रक्ष: का मतलब राक्षस होता है।
श्रीरामसेना मतलब “वानर सेना”
इन्होने “वही” किया जो “वानर करते हैं” ।
“न्यूज चैनल”
इस आधार पर कुछेक न्यूज चैनलों ने (एन.डी. टी.वि.विनोद दुआ लाइव २९.१.०९)
संस्कृति और स्वतंत्रता को मुद्दा बना कर संस्कृति के ठेकेदारों को बहुत ललकारा।
कुछ को अपने सामने बुला कर (कुछ को फोन पर) सवाल-जवाब भी किए।
जिस तरह “ रंभाती हुयी भैंस के आगे बीन बजाओ कोई नही सुन पायेगा”
वह स्वयं क्या सुनेगी, इन्होंने भी नहीं सुना। कोई फिजा-चाँद को “ब्रेक” ले
लेकर बेचता है तो कोई पब कल्चर को सही ठहराने के लिए श्रीराम सेना के
हमले की आड़ लेकर संस्कृति और संस्कारों पर प्रश्नचिंह लगाता है।
समाज के ठेकेदारों को ललकारता है कि यही संस्कृति है ?
“जवाब”
मैं बता दूँ , बेशक श्री रामसेना ने अतिवादी तरीका अपनाया जो ग़लत था।
लेकिन; जो कार्य , उन्होंने हाथ-पैर चला कर किया ,वही कार्य न्यूज चैनल
गाल बजा कर रहे हैं।पूरी हिंदू सभ्यता को ही कोसने लगे हैं। भारत एकपितावादी
संस्कृति पर आस्था रखने वाला देश है। यहाँ जितने धर्म और संस्कृतियाँ हैं सभी एकपितावादी संस्कृति पर विश्वास करने वाले हैं। बहुपितावादी चलन जंगली
जानवरों में होता है।दुर्भाग्य से यही चलन कुछ पाश्चात्य देशों में भी है। और
हमारे यहाँ भी विदेशियों की जूठन खाकर इसके कुछ समर्थक पैदा हो गए हैं ,वही इस संस्कृति को बढावा देना चाहते हैं।और इस संस्कृति के ठेकेदार बन बैठे हैं। उनके लिए वही श्रेष्ठ है, कई बाप वाले ही अपनी बहन- बेटियों को पबकल्चर अपनाने दे सकते हैं।
ये तर्क तो ग़लत हैं की पुरूष भी ऐसा ही करते हैं, अगर कोई नियम-कानून
तोड़ता है या कीचड़ में लोटपोट हो रहा है तो सभी उसे देख कर वैसा ही करने
लगें।
ताजा प्रविष्ठियां
Friday, January 30, 2009
Monday, January 26, 2009
गणतंत्रदिवस 09
एक और" गणतंत्र दिवस"
कल से फिर भूल जायेंगे,आज झंडे फहराएंगे,नारे लगायेंगे भाषण सुनायेंगे,देशभक्ति के गीत गाएंगे कल से फिर भूल जायेंगे। क्योंकि सब दिखावे के लिए होता है। भीड़ के नेता ही जब दिखावा करते आ रहे हों(पिछले ६० सालों से)तो भीड़ तो नेताओं की पिछलग्गू होती ही है।
पर किसलिए?
केवल पैसे के लिए।
पर ये(पैसे के लिए भ्रष्ट)नहीं जानते की "पैसा भी केवल दिखावा ही करता है"। बड़ा छलिया होता है।
पैसे से अगर जिन्दा रहा जा सकता या सम्मान प्राप्त किया जा सकता तो बड़े - बड़े भ्रष्ट(या इमानदार भी)आज पूरी दुनिया पर छाये होते मरते नहीं।
" देशभक्ति"
देशभक्ति,सबके भीतर है, पर केवल दिखाने के लिए। "भारत माता की जय" सब बोलते हैं,पर माता से माँ जैसा व्यव्हार कोई नहीं करता। सभी इस कोशिश में होते हैं की कैसे लूटने का मौका मिले। इसीतरह क्रांतिकारियों को याद तो सब करते हैं पर उनके आदर्शों, उनके उसूलों से सब कन्नी कट जाते हैं।
किसलिए?
शायद पैसे के लिए;
ये भूल जाते हैं की उन्होंने कितने प्रलोभनों को ठुकरा कर फांसी और गोली चुनी थी।
तब भी लालची(भ्रष्ट) लोग सम्मान प्राप्त करने के लिए जुगाड़ लगाते थे आज भी कुछ ऐसे ही लोगों को सम्मान प्राप्त करने में शर्म नहीं आती। इन सम्मानितों को ये अहसास भी नहीं होता की साधारण जनता के मन में इनके प्रति कितना सम्मान है। इनके पाले हुए कुछ लोगों के द्वारा अपनी जय-जयकार से ये लोग मुग्ध रहते हैं।
सौ में निन्यानब्बे बेईमान, फिर भी मेरा देश महान।
वास्तव में!
केवल सौवे ईमानदार व्यक्ति के कारण अगर मेरा देश महान हो सकता है तो ,
अगर सौ में से निन्यानब्बे ईमानदार होते तो
क्या होता ?
जारी..........
कल से फिर भूल जायेंगे,आज झंडे फहराएंगे,नारे लगायेंगे भाषण सुनायेंगे,देशभक्ति के गीत गाएंगे कल से फिर भूल जायेंगे। क्योंकि सब दिखावे के लिए होता है। भीड़ के नेता ही जब दिखावा करते आ रहे हों(पिछले ६० सालों से)तो भीड़ तो नेताओं की पिछलग्गू होती ही है।
पर किसलिए?
केवल पैसे के लिए।
पर ये(पैसे के लिए भ्रष्ट)नहीं जानते की "पैसा भी केवल दिखावा ही करता है"। बड़ा छलिया होता है।
पैसे से अगर जिन्दा रहा जा सकता या सम्मान प्राप्त किया जा सकता तो बड़े - बड़े भ्रष्ट(या इमानदार भी)आज पूरी दुनिया पर छाये होते मरते नहीं।
" देशभक्ति"
देशभक्ति,सबके भीतर है, पर केवल दिखाने के लिए। "भारत माता की जय" सब बोलते हैं,पर माता से माँ जैसा व्यव्हार कोई नहीं करता। सभी इस कोशिश में होते हैं की कैसे लूटने का मौका मिले। इसीतरह क्रांतिकारियों को याद तो सब करते हैं पर उनके आदर्शों, उनके उसूलों से सब कन्नी कट जाते हैं।
किसलिए?
शायद पैसे के लिए;
ये भूल जाते हैं की उन्होंने कितने प्रलोभनों को ठुकरा कर फांसी और गोली चुनी थी।
तब भी लालची(भ्रष्ट) लोग सम्मान प्राप्त करने के लिए जुगाड़ लगाते थे आज भी कुछ ऐसे ही लोगों को सम्मान प्राप्त करने में शर्म नहीं आती। इन सम्मानितों को ये अहसास भी नहीं होता की साधारण जनता के मन में इनके प्रति कितना सम्मान है। इनके पाले हुए कुछ लोगों के द्वारा अपनी जय-जयकार से ये लोग मुग्ध रहते हैं।
सौ में निन्यानब्बे बेईमान, फिर भी मेरा देश महान।
वास्तव में!
केवल सौवे ईमानदार व्यक्ति के कारण अगर मेरा देश महान हो सकता है तो ,
अगर सौ में से निन्यानब्बे ईमानदार होते तो
क्या होता ?
जारी..........
Friday, January 23, 2009
नेताजी और नेता
नेताजी (२३जन)
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
तब गुलामी के विरूद्ध अंग्रेजों से लड़े थे
आज के (ज्यादातर)नेता हमें
गुलाम बनने के लिए आपस
में ही लड़ते हैं ।
पंजाब
बाप मु.मंत्री
बेटा उप मु. मंत्री बड़ा पितृभक्त बेटा है
वरना पहले(इतिहास में)तो बाप का गला कट कर सीधे बादशाह
ही बनते थे।
हाँ पंजाब वालों के(मु. म.के) खानदान के अन्य लोग बड़े लल्लू
हैं । मंत्रियों के और भी कई पद होते हैं। (इन्हें नहीं पता शायद )
हाँ दादाजी को राज्यपाल बनाना क्यों की उनकी चलनी नहीं है।
सारे जहाँ से अच्छा…….
अतीत पर आधारित देशभक्ति गीत ही अभी तक सुने हैं
भविष्य पर आधारित देशभक्ति गाने साथ में स्वदेशी
के लिए और मानवतावादी गाने व भजन सुनने हैं
तो सुबह ५-३० से ७-३० तक आस्था चैनल पर बाबा
रामदेव का कार्यक्रम देखें । साथ में प्राणायाम करके
निरोग रहें।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
तब गुलामी के विरूद्ध अंग्रेजों से लड़े थे
आज के (ज्यादातर)नेता हमें
गुलाम बनने के लिए आपस
में ही लड़ते हैं ।
पंजाब
बाप मु.मंत्री
बेटा उप मु. मंत्री बड़ा पितृभक्त बेटा है
वरना पहले(इतिहास में)तो बाप का गला कट कर सीधे बादशाह
ही बनते थे।
हाँ पंजाब वालों के(मु. म.के) खानदान के अन्य लोग बड़े लल्लू
हैं । मंत्रियों के और भी कई पद होते हैं। (इन्हें नहीं पता शायद )
हाँ दादाजी को राज्यपाल बनाना क्यों की उनकी चलनी नहीं है।
सारे जहाँ से अच्छा…….
अतीत पर आधारित देशभक्ति गीत ही अभी तक सुने हैं
भविष्य पर आधारित देशभक्ति गाने साथ में स्वदेशी
के लिए और मानवतावादी गाने व भजन सुनने हैं
तो सुबह ५-३० से ७-३० तक आस्था चैनल पर बाबा
रामदेव का कार्यक्रम देखें । साथ में प्राणायाम करके
निरोग रहें।
Wednesday, January 21, 2009
ओबामा
वैलकम ओबामा
अमरीका में बदलाव आरम्भ
अमेरिकी मंदी के दौर में
पचास हजार डॉलर में टिकटबिके
तो मंदी कहाँ रही
हो गया बदलाव आरम्भ
अमरीका में बदलाव आरम्भ
अमेरिकी मंदी के दौर में
पचास हजार डॉलर में टिकटबिके
तो मंदी कहाँ रही
हो गया बदलाव आरम्भ
Monday, January 19, 2009
मीडिया 2
मीडिया को बधाई अपनी आजादी बचा ली(प्र.मंत्री ने आश्वासन दे दिया)
अपने अधिकारों के प्रति इसी तरह की जागरूकता दिखानी चाहिए।
इनके कर्तव्यों के प्रति कोई और क्यों पूछे या कहे; ये अपने आप सोचेंगे।
चैनल इनके, अधिकार इनके, तो कर्तव्य (या करतब) भी इनके, किसी सरकार या
नेता की हिम्मत कैसे हो इनसे कुछ कहने की।
इनको हथियारों का प्रयोग सिखाया ही ऐसा है कि ये भाई बहन को लड़वा दे( संजयदत्त)।
खुलेआम इधर की उधर लगाने में इन्हें महारत हासिल है , इसी हथियार से
ये पार्टियों और नेताओं का बंटाधार करवा देते हैं । जिस तरह पैसा सबसे ज्यादा
कमाने वाला ही सबसे सफल माना जाता है वही मज़बूरी इनकी भी है नंबर एक बनने
के लिए इन्हें जिस हद तक जाना पड़े ये जाते हैं अब ये इनकी कुशलता ही है कि ये अपनी
कमियां छुपा लेते हैं , इन्हें बिजनेस भी तो देखना है जिन ख़बरों से विज्ञापन ज्यादा मिलें
उन्हें दिनभर दिखाना ही पड़ता है इसमें "नैतिकता क्या देखनी"जनता का भरोसा तो है ही।
वैसे भी कौन सी जनता इतनी समझदार है कि इनकी चालाकियों को समझे ,और समझ भी
ले तो कर क्या सकती है अगर कुछ करे भी तो दिखाना-बताना तो इन्होने ही है। न्यूज चैनल के नाम पर विज्ञापन चैनल चलाना क्या ऐरे-गैरों के बस की बात है। चार घंटे भी समाचार दिखा देते हैं तो अहसान समझो । इनकी आपसी एकता ऐसी कि किसी की भी गलती को ये अपने चैनल पर नहीं दिखाते । इनकी नैतिकता का ही तकाजा है कि कभी-कभी ये पर्यावरण के लिए ,देशभक्ति के लिए ,बाढ़ के लिए सहायता को अपने चैनल का सदुपयोग भी कर लेते हैं अब ये अलग बात है कि उसके लिए भी पैसा जनता कि जेब से ही निकाला जाता है। बिजनेस कि कुछ मज़बूरी इनकी भी है । वरना इनकी आत्मा भी इन्हें धिक्कारती तो होगी ही । पर कितनीं मजबूरियां हैं कौन बताए । अब देखो न पिछले कई सालों से बाबा रामदेव पूरे संसार में प्राणायाम से गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों को स्वस्थ बना रहे हैं आज भारत को बाबा रामदेव जैसे नेतृत्व की जरुरत है (नेता केवल राजनीती में ही नहीं होते) इनके चैनलों पर वह एकाध मिनट से ज्यादा नहीं दीखते। भारत का कोई बाबा पूरे विश्व में योग और प्राणायाम की धूम मचा रहा हो अभी तक हजारों रोगियों को निरोगी बना चुका हो पर इनकी खुली नजरों से दूर हो आख़िर कारण क्या है कारण ये है कि इनके चैनलों की जो टी आर पी रेटिंग
अपने अधिकारों के प्रति इसी तरह की जागरूकता दिखानी चाहिए।
इनके कर्तव्यों के प्रति कोई और क्यों पूछे या कहे; ये अपने आप सोचेंगे।
चैनल इनके, अधिकार इनके, तो कर्तव्य (या करतब) भी इनके, किसी सरकार या
नेता की हिम्मत कैसे हो इनसे कुछ कहने की।
इनको हथियारों का प्रयोग सिखाया ही ऐसा है कि ये भाई बहन को लड़वा दे( संजयदत्त)।
खुलेआम इधर की उधर लगाने में इन्हें महारत हासिल है , इसी हथियार से
ये पार्टियों और नेताओं का बंटाधार करवा देते हैं । जिस तरह पैसा सबसे ज्यादा
कमाने वाला ही सबसे सफल माना जाता है वही मज़बूरी इनकी भी है नंबर एक बनने
के लिए इन्हें जिस हद तक जाना पड़े ये जाते हैं अब ये इनकी कुशलता ही है कि ये अपनी
कमियां छुपा लेते हैं , इन्हें बिजनेस भी तो देखना है जिन ख़बरों से विज्ञापन ज्यादा मिलें
उन्हें दिनभर दिखाना ही पड़ता है इसमें "नैतिकता क्या देखनी"जनता का भरोसा तो है ही।
वैसे भी कौन सी जनता इतनी समझदार है कि इनकी चालाकियों को समझे ,और समझ भी
ले तो कर क्या सकती है अगर कुछ करे भी तो दिखाना-बताना तो इन्होने ही है। न्यूज चैनल के नाम पर विज्ञापन चैनल चलाना क्या ऐरे-गैरों के बस की बात है। चार घंटे भी समाचार दिखा देते हैं तो अहसान समझो । इनकी आपसी एकता ऐसी कि किसी की भी गलती को ये अपने चैनल पर नहीं दिखाते । इनकी नैतिकता का ही तकाजा है कि कभी-कभी ये पर्यावरण के लिए ,देशभक्ति के लिए ,बाढ़ के लिए सहायता को अपने चैनल का सदुपयोग भी कर लेते हैं अब ये अलग बात है कि उसके लिए भी पैसा जनता कि जेब से ही निकाला जाता है। बिजनेस कि कुछ मज़बूरी इनकी भी है । वरना इनकी आत्मा भी इन्हें धिक्कारती तो होगी ही । पर कितनीं मजबूरियां हैं कौन बताए । अब देखो न पिछले कई सालों से बाबा रामदेव पूरे संसार में प्राणायाम से गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों को स्वस्थ बना रहे हैं आज भारत को बाबा रामदेव जैसे नेतृत्व की जरुरत है (नेता केवल राजनीती में ही नहीं होते) इनके चैनलों पर वह एकाध मिनट से ज्यादा नहीं दीखते। भारत का कोई बाबा पूरे विश्व में योग और प्राणायाम की धूम मचा रहा हो अभी तक हजारों रोगियों को निरोगी बना चुका हो पर इनकी खुली नजरों से दूर हो आख़िर कारण क्या है कारण ये है कि इनके चैनलों की जो टी आर पी रेटिंग
की जाती है वह विज्ञापनों की संख्या पर आधारित होती है जिसके पास ज्यादा एड वह उतना बड़ा चैनल (नाम के न्यूज चैनल, नंबर मिलते हैं विज्ञापन के ) विज्ञापन ज्यादातर मल्टीनेशनल कम्पनियों के होते हैं और बाबा रामदेव इन विदेशी कम्पनियों के बहिस्कार की बात जितने जोरदार तरीके से करते हैं उससे इन कम्पनियों के करता-धर्ताओं का खून वैसे ही सूख जाता है तो बाबा रामदेव को ये चैनल कैसे दिखाएँ इनकी रोटी(विज्ञापन)बंद न हो जाए ये कम्पनियां विज्ञापन देना बंद कर देंगी । ये इनकी शायद मज़बूरी ही है । वरना आजकल बाबा रामदेव जितना बड़ा यज्ञ देशभक्ति का कर रहे हैं लगता है भारत का नया दौर आने वाला है पर इन न्यूज चैनलों को वह तब दिखाई देगा जब उसकी ख़बर से इनकी कमाई होने की उम्मीद होगी ।
Thursday, January 15, 2009
मीडिया
टी वी चैनल वालों ने मिली हुयी आजादी
को बन्दर के हाथ का उस्तरा बना दिया।
पर अब सरकार को चाहिए कि उस्तरा
हाथ से छोड़ने का मौका इन्हें ही दे ।
या उस्तरा छीन ले , हाँ; डंडा जरुर थमा
दे। (बिना डंडे का दरोगा भी शोभा
नहीं देता)।
को बन्दर के हाथ का उस्तरा बना दिया।
पर अब सरकार को चाहिए कि उस्तरा
हाथ से छोड़ने का मौका इन्हें ही दे ।
या उस्तरा छीन ले , हाँ; डंडा जरुर थमा
दे। (बिना डंडे का दरोगा भी शोभा
नहीं देता)।
क्रिकेट
आई सी सी की रेंकिंग
गावस्कर, सचिन व अन्य
बीसवें स्थान के बाद ,लारा भी
बहुत पीछे । लगता है की आई सी सी वालों
का कंप्यूटर बाबा आदम के ज़माने का हो
गया है या इनके दिमाग के सॉफ्टवेयर में
फाल्ट आ गया । (कहीं तो बिना बात के गोल्डन ग्लोब मिल
रहा है कहीं सबसे ज्यादा करके भी नजरंदाज किया जा रहा है )।
गावस्कर, सचिन व अन्य
बीसवें स्थान के बाद ,लारा भी
बहुत पीछे । लगता है की आई सी सी वालों
का कंप्यूटर बाबा आदम के ज़माने का हो
गया है या इनके दिमाग के सॉफ्टवेयर में
फाल्ट आ गया । (कहीं तो बिना बात के गोल्डन ग्लोब मिल
रहा है कहीं सबसे ज्यादा करके भी नजरंदाज किया जा रहा है )।
गोल्डन ग्लोब
“संगीतकार ऐ आर रहमान को पुरस्कार”
(लगता है, सच में आने वाला समय
भारत और भारतीयों का है; तभी तो,)
जिस गीत में “जय हो” के आलावा कुछ समझ
नहीं आ रहा उसे पुरस्कार मिल जाना
किस्मत खुल जाना ही है।
तभी स्वयं रहमान को भी "अनबिलीवेबल"
लगा। इनके और गाने इससे ज्यादा अच्छे हैं
(लगता है, सच में आने वाला समय
भारत और भारतीयों का है; तभी तो,)
जिस गीत में “जय हो” के आलावा कुछ समझ
नहीं आ रहा उसे पुरस्कार मिल जाना
किस्मत खुल जाना ही है।
तभी स्वयं रहमान को भी "अनबिलीवेबल"
लगा। इनके और गाने इससे ज्यादा अच्छे हैं
Wednesday, January 14, 2009
मकर संक्रांति
“उत्तरायणी”
शुभ का आरम्भ;
त्यौहारों का आरम्भ;
उजियारे का आरम्भ;
उल्लास का आरम्भ ;
“परंपरागत पर्वों” के बारे में
“बड़े शहरों” में रहने वालों को
कम ही पता होता है।
हाँ; जो "अपने मूल से जुड़े"होते हैं;
वह इन त्यौहारों को जानते व मानते हैं।
शुभ का आरम्भ;
त्यौहारों का आरम्भ;
उजियारे का आरम्भ;
उल्लास का आरम्भ ;
“परंपरागत पर्वों” के बारे में
“बड़े शहरों” में रहने वालों को
कम ही पता होता है।
हाँ; जो "अपने मूल से जुड़े"होते हैं;
वह इन त्यौहारों को जानते व मानते हैं।
Friday, January 9, 2009
गांधीगिरी
मजबूर(बंधुआ मजदुर) पार्टी कार्यकर्त्ता
टी वी चैनल (कमाई के लिए मज़बूरी)
संजय दत्त की (गाँधी गिरी) जय- जय बोलेंगे ही।
फिल्म की कथा- पटकथा लिखने वाला ऐसा
नहीं लिखता तो न संजय दत्त होता न अमिताभ
बच्चन।लेखक गुमनाम ही रहा।
अब चुनाव में देखना है की आम
वोटर किस स्तर तक भोला(मुर्ख)है।
टी वी चैनल (कमाई के लिए मज़बूरी)
संजय दत्त की (गाँधी गिरी) जय- जय बोलेंगे ही।
फिल्म की कथा- पटकथा लिखने वाला ऐसा
नहीं लिखता तो न संजय दत्त होता न अमिताभ
बच्चन।लेखक गुमनाम ही रहा।
अब चुनाव में देखना है की आम
वोटर किस स्तर तक भोला(मुर्ख)है।
ब्लैकमेलर
“सरकारी नौकर”या(ब्लैक मेलर)
बेचारे; हड़ताल (ब्लेकमेल) न
करें तो क्या करें।
इनको जो मिलता है (वेतन) उसमे ये
भूखों मर रहे हैं।
कहीं और ये जा नहीं सकते(नौकरी के लिए)।
इन्हें आराम करने की आदत पड़ गई है इसलिए।
मौका (देश को परेशान)देख कर वार
करना ही तो इनके नेताओं की योग्यता है।
यूनियन लीडर हैं।( हराम की नहीं खाते)
वो ज़माना गया जब अपने से नीचे वाले को
देख कर संतोष करने की कहानियाँ सुनाई
जाती थी। आज देश में १२ करोड़ लोग पूरे दिन में
केवल ८ रुपये कमाते हैं।तो क्या ? सरकारी
नौकरों व नेताओं को भुखमरी से बचने को
हड़ताल करने का अधिकार सविंधान ने दे रखा है।
बेचारे; हड़ताल (ब्लेकमेल) न
करें तो क्या करें।
इनको जो मिलता है (वेतन) उसमे ये
भूखों मर रहे हैं।
कहीं और ये जा नहीं सकते(नौकरी के लिए)।
इन्हें आराम करने की आदत पड़ गई है इसलिए।
मौका (देश को परेशान)देख कर वार
करना ही तो इनके नेताओं की योग्यता है।
यूनियन लीडर हैं।( हराम की नहीं खाते)
वो ज़माना गया जब अपने से नीचे वाले को
देख कर संतोष करने की कहानियाँ सुनाई
जाती थी। आज देश में १२ करोड़ लोग पूरे दिन में
केवल ८ रुपये कमाते हैं।तो क्या ? सरकारी
नौकरों व नेताओं को भुखमरी से बचने को
हड़ताल करने का अधिकार सविंधान ने दे रखा है।
Thursday, January 8, 2009
सिबू सोरेन
हाय री सिबू सोरेन की किस्मत(कर्मों का फल)
जेल के अलावा कहीं
ठौर नहीं
जनता का निर्णय सर आखों पर
न्याय पालिका व कार्यपालिका को नेताओं द्वारा
अंगूठा दिखने को, जनता का थप्पड़।
बड़े जागरूक वोटर हैं,
मुख्य मंत्री को हराने का इतिहास बना दिया।
जाने कितने नेताओं का खून सूख गया होगा।
जेल के अलावा कहीं
ठौर नहीं
जनता का निर्णय सर आखों पर
न्याय पालिका व कार्यपालिका को नेताओं द्वारा
अंगूठा दिखने को, जनता का थप्पड़।
बड़े जागरूक वोटर हैं,
मुख्य मंत्री को हराने का इतिहास बना दिया।
जाने कितने नेताओं का खून सूख गया होगा।
घोटालेबाज
सत्यम का (असली) सत्य
(मैनेजमेंट) "शिक्षा की सार्थकता"
येनकेन प्रकारेण सफल (पैसा कमाने में। )
होने की शिक्षा ही तो "इन" जैसे लोगों को दी जाती
है। "उच्च शिक्षण संस्थानों" (मैनेजमेंट)
में केवल पैसे का मैनेजमेंट ही तो सिखाया
जाता है। जो "मैनेज" करने में फेल हुआ
"घोटालेबाज" मान लिया गया। जब तक स्वयं
नहीं बताया तब तक तो "गुडमैन" था।
(मैनेजमेंट) "शिक्षा की सार्थकता"
येनकेन प्रकारेण सफल (पैसा कमाने में। )
होने की शिक्षा ही तो "इन" जैसे लोगों को दी जाती
है। "उच्च शिक्षण संस्थानों" (मैनेजमेंट)
में केवल पैसे का मैनेजमेंट ही तो सिखाया
जाता है। जो "मैनेज" करने में फेल हुआ
"घोटालेबाज" मान लिया गया। जब तक स्वयं
नहीं बताया तब तक तो "गुडमैन" था।
Tuesday, January 6, 2009
आकाशवाणी
हिंदुस्तान वालो
अब क्या भाई (पकिस्तान)
की जान ही लोगे।
इतना मत दबाओ कहीं
बिल्कुल ही बेशर्म न हो जाए।
जमाने भर में हँसी
उड़वा रहे हो,
बार-बार सबूतों को
दुनिया को दिखा रहे हो,
आख़िर कितना जलील करोगे।
क्या भूल गए ?
जब अलग हुआ था,
तो पितृपुरूष गाँधीजी(बापू) ने
उसके हिस्से का कर्ज माफ
करने के लिए अनशन तक कर दिया
था । एक तुम हो छोटे भाई की
गलतियों के लिए उसे दुनिया
भर में बदनाम करने पर तुले हुए हो,
क्या मिलेगा?
“जिसने कुछ पहना ही न हो उसे क्या नंगा करोगे”।
छोटा भाई है भटक गया है
ग़लत साथी (दहशतगर्द) पाल लिए हैं,
उसे समझाओ।
वैसे तो बड़ा कमजोर है,
इसीलिए बक-बक कर रहा है।
जो कमजोर होता है
वह बकवास ही कर पाता है,
डर के मारे अनाप-शनाप भी
बोलने लगता है।
उसे पता है कि बड़ा भाई बहुत
सहनशील है धमकी ही देगा
और कुछ नहीं, करेगा इज्जत से भी डरता है।
इसीलिए; ज्यादा
बक-बक कर रहा है।
साथियों (दहशतगर्दों) को कुछ
बोल नहीं सकता क्योंकि उन्हीं
का नमक खा रहा है।
और इस्लाम में नमकहरामी
सबसे बड़ा कुफ्र होता है।
कैसे करे।
सारा जोर बड़े भाई
(हिन्दुस्तान) पर चलता है।
तुम बड़प्पन दिखाओ
जैसे आज तक नजरअंदाज किया है
करते जाओ।
अपने आप तो तरक्की पर तरक्की
कर रहे हो कभी उसके बारे में भी सोचा है,
बेचारा भीख मांग कर जिन्दा है,
तुम उसकी भीख भी बंद करवा दोगे।
कैसे बड़े हो तुम?
अपने दूसरे भाई (बांग्लादेश)
का भी ध्यान रखो वह
और भी छोटा है
उसके कुछ लोग यहाँ
आ गए तो क्या
वोट तो तुम्हें ही देते हैं
हाँ मझले(पाकिस्तान) की
तरह उसकी संगत भी
ग़लत जमातों से हो गई है
उसे भी समझा दो,
पकिस्तान का हाल दिखादो
डराना मत।
“ प्यार से ही समझाना”।
छोटा है समझ जाएगा
“वरना” ये पाकिस्तान से
ज्यादा खोटा हो जाएगा।
भाइयों के साथ-साथ
पड़ोसी (नेपाल) का भी
विशेष ध्यान रखो
नया-नया मुल्ला (माओवादी) बना है
इसलिए जोर से चिल्ला रहा है।
पर बेचारा
गरीब है बच्चो (गोरखों की बहादुरी) की कमाई
पर पल रहा है।
तुम्हारे द्वारा पोषित
रहा है। उसे भी प्यार से ही समझाना।
पर ये समझ लेनाकी प्यार से
समझाने का मतलब
ये बिल्कुल न समझो की
अपना नुकसान होता रहे
छोटे हैं
पिटाई भी कर सकते हो
अब क्या भाई (पकिस्तान)
की जान ही लोगे।
इतना मत दबाओ कहीं
बिल्कुल ही बेशर्म न हो जाए।
जमाने भर में हँसी
उड़वा रहे हो,
बार-बार सबूतों को
दुनिया को दिखा रहे हो,
आख़िर कितना जलील करोगे।
क्या भूल गए ?
जब अलग हुआ था,
तो पितृपुरूष गाँधीजी(बापू) ने
उसके हिस्से का कर्ज माफ
करने के लिए अनशन तक कर दिया
था । एक तुम हो छोटे भाई की
गलतियों के लिए उसे दुनिया
भर में बदनाम करने पर तुले हुए हो,
क्या मिलेगा?
“जिसने कुछ पहना ही न हो उसे क्या नंगा करोगे”।
छोटा भाई है भटक गया है
ग़लत साथी (दहशतगर्द) पाल लिए हैं,
उसे समझाओ।
वैसे तो बड़ा कमजोर है,
इसीलिए बक-बक कर रहा है।
जो कमजोर होता है
वह बकवास ही कर पाता है,
डर के मारे अनाप-शनाप भी
बोलने लगता है।
उसे पता है कि बड़ा भाई बहुत
सहनशील है धमकी ही देगा
और कुछ नहीं, करेगा इज्जत से भी डरता है।
इसीलिए; ज्यादा
बक-बक कर रहा है।
साथियों (दहशतगर्दों) को कुछ
बोल नहीं सकता क्योंकि उन्हीं
का नमक खा रहा है।
और इस्लाम में नमकहरामी
सबसे बड़ा कुफ्र होता है।
कैसे करे।
सारा जोर बड़े भाई
(हिन्दुस्तान) पर चलता है।
तुम बड़प्पन दिखाओ
जैसे आज तक नजरअंदाज किया है
करते जाओ।
अपने आप तो तरक्की पर तरक्की
कर रहे हो कभी उसके बारे में भी सोचा है,
बेचारा भीख मांग कर जिन्दा है,
तुम उसकी भीख भी बंद करवा दोगे।
कैसे बड़े हो तुम?
अपने दूसरे भाई (बांग्लादेश)
का भी ध्यान रखो वह
और भी छोटा है
उसके कुछ लोग यहाँ
आ गए तो क्या
वोट तो तुम्हें ही देते हैं
हाँ मझले(पाकिस्तान) की
तरह उसकी संगत भी
ग़लत जमातों से हो गई है
उसे भी समझा दो,
पकिस्तान का हाल दिखादो
डराना मत।
“ प्यार से ही समझाना”।
छोटा है समझ जाएगा
“वरना” ये पाकिस्तान से
ज्यादा खोटा हो जाएगा।
भाइयों के साथ-साथ
पड़ोसी (नेपाल) का भी
विशेष ध्यान रखो
नया-नया मुल्ला (माओवादी) बना है
इसलिए जोर से चिल्ला रहा है।
पर बेचारा
गरीब है बच्चो (गोरखों की बहादुरी) की कमाई
पर पल रहा है।
तुम्हारे द्वारा पोषित
रहा है। उसे भी प्यार से ही समझाना।
पर ये समझ लेनाकी प्यार से
समझाने का मतलब
ये बिल्कुल न समझो की
अपना नुकसान होता रहे
छोटे हैं
पिटाई भी कर सकते हो
Sunday, January 4, 2009
राष्ट्रीयता
राष्ट्रीयता
हॉकी की जगह क्रिकेट हो राष्ट्रीय खेल।( पटौदी ने कहा)
"शायद तब हॉकी के दिन सुधर जायें" ।
क्योंकि हमारे सभी राष्ट्रीय प्रतीक-चिन्ह इत्यादि उपेक्षित
हैं। जैसे राष्ट्रीय वाक्य सत्यमेव जयते इसका उल्टा ही चारों
तरफ़ दिख रहा है। (असत्यमेव जयते) नेता से लेकर अधिकारी
तक असत्य बोल कर जनता को बेवकूफ बनाते हैं।
राष्ट्रीय झण्डे का अपमान भी न्यूज चैनल वाले दिखा ही देते हैं।
राष्ट्रीय पशु-पक्षी भी लुप्त होने के कगार पर हैं।
राष्ट्रीय त्यौहार केवल औपचारिकता तक ही सीमित हैं।
राष्ट्रीय नदी गंगा के हाल पर तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
चिंता होती है।
"सबसे बड़ी बात" राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद को या तो हँसी का विषय
बना दिया या पिछडापन और अतिवाद माना जाता है।
राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्र भाषा, राष्ट्र गीत , राष्ट्र कवि, और भी
बहुत कुछ जो अघोषित रूप से राष्ट्रीय है शायद आने वाली पीढियां
भूल जायें। इसलिए इन्हें बदल देना चाहिए। ( पटौदी साहब खुश हो
जायेंगे)।
हॉकी की जगह क्रिकेट हो राष्ट्रीय खेल।( पटौदी ने कहा)
"शायद तब हॉकी के दिन सुधर जायें" ।
क्योंकि हमारे सभी राष्ट्रीय प्रतीक-चिन्ह इत्यादि उपेक्षित
हैं। जैसे राष्ट्रीय वाक्य सत्यमेव जयते इसका उल्टा ही चारों
तरफ़ दिख रहा है। (असत्यमेव जयते) नेता से लेकर अधिकारी
तक असत्य बोल कर जनता को बेवकूफ बनाते हैं।
राष्ट्रीय झण्डे का अपमान भी न्यूज चैनल वाले दिखा ही देते हैं।
राष्ट्रीय पशु-पक्षी भी लुप्त होने के कगार पर हैं।
राष्ट्रीय त्यौहार केवल औपचारिकता तक ही सीमित हैं।
राष्ट्रीय नदी गंगा के हाल पर तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
चिंता होती है।
"सबसे बड़ी बात" राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद को या तो हँसी का विषय
बना दिया या पिछडापन और अतिवाद माना जाता है।
राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्र भाषा, राष्ट्र गीत , राष्ट्र कवि, और भी
बहुत कुछ जो अघोषित रूप से राष्ट्रीय है शायद आने वाली पीढियां
भूल जायें। इसलिए इन्हें बदल देना चाहिए। ( पटौदी साहब खुश हो
जायेंगे)।
धमकी
धौनी को धमकी
"आम से खास बनने के
साईड इफेक्ट"
इस ज़माने में छुप और छुपा भी तो नहीं सकते
टी. वी.न्यूज चैनल "चिल्ला-चिल्ला" कर बताते हैं की
कौन "कितना कमा" रहा है।
(साईं इतना दीजिये;किसी की नजर ना लग जाय;
कमाई भी कम न हो; नाम भी कमाया जाय)।
"आम से खास बनने के
साईड इफेक्ट"
इस ज़माने में छुप और छुपा भी तो नहीं सकते
टी. वी.न्यूज चैनल "चिल्ला-चिल्ला" कर बताते हैं की
कौन "कितना कमा" रहा है।
(साईं इतना दीजिये;किसी की नजर ना लग जाय;
कमाई भी कम न हो; नाम भी कमाया जाय)।
Friday, January 2, 2009
सन २००८
सन २००८ (अर्थव्यस्था) में "तेजी सबसे तेज"
मंदी भी सबसे तेज ; तेजी में "महंगाई आई"
मंदी से महंगाई कम हुयी
आम आदमी के लिए तो मंदी ही अच्छी
मंदी भी सबसे तेज ; तेजी में "महंगाई आई"
मंदी से महंगाई कम हुयी
आम आदमी के लिए तो मंदी ही अच्छी
भारत २००८
“सन २००८” …..….........(भारत में);
“भ्रष्ठाचार” कल्पना से भी ज्यादा;
“सम्प्रदायवाद” कल्पना से भी…...;
“जातिवाद” कल्पना से ……….…… ;
“पार्टी-प्रांतवाद” कल्पना…………;
और
“आतंकवाद” तो “सबसे ज्यादा”
फ़िर भी,
भारत “बुलान्दियौं”(चाँद) को छू
रहा है
“आख़िर कुछ तो बात है”
“किसी की नजर न लगे”
या खुदा इन “बुरी नज़र "(पाक) वालों की
“नजरें फोड़ दे”
“भ्रष्ठाचार” कल्पना से भी ज्यादा;
“सम्प्रदायवाद” कल्पना से भी…...;
“जातिवाद” कल्पना से ……….…… ;
“पार्टी-प्रांतवाद” कल्पना…………;
और
“आतंकवाद” तो “सबसे ज्यादा”
फ़िर भी,
भारत “बुलान्दियौं”(चाँद) को छू
रहा है
“आख़िर कुछ तो बात है”
“किसी की नजर न लगे”
या खुदा इन “बुरी नज़र "(पाक) वालों की
“नजरें फोड़ दे”
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