सब कुछ महंगा हो
सबसे ज्यादा महँगाई की मार इन्ही चीजों पर पड़ी है।
और यही मूल आवश्यक्तायें भी हैं, रोटी; का अर्थ खाने-पीने का सभी सामान,
कपडा का अर्थ पहनने-ओढने का सब सामान और मकान का अर्थ रहने का सुविधाओं से युक्त,
खाने-नहाने-सोने के लिए एकांत सी जगह।
अब साहब प्रकृति का नियम है कि यहाँ सब कुछ बढ़ता है,घटता कुछ नहीं।
ऐसे ही महँगाई भी बढ़ेगी ही बढ़ेगी, इसमें चिंता की कोई बात नहीं, क्योंकि जब-जब कोई समस्या उत्पन्न होती है; तो उसका समाधान भी अविष्कृत होता है जैसे चीनी की बात पर हमारे कृषि मंत्री महोदय ने आसान सा उपाय बता दिया कि चीनी खाओ ही मत। चीनी ना खाने से कोई मर तो नहीं जायेगा; उनके चेले-चपाटों ने तो तुरंत घोषणा कर दी- हम चीनी नहीं खायेंगे।
वास्तव में ये बात किसी को भी पहले क्यों नहीं सूझी; जब तक चीनी की खोज नहीं हुयी थी तब भी तो बिना चीनी खाए जीते होंगे। ऐसे ही रोटी, कपडा और मकान की खोज होने से पहले भी तो मनुष्य जिन्दा रहता था । तो आज भी बिना कुछ खाए जिन्दा रहना क्यों ना सीखा जाये ।
हमारे ऐसे महान ऋषि तुल्य मंत्री, भगवान् उनका मुहं ना खुलवाये;क्योंकि उनको वाक सिद्धि है इधर बोलते हैं उधर महँगाई दो-चार कदम बढ़ जाती है। "जैसे जमाखोरों को इशारा कर रहे हों" ,ऐसा हमें लगता है पर शायद होगा नहीं।
ये बातें किसी अर्थशास्त्री,किसी वैज्ञानिक को नहीं सूझी हमारे अदने से कृषि मंत्री को सूझ गयी , उन्होंने देश के लोगों के प्रति नमक का हक़ अदा कर दिया। उनके चेले तो उनके उपदेशों पर चलने लगे जल्द ही देश वासी भी इस बारे में सोचें।
अब क्या कहे....हमारे मंत्री तो सभी पहुँचे हुए संत महात्मा हैं...और धन्य हैं हमारे देश वासी जो चुपचाप महँगाई की मार सहते हुए जीते रहते हैं और उफ भी नही करते....तभी तो कहते हैं हमारा भारत महान!!
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