छब्बीस ग्यारह को याद तो ऐसे किया, जैसे पहले कभी ऐसा न हुआ हो, या अब ऐसा होने का डर न रहा हो। हमारे प्रधानमंत्री,गृह मंत्री,और सुरक्षा अधिकारी इस डर कोदेश के सामने यदा-कदा प्रकट भी करते रहते हैं।
"छब्बीसग्यारहदोहजारआठ" नकोईनईबातथीऔरनअभीआश्वस्तहुआजासकताकिऐसाफ़िरकभीनहींहोगा। जबतकमरनेकेलिएजांबाजतैयाररहेंगे, जबतकभ्रष्टअधिकारी-नेताइसतरहकीघटनाओंकोअंजामदेनेवालेलोगोंकोअन्दरआनेकारास्तादिखातेरहेंगेइनघटनाओंसेबचानहींजासकता। पर, समाचारमाध्यमोंकेलिएतोकमाईकाअवसरहैइसमौकेकोकैसेहाथसेजानेदें। थोड़ाकहा- ज्यादासमझना, इससेज्यादाक्याकहना।
समझ लिया जी…। जूता भिगो रहे हैं अभी… मौका लगने दो… और कोई नेता समयानुकूल परिस्थिति में सामने आने दो… फ़िर देखते हैं…
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