों के जवाब क्या हो सकते हैं यह भी बताने कि कोशिश करूँगा जिसका मुझे पता होगा। वैसे आप भी बता सकते हैं ।
सोचा ,कि लिखूं ,पर एक स्पष्ट सी रुपरेखा नहीं बन पाई ,तो,
कुछ सवाल जो मेरे मन में बहुत पहले से उठते रहे हैं कि
१. अगर भारत आजाद होते समय विभाजित नहीं होता तो, क्या होता.... ?
२. विभाजित ही सही, आजाद होने के तुंरत बाद कांग्रेस की सरकार नहीं बनती तो हमारे महान नेता कौन-कौन होते...... ?
३. महात्मा गाँधी को किसलिए महान माना जाता है , अहिंसा के लिए या आजादी के लिए.... ?
४.अगर आजादी के समय के समझौतों को आम जन को पता लगने दें तो क्या किसी की महानता कम होने का डर है.... ?
५.क्या इतिहास को दबाया,छुपाया और झुठलाया जा सकता है,जबकि वह लाखों-करोड़ों लोगों के सामने घटित हुआ हो...... ?
इन सवालों के जवाब क्या हो सकते हैं यह भी बताने कि कोशिश करूँगा जिसका मुझे पता होगा। वैसे आप भी बता सकते हैं ।
मीडिया से सावधान (भाजपा)
भाजपा भी आई मीडिया के उकसावे में,
जिसे चाहे उबार दे ,जिसे चाहे डूबा दे ,
ऐसा करके दिखा दे । ऐसी ताकत भारतीय मीडिया ने बना ली है। क्यों…?
क्योंकि भारत के लोग सही-ग़लत सोचने में अपना दिमाग इस्तेमाल नहीं करना चाहते।
आजकल ये भाजपा के पीछे पड़ा है ,इनके उकसाने पर भाजपा के नेता अपनी जड़ों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं । बिना सोचे –समझे और विचार किए जिन बातों के विरोध में वह अपने वरिष्ठ नेताओं का निष्कासन कर रहे हैं
उन बातों की विवेचना अभी तक केवल मीडिया ने की है। मीडिया किसी भी बात के अर्थ का अनर्थ बना सकता है। ये सभी जानते हैं फ़िर भी ये उसकी बातों में आ रहे हैं ,लगता है एक राजनितिक पार्टी ख़त्म होने के लिए फड़फड़ा रही है। अब अरुण शौरी की बारी है ।
जिसे चाहे उबार दे ,जिसे चाहे डूबा दे ,
ऐसा करके दिखा दे । ऐसी ताकत भारतीय मीडिया ने बना ली है। क्यों…?
क्योंकि भारत के लोग सही-ग़लत सोचने में अपना दिमाग इस्तेमाल नहीं करना चाहते।
आजकल ये भाजपा के पीछे पड़ा है ,इनके उकसाने पर भाजपा के नेता अपनी जड़ों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं । बिना सोचे –समझे और विचार किए जिन बातों के विरोध में वह अपने वरिष्ठ नेताओं का निष्कासन कर रहे हैं
उन बातों की विवेचना अभी तक केवल मीडिया ने की है। मीडिया किसी भी बात के अर्थ का अनर्थ बना सकता है। ये सभी जानते हैं फ़िर भी ये उसकी बातों में आ रहे हैं ,लगता है एक राजनितिक पार्टी ख़त्म होने के लिए फड़फड़ा रही है। अब अरुण शौरी की बारी है ।
Sunday, August 23, 2009
राष्ट्र हित में या स्वयं हित में....?
1 स्टिंग ऑपरेशन सचमुच धारदार हथियार है , और इसका इस्तेमाल अपनी बिरादरी की तरफ़ नहीं करना ।
कभी भी नहीं करना ।

५. जीवित लोगों की प्रतिमाएँ भी स्थापित हो सकती हैं , ऐसा मायावती का सोचना है। (अपने कर्मों के कारण )
कभी भी नहीं करना ।
२ अपने बिजनेस के लिए किसी छोटे दूकानदार की तरह बनते न्यूज चैनल ,कितने अनैतिक होते जा रहे हैं इसी तरह समाचार पत्र भी । न्यूज चैनलों की पोल खोल दी सुधीश पचौरी ने ,दूसरों का शोषण उजागर करने वाले ये चैनल अपने संवाददाताओं को कितना खुश रखते हैं यह पता लगा ।
३सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय न्यायशास्त्र की मीमांसाओं से अनजान वकीलों के अज्ञान पर कहा,.... वकीलों ने अगर पूर्वजों की उपलब्धियों को जाना होता तो आज देश का ये हाल नहीं होता ,....
अंग्रेजों से पॉवर ट्रांसफर करते समय वकीलों ने ही उस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए थे ।
४ प्रधानमंत्री की अम्बानी बंधुओं से अपील, कि "राष्ट्र हित सोचो " पर उन्होंने अपनी रेंकिंग के बारे में सोचना है अरबपति बनने के लिए राष्ट्रहित नहीं सोचा जाता, दुनिया में नंबर वन बनकर भारत का(या अपना) नाम ऊँचा करना है।

५. जीवित लोगों की प्रतिमाएँ भी स्थापित हो सकती हैं , ऐसा मायावती का सोचना है। (अपने कर्मों के कारण )
जब मरने के बाद भरोसा न हो कि अपनी प्रतिमा लगाने वाला कोई होगा तो जीवित रहते ही लगा सकते हैं ।

6.गंगा की सफाई के लिए दो सौ करोड़ रूपये और दिए, पहले दो सौ पचास करोड़ रूपये दिए थे ,

6.गंगा की सफाई के लिए दो सौ करोड़ रूपये और दिए, पहले दो सौ पचास करोड़ रूपये दिए थे ,
शायद भ्रष्ट व्यवस्थाने ईशारा कर दिया ,कि आगामी चुनाव में भ्रष्ट अधिकारीयों से चंदा चाहिए तो और रुपया दो । अब गंगा कि सफाई तो कम दिए गए रुपयों कि सफाई होगी

७.भुखमरी के खिलाफ कानून बनने की वकालत, अम्रत्यसेन ने की ,पर हमें डर है की कहीं हमारी सरकार भुखमरों के खिलाफ कानून न बना दे । या कुछ जो थोड़ा बहुत खा कर जिन्दा हैं उनके खिलाफ कोई कानून न बन जाए ।

७.भुखमरी के खिलाफ कानून बनने की वकालत, अम्रत्यसेन ने की ,पर हमें डर है की कहीं हमारी सरकार भुखमरों के खिलाफ कानून न बना दे । या कुछ जो थोड़ा बहुत खा कर जिन्दा हैं उनके खिलाफ कोई कानून न बन जाए ।
Friday, August 21, 2009
"सरकार चिंतित है"
कुछ सुना आपने , ओह ! सौरी-सौरी-सौरी…….,
समाचार अब सुनने की बात नहीं रहे,देखने की बात हो गए हैं ।
तो … ये कहना चाहिए कि ,कुछ देखा आपने “संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र”भारत की सरकार चिंतित है, ये लो हमारे मित्र ने लिखते-लिखते ही टोक दिया कि वह जब से देखने लायक हुए हैं सरकार को चिंतित ही देखा है। तो यह कहना चाहिए कि, “सरकार चिंतित रहती है”।
चलो जो कुछ भी कहा जाए सवाल तो चिंता का है , हमारा तो ब्लॉग ही चिंता का अड्डा है । चलो अपनी बात पर वापस चलते हैं ।
तो साहब, सरकार चिंतित है, चिंता करने के लिए वैसे ही कम मुद्दे नहीं थे, कि मंदी ने चिंता पैदा कर दी , अब ,क्योंकि ये ग्लोबल मुद्दा था, सभी चिंता कर रहे थे तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ा, कुछ गिनने लायक लोगों और कम्पनियों को इससे असर हो रहा था इसलिए उन्हें कुछ "पैकेज" देकर उनका मुहं बंद कर दिया। पर वह मंदी अपने बच्चे के रूप में महंगाई को छोड़ गई ,ये तो इतनी जल्दी बड़ी हुयी कि कब पैदा हुयी कब जवान हो गई पता ही नहीं चला । सरकार कई और चिंताओं से ग्रस्त थी ,जब सब चिल्लाने लगे तब पता चला ,तब तक देर हो चुकी थी ,करने को कुछ बचा ही नहीं था , जमाखोरों ने जो जमा करना था वह कर चुके थे ,अब उनपर कार्यवाही करने पर पता लगा कि वह ज्यादातर चुनाव के काम आने वाले अपने ही लोग हैं। क्या कर सकते हैं ?अगर सरकार कुछ करती है तो संगठन बिदकता है ,कुछ जमाखोर, विपक्षियों के समर्थक हैं पर उन पर भी कार्रवाही नहीं कर सकते ,वो हमारी पोल खोल देंगे । मंदी से प्रभावितों की तरह कोई पैकेज भी नहीं दे सकते ,क्योंकि महंगाई से प्रभावितों की संख्या ज्यादा है । ज्यादा संख्या वैसे भी भेड़-बकरी की तरह होती है,हांकते रहो – हांकते रहो ,कुछ करेंगे थोड़े ही ,पर चिंता तो लगी रहती है।
ये चिंताएँ कम न थी कि ऊपर से मानसून हर बार दगा दे जाता है जहाँ चाहिए वहां न हो कर जहाँ मर्जी बाढ़ ले आता है ,सूखे की चिंता-गीले (बाढ़ ) की चिंता , आतंकवादियों की चिंता, नकली नोटों की चिंता, पड़ोसियों से चिंता,अपनों (नक्सलियों)से चिंता , भ्रष्टाचार से चिंता, बढ़ते अपराध से चिंता ,उधर विपक्ष की चिंता –इधर हाई कमान की चिंता ,अब क्या हो, सरकार चिंतित है और चिंता अच्छी बात नहीं होती सेहत पर असर पड़ता है ,सरकार ज्यादा चिंता करती है इसीलिए बीमार रहती है,कुछ कर नहीं पाती है…… केवल चिंता ही करती है, इसलिए हम चिंतित हैं ।
समाचार अब सुनने की बात नहीं रहे,देखने की बात हो गए हैं ।
तो … ये कहना चाहिए कि ,कुछ देखा आपने “संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र”भारत की सरकार चिंतित है, ये लो हमारे मित्र ने लिखते-लिखते ही टोक दिया कि वह जब से देखने लायक हुए हैं सरकार को चिंतित ही देखा है। तो यह कहना चाहिए कि, “सरकार चिंतित रहती है”।
चलो जो कुछ भी कहा जाए सवाल तो चिंता का है , हमारा तो ब्लॉग ही चिंता का अड्डा है । चलो अपनी बात पर वापस चलते हैं ।
तो साहब, सरकार चिंतित है, चिंता करने के लिए वैसे ही कम मुद्दे नहीं थे, कि मंदी ने चिंता पैदा कर दी , अब ,क्योंकि ये ग्लोबल मुद्दा था, सभी चिंता कर रहे थे तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ा, कुछ गिनने लायक लोगों और कम्पनियों को इससे असर हो रहा था इसलिए उन्हें कुछ "पैकेज" देकर उनका मुहं बंद कर दिया। पर वह मंदी अपने बच्चे के रूप में महंगाई को छोड़ गई ,ये तो इतनी जल्दी बड़ी हुयी कि कब पैदा हुयी कब जवान हो गई पता ही नहीं चला । सरकार कई और चिंताओं से ग्रस्त थी ,जब सब चिल्लाने लगे तब पता चला ,तब तक देर हो चुकी थी ,करने को कुछ बचा ही नहीं था , जमाखोरों ने जो जमा करना था वह कर चुके थे ,अब उनपर कार्यवाही करने पर पता लगा कि वह ज्यादातर चुनाव के काम आने वाले अपने ही लोग हैं। क्या कर सकते हैं ?अगर सरकार कुछ करती है तो संगठन बिदकता है ,कुछ जमाखोर, विपक्षियों के समर्थक हैं पर उन पर भी कार्रवाही नहीं कर सकते ,वो हमारी पोल खोल देंगे । मंदी से प्रभावितों की तरह कोई पैकेज भी नहीं दे सकते ,क्योंकि महंगाई से प्रभावितों की संख्या ज्यादा है । ज्यादा संख्या वैसे भी भेड़-बकरी की तरह होती है,हांकते रहो – हांकते रहो ,कुछ करेंगे थोड़े ही ,पर चिंता तो लगी रहती है।
ये चिंताएँ कम न थी कि ऊपर से मानसून हर बार दगा दे जाता है जहाँ चाहिए वहां न हो कर जहाँ मर्जी बाढ़ ले आता है ,सूखे की चिंता-गीले (बाढ़ ) की चिंता , आतंकवादियों की चिंता, नकली नोटों की चिंता, पड़ोसियों से चिंता,अपनों (नक्सलियों)से चिंता , भ्रष्टाचार से चिंता, बढ़ते अपराध से चिंता ,उधर विपक्ष की चिंता –इधर हाई कमान की चिंता ,अब क्या हो, सरकार चिंतित है और चिंता अच्छी बात नहीं होती सेहत पर असर पड़ता है ,सरकार ज्यादा चिंता करती है इसीलिए बीमार रहती है,कुछ कर नहीं पाती है…… केवल चिंता ही करती है, इसलिए हम चिंतित हैं ।
Thursday, August 20, 2009
क्या लिखूं
क्या लिखूं –किस पर लिखूं,
स्वयं समस्याओं से जूझते हुए विकास की ओर अग्रसर,
अपने देश पर लिखूं ,..... या ,
जो स्वयं बर्बाद हो चुके ,अब हमें बर्बाद करने की सोच रहे,
ऐसे पड़ोस पर लिखूं ।
भ्रष्ट व्यस्था से त्रस्त, सभी, आम आदमी और भ्रष्टाचारी भी ,
भ्रष्टाचार पर लिखूं , … या ,
सारे अधिकार होते हुए भी ,राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री,चिंतित
और लाचार पर लिखूं ,
नशे से बरबाद होती हुयी जवानी,समाज,परिवार,रिश्ते और
रिश्तेदार पर लिखूं , ….या ,
नशे का बढ़ता व्यापर,व्यापारी और इनसे समृद्ध होती सरकार की
आय पर लिखूं।
राम,कृष्ण,बुद्ध,महावीर,सीता,सावित्री,लक्ष्मीबाई और चेनम्मा के
उज्जवल चरित्र पर लिखूं ,…..या ,
धन के लिए बिकते व दिखाते तन, अतिमहत्वाकांक्षी आधुनिकाओं के
कलुषित मन पर लिखूं ।
ये देश“है”वीर जवानों का, पर लिखूं….या,
ये देश “था”वीर जवानों का पर लिखूं
जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, पर लिखूं …या
अब डाल-डाल पर बिकती शराब की बोतलों और थैलियों पर लिखूं……….. ………………………………………………………………….क्या लिखूं किस पर लिखूं .... ?
स्वयं समस्याओं से जूझते हुए विकास की ओर अग्रसर,
अपने देश पर लिखूं ,..... या ,
जो स्वयं बर्बाद हो चुके ,अब हमें बर्बाद करने की सोच रहे,
ऐसे पड़ोस पर लिखूं ।
भ्रष्ट व्यस्था से त्रस्त, सभी, आम आदमी और भ्रष्टाचारी भी ,
भ्रष्टाचार पर लिखूं , … या ,
सारे अधिकार होते हुए भी ,राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री,चिंतित
और लाचार पर लिखूं ,
नशे से बरबाद होती हुयी जवानी,समाज,परिवार,रिश्ते और
रिश्तेदार पर लिखूं , ….या ,
नशे का बढ़ता व्यापर,व्यापारी और इनसे समृद्ध होती सरकार की
आय पर लिखूं।
राम,कृष्ण,बुद्ध,महावीर,सीता,सावित्री,लक्ष्मीबाई और चेनम्मा के
उज्जवल चरित्र पर लिखूं ,…..या ,
धन के लिए बिकते व दिखाते तन, अतिमहत्वाकांक्षी आधुनिकाओं के
कलुषित मन पर लिखूं ।
ये देश“है”वीर जवानों का, पर लिखूं….या,
ये देश “था”वीर जवानों का पर लिखूं
जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, पर लिखूं …या
अब डाल-डाल पर बिकती शराब की बोतलों और थैलियों पर लिखूं……….. ………………………………………………………………….क्या लिखूं किस पर लिखूं .... ?
Sunday, August 16, 2009
बाबा रामदेव ने सम्भावना सेठ और कश्मीरा शाह की बोलती बंद की
बात “रजत जी” की “आपकी अदालत” की है , जहाँ बाबा रामदेव पर मुकदमा
चल रहा था ,वहां सम्भावना सेठ और कश्मीरा शाह भी आमंत्रित थीं
जो अपने माता-पिता के साथ आयीं थीं , वहां बातचीत में दोनों ने कहा कि हिरोईनों के छोटे कपड़े डिमांड और सप्लाई का हिस्सा हैं जनता जो देखेगी डाईरेक्टर और प्रोड्यूसर वो हमसे करवाएगा ,जनता छोटे कपडों वाला नृत्य देखना पसंद करती है ,तो हमें करना पड़ता है।
कुछ देर बाद सम्भावना ने ये पूछ लिया कि वैसे बाबा जी आपकी योग की डी.वी.डी.इतनी ज्यादा कैसे बिकती हैं ,तो बाबा ने झट से खड़े होकर बताया कि मैं उन्हें पूरे कपड़े पहन कर बनाता हूँ , इस बात को सुन कर दोनों ने हँसते हुए अपना मुहं बंद कर लिया ।
चल रहा था ,वहां सम्भावना सेठ और कश्मीरा शाह भी आमंत्रित थीं
जो अपने माता-पिता के साथ आयीं थीं , वहां बातचीत में दोनों ने कहा कि हिरोईनों के छोटे कपड़े डिमांड और सप्लाई का हिस्सा हैं जनता जो देखेगी डाईरेक्टर और प्रोड्यूसर वो हमसे करवाएगा ,जनता छोटे कपडों वाला नृत्य देखना पसंद करती है ,तो हमें करना पड़ता है।
कुछ देर बाद सम्भावना ने ये पूछ लिया कि वैसे बाबा जी आपकी योग की डी.वी.डी.इतनी ज्यादा कैसे बिकती हैं ,तो बाबा ने झट से खड़े होकर बताया कि मैं उन्हें पूरे कपड़े पहन कर बनाता हूँ , इस बात को सुन कर दोनों ने हँसते हुए अपना मुहं बंद कर लिया ।
Subscribe to:
Posts (Atom)