मुद्राराक्षस जी आपका लेख(ब्राह्मणवाद का कफस) पढ़ कर हमारे भी “अज्ञानचक्षु खुल कर ज्ञानचक्षु बंद हो गए”। आपकी अंतरपे़रणा, वास्तव में गजब की है, अध्ययन की जरुरत ही नहीं पड़ती ! अच्छा है, अध्ययन करने से कहीं बा़ह्मणत्व न आ जाए। ब्राह्मण इतने चालाक हैं (आपके अनुसार) कि आपको भी वाल्मीकि की तरह पूजने लगेंगे। इन ब्राहमणों ने आदि से आज तक सारे संसार को मूर्ख बनाकर रखा है। नामको इतने सारे शास्त्र बना दिए कि जिन्दगी भर केवल नाम लें तो भी ख़त्म न हों। आपने नहीं देखे-सुने होंगे हमने भी केवल सुने हैं देखने के लिए बा़ह्मणत्व की ज्योति चाहिए जिसके आप विरोधी हैं। इन्होंने ये प्रचार किया कि इन ग्रंथों में सारा सांसारिक ज्ञान ,परोक्ष-अपरोक्ष, भौतिक-अभौतिक,मूर्त-अमूर्त, यहाँ तक कि दुर्ज्ञान भी इन्हीं में है, इन्होंने चालाकी यह दिखाई कि उनकी भाषा संस्कृत रखी ,जिसके लिए बहाना बनाया कि उस समय अन्य कोई भाषा नहीं थी,जिसे केवल ब्राह्मण ही जानते थे। जिन ग्रंथों(वेदों) के लेखक का पता नहीं चला उन्हें अपौरुषेय घोषित कर दिया ,क्या पता आप जैसे किसी अंतर्प्रेरित व्यक्ति ने लिखे हों। (लिखे ही होंगे ,पर ये क्यों बताएँगे आपको पढ़ना आता नहीं हमें जरुरत नहीं ) अपने को ब्रह्मा (श्रष्टिकर्ता)से उत्पन्न मान लिया , जैसे अन्य श्रष्टि स्वयं पैदा हुयी हो। अन्य वर्णों में से किसी ने इनकी बराबरी की तो इन्होंने उसे अपने समकक्ष मान लिया ,बल्कि उसकी पूजा करके अपनी चतुराई का ही परिचय दिया,आप जानते होंगे कई उदाहरण हमारे ग्रंथों में भी हैं; जैसे ऋषि वाल्मीकि,विश्वामित्र व अन्य। और अपने ही बीच के उन विद्वानों को इन्होंने राक्षस घोषित कर दिया जो इनके विरूद्ध थे ; जैसे राक्षस रावण व अन्य भी। आप तो शायद अपने आप राक्षस हो गए वरना ये लोग आज भी उतने ही शक्तिशाली हैं जितने पहले थे । उसका कारण इनके अन्दर इनके पूर्वजों का जींस पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। जिस जींस प्रणाली को आज के ब्राह्मण(वैज्ञानिक) सिद्ध कर चुके हैं । जी हाँ आपने लिखा है इनमें कोई वैज्ञानिक नहीं हुआ, ऐसा नहीं है , जो भी वैज्ञानिक हुआ उसे इन्होंने ब्राह्मण मान लिया , ऐसा ये आदि काल से करते आ रहे हैं । इन्होंने वानरराज बाली को मरवा दिया अन्य भी कई उदहारण हैं । मैंने तो एक उपन्यास में पढ़ा था कि अयोध्या में राम का राजतिलक भी इन्होंने ही नहीं होने दिया क्योंकि (ये दूरद्रष्टा तो होते ही हैं) इन्होंने जान लिया था कि दक्षिण में रावण अति विद्वान् होता जा रहा है और उसे केवल राम ही मार सकता है। इन्होंने षड्यंत्र रचा उधर रावण की बुद्धी को भ्रष्ट करने वाले उसके आस-पास के ब्राह्मण ही तो थे, उसके अन्दर घमंड
किसने पैदा किया नारद मुनि ने, जहाँ घमंड पैदा हुआ उसमें अवगुण आते गए जिनके कारण वह मारा गया । वरना वह इतना विद्वान् (वैज्ञानिक) हो गया था कि स्वर्ग तक सोने की सीढ़ी लगाने का लक्ष्य बना चुका था। जिन लोगों ने सुधार वादी आन्दोलन चलाया और सफल हुए उन्हें इन्होंने अपना अवतार मान लिया,भगवान बुद्ध,भगवान महावीर,गुरु गोविन्द सिंह व अन्य चौबीस अवतार बताते हैं ।इन्हीं ब्राह्मणों के कारण आज जो अपने को विद्वान् समझते हैं ये उन्हें कम्युनिस्ट(राक्षस) समझने लगते हैं। जबकि कम्युनिज्म इनके धर्मग्रंथों में पहले से ही उन्नत रूप में है। क्योंकि इनके धर्मग्रंथों में राक्षस कि परिभाषा आज के कम्युनिष्टों के विचारों से मेल खाती है
यही साजिश आज ये लोग बाबा साहब, कांशी राम, मायावती,मुलायम सिंह ,पासवान इत्यादि के साथ कर चुके हैं। देखिये न दलित वर्ग के लिए जिसने भी संघर्ष किए आज उसे ही गाली मिल रही है । बल्कि उसी वर्ग के लोग उनके विरोधी हो गए हैं,यह भी इन्हीं की साजिश है। उपन्यास सम्राट प्रेमचंद हों या महात्मा गाँधी , कांशीराम हों या मायावती , मुलायम हों या पासवान,यहाँ तक कि भगवान राम का भी विरोध इन्हीं से करवाने लगे, आप भी सावधान रहना कल को आप पर भी ऊँगली न उठ जाए,क्योंकि इनकी(दलितों की) प्रवृति ऐसी ही बन रही है। जो आरक्षण देगा लाभ देगा ये उसके ही गुण गायेंगे । इन्हें नहीं पता कि इन्हें कमजोर करने की ये भी ब्राह्मणों की ही साजिश है,लाईन में खड़े लंगड़े को अलग करके एक लड्डू ज्यादा देकर कहा जाए कि तू लंगड़ा है इसलिए लड्डू खा लंगडे़पन पर मत सोच। ये प्रकृति प्रदत्त है,कमजोर और शक्तिशाली की बनावट प्रकृति में ही है।
क्या कारण हो सकता है, ये किसी मनुष्यों के जींसों पर शोध करने वाले वैज्ञानिक से पूछना चाहिए।
माफ़ करना बात ब्राह्मणों की चल रही थी , तो मेरा ये कहना है की जो वर्ग अपनों का नहीं हुआ वह दूसरो(दलितों) का क्या होगा ।
दलितों का भला ऐसे नहीं होगा जैसे आप या मायावती या अन्य करना चाह रहे हैं। उन्हें अपने अन्दर से ये हीन-भावना निकालनी होगी कि ब्राह्मण या अन्य सवर्ण हमसे श्रेष्ठ होते हैं और उन्हें नीचा दिखा कर ही हम उनसे श्रेष्ठ हो सकते हैं। आख़िर पौराणिक ग्रंथो को नकार कर या उनका हवाला देकर आप झूठे उदाहरण दे कर उन्हें भी अपनी जड़ों से काट रहे हैं। झूठ के पाँव नहीं होते यह जान कर भी आप न जाने क्यों आने वाले समय के लिए अपने को कलंकित करना चाहते हैं ।
श्रीमान जी अगर शोध हो तो पता लगेगा कि भेदभाव प्राकृतिक ही होता है। जो,श्रेष्ठ होता है वो राज करता है,इसका उदाहरण आज मायावती हैं क्या वह ब्राहमणों के साथ-साथ अन्य सवर्णों को हुक्म पर नहीं घुमा रहीं। वैसे क्या सवर्णों-सवर्णों में भेदभाव नहीं है,ब्राह्मणों में आपस में भी छोटे-बड़े होते हैं जिनके आपस में रिश्ते नहीं होते , आगे-पीछे बेशक एक दूसरे के यहाँ खाना खा लें पर समारोहों में नाक का सवाल बना लेते हैं कि हमसे छोटी जात का ब्राह्मण है उसके यहाँ नहीं खाऊँगा या अलग रसोई लगेगी। लेकिन इससे छोटे ब्राह्मण के मन में हीन भावना तो नहीं बनती न.तो महाराज हीन भवना समाप्त करो । बाकी रहा हिन्दी(भाषा),हिंदू(सभ्यता),हिन्दुस्तान(भारत-माता)का आपका विरोध, तो मैं याद दिला दूँ कि रक्ष-संस्कृति को मानने वाले(राक्षस)आज से नहीं श्रष्टि आरम्भ से ही विरोध करते रहे हैं पर आज तक सफल नहीं हुए क्योंकि हारना- जीतना मनुष्य द्वारा निर्मित संबंधों में होता है प्राकृतिक रूप से जो समृद्ध हो वो न हारता है न जीतता है। ज्ञान-विज्ञानं के लिए हाथ कंगन को आर्शी क्या,पर उलूक प्रकृति के प्राणी को उजाला नहीं दिखाई देता।पर कानों से सुन तो सकते हैं , इसके लिए आज कल बाबा रामदेव के कायक्रम में कभी-कभी राजीव दीक्षित आते हैं जो हिंदू इतिहास व ज्ञान-विज्ञानं के बारे में बताते हैं,उन्होंने ही बताया कि कभी हमारे यहाँ नाई व मोची
भी कुशलता से सर्जरी करते थे । खगोल विज्ञानं व गणित के विषय में हम दुनिया में सबसे पहले से जानते हैं उसके लिए आपको रोजाना सुबह जल्दी उठाना पड़ेगा। अगर प्राणायाम भी कर लो तो स्वस्थ भी हो जाओगे । बीमार व्यक्ति को कितने ही स्वादिस्ट व्यंजन खिला दो उसे अच्छे नहीं लगेंगे । इसी तरह ज्ञान के सम्बन्ध में भी समझ लो, जब तक मन साफ़ न हो कितना ही अच्छा ज्ञान हो मन उसमें से बुराईयाँ ही ग्रहण करेगा ।
कुछ ग़लत लिख दिया हो जो आपको बुरा लगे ,तो बुरा मान लेना-मेरी बला से ।
किसने पैदा किया नारद मुनि ने, जहाँ घमंड पैदा हुआ उसमें अवगुण आते गए जिनके कारण वह मारा गया । वरना वह इतना विद्वान् (वैज्ञानिक) हो गया था कि स्वर्ग तक सोने की सीढ़ी लगाने का लक्ष्य बना चुका था। जिन लोगों ने सुधार वादी आन्दोलन चलाया और सफल हुए उन्हें इन्होंने अपना अवतार मान लिया,भगवान बुद्ध,भगवान महावीर,गुरु गोविन्द सिंह व अन्य चौबीस अवतार बताते हैं ।इन्हीं ब्राह्मणों के कारण आज जो अपने को विद्वान् समझते हैं ये उन्हें कम्युनिस्ट(राक्षस) समझने लगते हैं। जबकि कम्युनिज्म इनके धर्मग्रंथों में पहले से ही उन्नत रूप में है। क्योंकि इनके धर्मग्रंथों में राक्षस कि परिभाषा आज के कम्युनिष्टों के विचारों से मेल खाती है
यही साजिश आज ये लोग बाबा साहब, कांशी राम, मायावती,मुलायम सिंह ,पासवान इत्यादि के साथ कर चुके हैं। देखिये न दलित वर्ग के लिए जिसने भी संघर्ष किए आज उसे ही गाली मिल रही है । बल्कि उसी वर्ग के लोग उनके विरोधी हो गए हैं,यह भी इन्हीं की साजिश है। उपन्यास सम्राट प्रेमचंद हों या महात्मा गाँधी , कांशीराम हों या मायावती , मुलायम हों या पासवान,यहाँ तक कि भगवान राम का भी विरोध इन्हीं से करवाने लगे, आप भी सावधान रहना कल को आप पर भी ऊँगली न उठ जाए,क्योंकि इनकी(दलितों की) प्रवृति ऐसी ही बन रही है। जो आरक्षण देगा लाभ देगा ये उसके ही गुण गायेंगे । इन्हें नहीं पता कि इन्हें कमजोर करने की ये भी ब्राह्मणों की ही साजिश है,लाईन में खड़े लंगड़े को अलग करके एक लड्डू ज्यादा देकर कहा जाए कि तू लंगड़ा है इसलिए लड्डू खा लंगडे़पन पर मत सोच। ये प्रकृति प्रदत्त है,कमजोर और शक्तिशाली की बनावट प्रकृति में ही है।
क्या कारण हो सकता है, ये किसी मनुष्यों के जींसों पर शोध करने वाले वैज्ञानिक से पूछना चाहिए।
माफ़ करना बात ब्राह्मणों की चल रही थी , तो मेरा ये कहना है की जो वर्ग अपनों का नहीं हुआ वह दूसरो(दलितों) का क्या होगा ।
दलितों का भला ऐसे नहीं होगा जैसे आप या मायावती या अन्य करना चाह रहे हैं। उन्हें अपने अन्दर से ये हीन-भावना निकालनी होगी कि ब्राह्मण या अन्य सवर्ण हमसे श्रेष्ठ होते हैं और उन्हें नीचा दिखा कर ही हम उनसे श्रेष्ठ हो सकते हैं। आख़िर पौराणिक ग्रंथो को नकार कर या उनका हवाला देकर आप झूठे उदाहरण दे कर उन्हें भी अपनी जड़ों से काट रहे हैं। झूठ के पाँव नहीं होते यह जान कर भी आप न जाने क्यों आने वाले समय के लिए अपने को कलंकित करना चाहते हैं ।
श्रीमान जी अगर शोध हो तो पता लगेगा कि भेदभाव प्राकृतिक ही होता है। जो,श्रेष्ठ होता है वो राज करता है,इसका उदाहरण आज मायावती हैं क्या वह ब्राहमणों के साथ-साथ अन्य सवर्णों को हुक्म पर नहीं घुमा रहीं। वैसे क्या सवर्णों-सवर्णों में भेदभाव नहीं है,ब्राह्मणों में आपस में भी छोटे-बड़े होते हैं जिनके आपस में रिश्ते नहीं होते , आगे-पीछे बेशक एक दूसरे के यहाँ खाना खा लें पर समारोहों में नाक का सवाल बना लेते हैं कि हमसे छोटी जात का ब्राह्मण है उसके यहाँ नहीं खाऊँगा या अलग रसोई लगेगी। लेकिन इससे छोटे ब्राह्मण के मन में हीन भावना तो नहीं बनती न.तो महाराज हीन भवना समाप्त करो । बाकी रहा हिन्दी(भाषा),हिंदू(सभ्यता),हिन्दुस्तान(भारत-माता)का आपका विरोध, तो मैं याद दिला दूँ कि रक्ष-संस्कृति को मानने वाले(राक्षस)आज से नहीं श्रष्टि आरम्भ से ही विरोध करते रहे हैं पर आज तक सफल नहीं हुए क्योंकि हारना- जीतना मनुष्य द्वारा निर्मित संबंधों में होता है प्राकृतिक रूप से जो समृद्ध हो वो न हारता है न जीतता है। ज्ञान-विज्ञानं के लिए हाथ कंगन को आर्शी क्या,पर उलूक प्रकृति के प्राणी को उजाला नहीं दिखाई देता।पर कानों से सुन तो सकते हैं , इसके लिए आज कल बाबा रामदेव के कायक्रम में कभी-कभी राजीव दीक्षित आते हैं जो हिंदू इतिहास व ज्ञान-विज्ञानं के बारे में बताते हैं,उन्होंने ही बताया कि कभी हमारे यहाँ नाई व मोची
भी कुशलता से सर्जरी करते थे । खगोल विज्ञानं व गणित के विषय में हम दुनिया में सबसे पहले से जानते हैं उसके लिए आपको रोजाना सुबह जल्दी उठाना पड़ेगा। अगर प्राणायाम भी कर लो तो स्वस्थ भी हो जाओगे । बीमार व्यक्ति को कितने ही स्वादिस्ट व्यंजन खिला दो उसे अच्छे नहीं लगेंगे । इसी तरह ज्ञान के सम्बन्ध में भी समझ लो, जब तक मन साफ़ न हो कितना ही अच्छा ज्ञान हो मन उसमें से बुराईयाँ ही ग्रहण करेगा ।
कुछ ग़लत लिख दिया हो जो आपको बुरा लगे ,तो बुरा मान लेना-मेरी बला से ।
bahut sahi
ReplyDeletejari rakhen
वाह भाई क्या बात है गजब लिखा है बन्दे को सोचना पड़ेगा कि कुछ पढ़ लिख कर लिखना बोलना चाहिए
ReplyDeleteजवाब के धन्यवाद .