जी हाँ, ये वास्तव में शुभ संकेत हैं कि नेता लोग अब आपस में "हाथ-पाँव" से लड़ने लगे हैं। अभी तक केवल बातों से ही लड़ते थे, इनके चमचे (कार्यकर्त्ता) इनकी इच्छा पूर्ति (हाथ-पाँव से लड़ने की) कर देते थे, पर ये अब नई शुरुआत है। इसका स्वागत होना चाहिए, इस स्थिति से डरना या घबराना नहीं चाहिए, कोई भी नई बात अटपटी लगती ही है,लेकिन जब पॉँच-सात बार हो जाती है तो उसका चलन हो जाता है। जैसा महाराष्ट्र विधानसभा में हुआ है पहले भी अन्य विधानसभाओं हो चुका है, थोड़ा बहुत कम ज्यादा अलग बात है।
ये ऐसे ही समझ लो जैसे एक इलाके में दो गुंडों के ग्रुप एक-दुसरे से ज्यादा दबदबा जनता में बनाना चाहते है,और इसके लिए वह जनता को अपने-अपने तरीके से धमकाते हैं तथा मारते हैं, मतलब आम जनता का ही नुकशान करते हैं, ऐसे में जब वह आपस में लड़ने लगें तो जनता को खुश होना चाहिए कि अब इनके समाप्त होने के दिन शुरू हो गए हैं। अब तो आम जनता को इन्हें आपस में लड़वाने का उपाय करना चाहिए। स्वयं आपस में नहीं लड़ना चाहिए।
यह भारतीय राजनीति का ऊसूल है।
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