आडवणी जी ने इतनी महत्वपूर्ण बात बोल दी और कोई हलचल नहीं हुयी । क्यों................................... ?
(क्या ये एक ऐसे दिए की लौ का फड़फड़ाना है जिसका तेल ख़त्म हो चुका हो।)
नहीं ………………………………………………तो !
क्या कहें मीडिया को जो बात का बतंगड़ बना देता है उसकी नजर इस बात पर क्यों नहीं पड़ी..?
क्या नेहरू जी अब महान नहीं रहे या उनके किये-कराये को दबाना छुपाना ही मकसद है, जो कांग्रेस पिछले साठ-बासठ सालों से करने में सफल रही है। तो क्या वर्तमान में मीडिया कांग्रेस का झंडाबरदार बना हुआ है ।
जो आडवाणी जी ने कहा है उस पर बातचीत होनी चाहिए…मंथन होना चाहिए… आजादी के बाद ही नहीं उससे पहले के क्रियाकलापों पर भी बहस होनी चाहिए।
पर ये सब, मीडिया नहीं चाहता; और जो मीडिया चाहता है वह ही हमें देखना होगा।
मज़बूरी है... जैसे हमारे इतिहासज्ञ हमें गलत इतिहास पढ़ाते रहे हैं।
क्या ये सब कांग्रेस और वामपंथियों की मिलीभगत ही है जिसे नेहरु जी ही बना कर गए थे ।
नेहरूजी कि देन तो है ही .पाक के कबायली हमले के बाद १३ जनवरी १९४८ को केंद्रीय कबिनेट ने फैसला किया कि क्यूंकि पाक ने कश्मीर का एक बड़ा भू भाग हमला कर कब्ज़ा लिया है इस लिए उसे ५५ करोड़ कि देनदारी न दी जाए। किन्तु गांधीजी के कहने पर नेहरूजी ने यह फैसला उसी दिन बदल दिया। जाहिर है इस फैसले से हमने पाक का कश्मीर के उस हिस्से पर अधिकार मान लिया।फिर नेहरूजी मसला यू.एन.ओ .में ले गाये .
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