(साधारण जनता को, देश-समाज-संस्कृति-संस्कारों-भारत-भारतीयता और स्वदेशी के समर्थकों को इसअभारतीय मीडिया से सावधान रहना चाहिए । या ऐसा भी कह सकते हैं कि; भ्रष्टों के विरोधी, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विरोधी,पाश्चात्य संस्कारों के विरोधी,दवा कम्पनियों की लूट के "विरोधी लोगों" को इनसे सावधान रहना चाहिए ।)
"एक तो मियाँ बावले ऊपर से चढा़ली भांग"
ऐसा ही कुछ हाल हमारे यहाँ के मीडिया का हो गया है । अब तो ऐसा लगने लगा है कि ; ये वास्तव में संस्कृति-समाज-संस्कार और देश विरोधी, आसुरी शक्तियों के हाथों बिका हुआ है। या इसको संचालित करने वाले स्वयं यही तत्व हैं । "एक तो शिक्षा ही हमारे यहाँ दोष पूर्ण है फिर अनैतिकता और पाश्चात्य संस्कृति का हमला" बेचारे हमारे मीडिया वाले झेल नहीं पा रहे ।
“ये” मुठभेड़ में मरे अपराधी को , अपराधी नहीं मानते। उस समाचार की व्याख्या करने में ये अपनी योग्यता ऐसे दिखाते हैं कि ; साधारण व्यक्ति तो रावण या राक्षस को भी निरीह मानने को मजबूर हो जाये। और भगवान राम को तो ये चुटकियों में निर्दोषों का हत्यारा सिद्ध कर सकते हैं। पर इस मामले में जरा डर है; जनता कहीं इनका उद्धार न कर दे। वैसे इनके बहुत से आकाओं ने ये कोशिश, ‘भगवन राम को मर्यादा पुरुषोत्तम न मानने की’ आरम्भ से जारी रखी है, पर स्वयं अमर्यादितों की कौन सुने; इसलिए असफल ही रहे ।
हाँ; इनकी एक विशेषता तो माननी पड़ेगी, बेशर्मी में इनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता । आज तक तो नहीं कर पाया। कहते हैं; "बहाव के साथ बहने वाले की कोई पहचान नहीं होती" , इन्होने इस वाक्य को भी अपने संस्थान की टी आर पी बढ़ाने का नुस्खा बना लिया। जनता कुछ भी चाहे या देश के लिए कुछ अच्छा होने जा रहा हो या धर्म-संस्कृति-समाज-देश का कुछ भला होने की बात हो; तो ये उसके विरोध में नजर आयेंगे। बहाव में बहने से क्या लाभ ?
ये और इनके आका सोहराबुद्दीन की पहचान नहीं बताएँगे,उसके कर्म नहीं बताएँगे, पूरा एक घंटा चर्चा में निकाल देंगे। अधिकारियों और सरकार की साजिशों पर इनके तरकस में तीरों की कमी नहीं है। सच मानो; वो तो वीरप्पन को पूरा देश पचास सालों से जनता था, वरना ये उसे भी निर्दोष सिद्ध करके; मारने वाले अधिकारीयों को कटघरे में खड़ा करवा देते ।
कई बार इनके आचरण को देख कर तो ये लगता है की “ये” जानबूझ कर जनता को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा कई बार कर चुके हैं। डेरा सच्चा सौदा वाला झगड़ा इसकी बानगी है और भी कई हैं। कई बार इनकी ये कोशिश इनके लिए भी मुसीबत बन जाती है; जब जनता, या किसी पार्टी के कार्यकर्त्ता इनके ऊपर ही पिल जाते हैं। हो सकता है; ये भी ये जानबूझ कर करते हों, इन्होंने अपना संस्थान नया करवाना हो, बीमा कम्पनी द्वारा बीमा ले रखा हो। तो; तोड़-फोड़ करवाने के लिए भड़काऊ समाचार दिए जाएँ, बस हो जायेगा काम।
अब हमें मान लेना चाहिए; भारत का अधिकांश मीडिया और मीडिया वाले भ्रष्ट हैं । इनके भ्रष्ट नेताओं, भ्रष्ट विदेशी कम्पनियों और भ्रष्ट अधिकारियों से आर्थिक हित जुड़े हुए हैं ।
साधारण जनता को, देश-समाज-संस्कृति-संस्कारों-भारत-भारतीयता और स्वदेशी के समर्थकों को इस अभारतीय मीडिया से सावधान रहना चाहिए । या ऐसा भी कह सकते हैं कि; भ्रष्टों के विरोधी, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विरोधी,पाश्चात्य संस्कारों के विरोधी,दवा कम्पनियों की लूट के "विरोधी लोगों" को इनसे सावधान रहना चाहिए ।
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