हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि;“ ये संसार तो सब भगवन की माया है” या लीला है,या खेल है। हमारी दादी-नानी चाहे अनपढ़ थीं, या मां-पिताजी थोड़े-बहुत पढ़े लिखे हों पर “इस बात” को वह भी कहते रहते थे और इस पर आधारित कई कहानियां भी शायद हम सभीने सुनी होंगी।
जो वैदिक या भारतीय संस्कारों में पला बढ़ा होगा उसने तो अपनी किशोरावस्था तक कई किस्से-कहानियां, ब्रह्मा -विष्णु – महेश-इन्द्र या आत्मा-परमात्मा के सुने होंगे । “ ये जीवन क्षण भंगुर है” ये भी सुना होगा ।
क्षण भंगुर कैसे है ये जीवन, यह भी पता लगेगा पढ़ते जाईये ।
चर्चा – चर्चा में शुक्ल जी ने बताया कि आज वैज्ञानिक इस ब्रह्माण्ड के विषय में जो भी बता रहे हैं चाहे "महाविस्फोट" हो या इसके (ब्रह्माण्ड के ) निर्माण का काल हो, या भविष्य का काल हो; सब किसी ना किसी रूप में हमारी पौराणिक पुस्तकों में ज्ञान के रूप में दर्ज है।
"ब्रह्मा का दिन"
चर्चा में मेरी जिज्ञासा भी बढती गयी जब मैंने "ब्रह्मा के दिन" के विषय में सुना और तब तो आश्चर्य का पारावार ही ना रहा जब; ब्रह्मा का महीना - साल के विषय में पता लगा ।
आज जो भी घटनाएँ घट रहीं हैं; वो चाहे दैवीय हों या दानवीय हों, आसुरी हों या सात्विक हों, वैज्ञानिक अविष्कार हों या चिकित्सकीय चमत्कार हों, ये केवल आज कलियुग में ही हो रहे हैं ऐसा नहीं है, अपितु ऐसी ही सब घटनाएँ न जाने कितने बार भूतकाल में घटित हो चुकी हैं। हम सभी या ये दुनिया जो हर पल बदलती रहती है, न जाने कितनी बार इससे पहले हो चुके हैं। इस सबका वर्णन हमारे पौराणिक ग्रंथों में मिलता है |
जिन्हें हम हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ मानते हैं वह केवल हिन्दुओं के न होकर सम्पूर्ण मानवों के लिए हैं; वैश्विक हैं , और केवल धर्म ग्रन्थ न होकर इतिहास और विज्ञान के भी ग्रन्थ हैं। इस विश्व की कोई भी विद्या ऐसी नहीं है जो इन पौराणिक ग्रंथों में न हो।
ये केवल एक दो घटनाओं पर आधारित घटनाक्रम से प्रभावित होकर लिखे गए; ऐसा नहीं है। अपितु समय-समय पर घटे घटनाक्रम से प्रभावित होकर उससे मिलने वाले परिणामों के आधार पर लिखे गए। इसी लिए हमें इनमे कहीं – कहीं पर एक ही बात का विरोध और समर्थन देखने को मिल जाता हैं।
इन ग्रंथों की रचना की काल गणना , ‘जो आजकल के विद्वान् बताते हैं’ को मैं तो केवल अंदाज लगाना मानता हूँ।हालाँकि यह मेरा व्यक्तिगत दृष्टिकोण है, कोई आग्रह नहीं है। दरअसल जिस तरह अंतरिक्ष में नक्षत्र आपस मेंकरोड़ों मीलों की दूरी होने के बाद भी हमें पृथ्वी से एक समान दूरी पर दीखते हैं, उसी तरह हमारे ग्रन्थ भीअलग-अलग समय पर लिखे गए हैं, जिनमे हजारों - लाखों वर्षों का अंतराल है; पर हमारे लिए दिखने में वह नभके तारों के सामान हैं । और ये भी सच है; जिस तरह अन्तरिक्ष की दूरी का अंत नहीं है उसी तरह समय या " काल"का भी कोई अंत नहीं है जब से ये पृथ्वी बनी है तब से ही काल गणना मानी जाती है जबकि उससे पहले भी वह विद्यमान था और बाद में भी रहेगा।
काल गणना
हमारे धर्म ग्रंथों के आधार पर काल गणना की सबसे बड़ी इकाई है "ब्रह्मा का दिन और रात" जिसे हम आम बोल चाल की भाषा में अभिव्यक्त करने के लिए प्रयुक्त भी करते हैं और हमारे धर्म ग्रंथों में भी इसे कथाओं के द्वारा समझाया गया है।
“ब्रह्मा” का एक दिन और रात"
जाहिर है ब्रह्मा को सृष्टिकर्ता माना गया है तो वह सबसे श्रेष्ठ और आदि “पुरुष” या वह शक्ति जिससे ब्रह्मांड निर्माण हुआ और अपने लिए बने नियम पर चल रहा है। पुरुष का एक अर्थ आत्मा भी होता है। जो सबसे श्रेष्ठ हो सबमें व्याप्त हो वह ही परम आत्मा यानि "परमात्मा" का दिन और रात ।
हमारे ग्रन्थ "अग्नि पुराण" के अनुसार –
ब्रह्मा का एक दिन और रात = २८ मन्वंतर ( यानि १४ मन्वंतर का दिन और १४ मन्वंतर की रात)।
एक मन्वंतर = ७१ चतुर्युगी ।
एक चतुर्युगी ( सतयुग,त्रेता,द्वापर और कलियुग) = ४३ लाख २० हजार वर्ष।
इन युगों का काल इस प्रकार है; सबसे पहले हम कलियुग को ले लें तो समझने और गणना करने में आसानी होगी।
कलियुग == ४ लाख ३२ हजार वर्ष,
द्वापर == ८ लाख ६४ हजार वर्ष ,
त्रेता == १२ लाख ९६ हजार वर्ष ,
सतयुग == १७ लाख २८ हजार वर्ष।
इस तरह प्रत्येक युग अपने से पिछले युग से ४ लाख ३२ हजार वर्ष अधिक होता है। इस प्रकार एक चतुर्युगी बनी, और ऐसी ७१ चतुर्युगी का एक मन्वंतर बना, तब १४ मन्वंतर का ब्रह्मा का एक दिन और १४ मन्वंतर की ब्रह्मा की एक रात।
ब्रह्मा के दिन को कल्प भी कहते हैं, और इस समय "श्वेत वाराह नाम का कल्प" चल रहा है, इसी को ब्रह्मा का दिन भी कहते हैं। इस तरह तीस कल्पों का एक मास होता है । मतलब यह है कि जिस तरह से मनुष्यों का महीना होता है वैसे ही ब्रह्मा का भी महीना होता है।
इस समय इस मन्वंतर के सत्ताईस चतुर्युग बीत चुके हैं अट्ठाइसवे चतुर्युग के तीन युग बीत चुके हैं चौथा कलियुग चल रहा है इसके भी ५११० वर्ष बीत चुके हैं।
अब इसमें विशेष ध्यान देने योग्य बात ये है कि ; इन चौदहों मन्वंतरों का नाम भी दिया है और यह मन्वंतर सातवाँ है यह भी बताया गया है।
मन्वंतरों के नाम
क्रमश: इस प्रकार हैं स्वायम्भुव मन्वंतर, स्वरोचिष.. , उत्तम..,तामस.., रैवत.., चाक्षुष..,वैवस्वत..(वर्तमान),सावर्णि.., दक्ष सावर्णि.., ब्रह्म सावर्णि.., धर्म सावर्णि.., रूद्र सावर्णि.., देव सावर्णि..,इन्द्र सावर्णि मन्वंतर ।
आप बोर तो नहीं हुए ना ? अभी तो जनाब आपने ब्रह्मा के केवल एक दिन के विषय में जाना है | अभी तो जब आपको ब्रह्मा के महीने और साल का पता लगेगा तो स्वयं समझ आ जायेगा कि हमारे जीवन का सौ वर्ष का समय उसके आगे केवल एक क्षण का है | अभी तो मैं आपको "समय के समुद्र" या "समय का अन्तरिक्ष के दर्शन" कराने जा रहा हूँ |
समय (काल) का अन्तरिक्ष
चार युगों का एक चतुर्युग, इकहत्तर चतुर्युगों का एक मन्वंतर, चौदह गुणा दो मन्वंतर का एक दिन और रात, इस तरह से एक मास और एक वर्ष जिसे ब्राह्म मास और ब्राह्म वर्ष कहते हैं। हम यहाँ पर केवल ब्रह्मा के एक दिन का मान दे रहे हैं आगे आप महीना और साल और सौ साल स्वयं बना कर समय के अन्तरिक्ष के दर्शन कर लें ।
ब्रह्मा के एक दिन और रात का मान ८,६४,००००००० मानव वर्ष है ।
यह सब और इससे भी अधिक जानने के लिए अग्नि पुराण का गंभीरता से अध्ययन कर लीजिये।
badi khasi janakari de di....
ReplyDeletejaankari ke liye
ReplyDeleteaabhar
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
mujhe ye sab bakwas ke jayda kuch nhi lagata
ReplyDeletekori gapp hai aur kuch nhi
vighyanik koi proof nhi hai
फुलारा जी सादर नमस्कार , सर्वप्रथम मैं आपका धन्यवाद करता हूँ की आप मेरे ब्लॉग में आये और अपना अमूल्य
ReplyDeleteसुझाव कहो या जानकारी आपने दी अच्चा लगा , ऐसा नहीं की आज मैं पहली बार आपके ब्लॉग में आया हूँ , वरन
पहले भी कई बार मैं टेंशन पॉइंट में विजित कर चुका हूँ, अच्चा लगता है जब कोई बदतर होते हालातों के प्रति संवेदशील
नजर आता है, बाबा रामदेव जी एक उम्मीद की किरण नजर आते हैं , ऐसा मेरा भी मानना है, मैं भी एक ऐसे राष्ट्र की
कामना करता हूँ , जिसकी अपनी पहिचान हो और जिसका अपना स्वाभिमान हो, और जो वास्तव में एक स्वतंत्र राष्ट्र हो,
भुखमरी , बेरोजगारी और भर्ष्टाचार मुक्त भारत हेतु आपके इस आन्दोलन की सफलता हेतु मेरी शुभ कामनाएं और सहयोग
समर्पित है ,