केवल शिक्षक ही क्यों
पहाड़ में कोई भी कर्मचारी नहीं
रहना चाहता ।
कर्मचारी ही क्यों, पहाड़ में जब पहाड़ के
नेता नहीं रहना चाहते,
जनता में से भी कौन रहना चाहता है ?
कारण, असुविधाएं,
न घर में पानी आता है,
न अस्पतालों में डॉक्टर हैं,
न स्कूलों में अच्छी शिक्षा के लिए अध्यापक हैं
मतलब, असुविधाएं ही असुविधाएं
सुबह-सुबह साढे तीन बजे पानी भरने के लिए उठना
पड़ता है ।
शिक्षक ही क्यों कोई भी पहाड़ में रहना नहीं चाहता।
यहाँ की नियति है "पलायन" ।
इसीलिए तो पहाड़ के केन्द्र में गैरसैण राजधानी की मांग सही
लगती है। इसके बनने पर इसके चारों ओर पचास-साठ किलोमीटर
का क्षेत्र विकसित होगा । और पलायन रुकेगा।
पहाड़ में कोई भी कर्मचारी नहीं
रहना चाहता ।
कर्मचारी ही क्यों, पहाड़ में जब पहाड़ के
नेता नहीं रहना चाहते,
जनता में से भी कौन रहना चाहता है ?
कारण, असुविधाएं,
न घर में पानी आता है,
न अस्पतालों में डॉक्टर हैं,
न स्कूलों में अच्छी शिक्षा के लिए अध्यापक हैं
मतलब, असुविधाएं ही असुविधाएं
सुबह-सुबह साढे तीन बजे पानी भरने के लिए उठना
पड़ता है ।
शिक्षक ही क्यों कोई भी पहाड़ में रहना नहीं चाहता।
यहाँ की नियति है "पलायन" ।
इसीलिए तो पहाड़ के केन्द्र में गैरसैण राजधानी की मांग सही
लगती है। इसके बनने पर इसके चारों ओर पचास-साठ किलोमीटर
का क्षेत्र विकसित होगा । और पलायन रुकेगा।
पहाड़वासियों की तकलीफें करीब से देखी हैं, आपसे सहमत हूँ.
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