“सरकारी नौकर”या(ब्लैक मेलर)
बेचारे; हड़ताल (ब्लेकमेल) न
करें तो क्या करें।
इनको जो मिलता है (वेतन) उसमे ये
भूखों मर रहे हैं।
कहीं और ये जा नहीं सकते(नौकरी के लिए)।
इन्हें आराम करने की आदत पड़ गई है इसलिए।
मौका (देश को परेशान)देख कर वार
करना ही तो इनके नेताओं की योग्यता है।
यूनियन लीडर हैं।( हराम की नहीं खाते)
वो ज़माना गया जब अपने से नीचे वाले को
देख कर संतोष करने की कहानियाँ सुनाई
जाती थी। आज देश में १२ करोड़ लोग पूरे दिन में
केवल ८ रुपये कमाते हैं।तो क्या ? सरकारी
नौकरों व नेताओं को भुखमरी से बचने को
हड़ताल करने का अधिकार सविंधान ने दे रखा है।
कविता लिखना आसान है.. मगर किसी विषय में पूर्ण जानकारी न होने से कविता आधी अधूरी ही रहती है... जिस हडताल की बात आप कर रहे हैं उसे तीन बार टाला गया इस उम्मीद से कि सरकार के कानों पर जूं रेंगेगी मगर नहीं..दस साल में होने वाली बेतन बढोतरी के लिये १२बें साल में जब कुछ किया जाये तो मेरे ख्याल से यह अनुचित नहीं है.. जब कि मंहगाई महीनों के हिसाव से बढ रही है...
ReplyDeleteजो कंपनियां मुनाफ़ा कमा रही हैं और देश की रीढ हैं वह ही शोषण का शिकार हो क्या यह उचित है... सोचियेगा और इस पर एक कविता लिखियेगा तो सार्थक लगेगी...
जहां तक ८ रुपये दिहाडी का स्वाल है वहां बहुत से राजनेता बिना कुछ किये करोडॊं कमा रहे हैं... किन्ही दो को तोलने के लिये बहुत से आयाम हैं . गधे और घोडे एक ही तरह से नहीं हांगे जाते..और जिन लोंगों की आप बात कर रहे हैं वह गोल्ड है...कवाड नहीं
ReplyDeleteमोहिन्दर जी, यहाँ गधे और घोड़े की उपमा और तुलना ठीक नहीं है… आम जनता से जुड़े सरकारी कर्मचारी जब हड़ताल करते हैं तो दुःख होता ही है, चाहे वह डॉक्टर हों, वकील हों या बैंक अधिकारी… कौन नहीं जानता कि पेट्रोल-डीज़ल में मिलावट का एक बड़ा रैकेट है जिसमें इन्हीं अधिकारियों, नेताओं का गठजोड़ काम करता है (यानी गधे-घोड़े मिलकर काम करते हैं), इसके खिलाफ़ कितनी बार हड़ताल हुई है? जनता जो पहले से ही त्रस्त है उसे "संगठन" के सहारे ब्लैकमेल करना कहीं से भी उचित नहीं है… क्योंकि देश के अधिकतर सरकारी कर्मचारियों में "अधिकार-हक" की भावना का जोर ज्यादा है, "कर्तव्य" का नहीं… विरोध के लिये हड़ताल के अलावा और भी कई रास्ते निकाले जा सकते हैं… लेकिन फ़िर "नेतागिरी" नहीं चमकेगी…
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