अगर कुछ बिगाड़ सकते हो तो बिगाड़ लो।
तुडवाने वाले बेशक सकते में थे पर तोड़ने वाले तो पुरे जोशोखरोश से तोड़ रहे थे
लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट पर हंगामा तो इस तरह हो रहा है जैसे कोई नई या अप्रत्याशित बात कह दी हो। किसे नहीं पता कि वह ढांचा(मन्दिर या मज्सिद) तोड़ने में कोई ढंकी-छुपी साजिश नहीं थी, तोड़ने वाले और तुडवाने वाले दोनों पूरी दुनिया के सामने थे न तब कोई रोक पाया न पिछले सत्रह साल में उनमे से किसी को कोई कुछ कह पाया।
राजनीतिक लाभ लेने-देने के आलावा कोई कुछ कर भी नहीं सकता।
रही इस तरह के आयोगों को बना कर जाँच करवाने की बात, तो ये भी सबको पता है कि इस तरह के ज्यादातर आयोग अपने चहेतों के ऐशो-आराम के लिए बनाये जाते हैं,इसीलिए तो सालों लग जाते हैं, इनके निष्कर्षों पर आज तक कोई सार्थक अमल हुआ ही नहीं।
जहाँ तक लिब्राहन आयोग की बात है तो न तब कानूनन कुछ कर पाए न अब कानूनन कुछ हो सकता है अगर कुछ बिगाड़ सकते हो तो बिगाड़ लो।
क्योंकि ये कानून ही अंग्रेजो ने आपस में उलझाये रखने के लिए बनाया है इससे निर्णय नहीं हो सकता । चिंता तो अब लिब्राहन साहब को हो रही होगी कि अब खर्चा-पानी कैसे पूरा पड़ेगा ।
कुछ हंगामे केवल हंगामे बरपाने के लिये ही होते है.
ReplyDeleteबधाई हो, आपका लेख छबीस ग्यारह डेली न्यूज़ अक्तिविस्ट में छपने की !
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