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Saturday, May 9, 2009

अपना अंदाज

सब कुछ ख़त्म करो

महंगाई ..इतनी बढ़ाओ-इतनी बढ़ाओ कि लोग खरीदना-खाना छोड़ दें महंगाई ख़त्म।
प्रदुषण.. इतना बढ़ाओ इतना बढ़……. कि कुछ बचे ही नहीं …. प्रदुषण ख़त्म।
गरीबी ...इतनी बढ़ाओ …. गरीब ही न बचें … तो गरीबी ख़त्म।
शराब …. इतनी पिलाओ इतनी……. कि शराबी बचे ही न पीने वाले ही न बचें तो शराब ख़त्म।
आरक्षण .. इतना बढ़ाओ….. कि सबको देदो … आरक्षण ख़त्म।
भ्रष्टाचार… इतना बढ़ाओ… (छूट दो) कि सरकार को वेतन ही न देना पड़े । भ्रष्टाचार ख़त्म।
क्रिकेट …. इतना खेलो… कि लोग बोर हो जायें …. देखना बंद कर दें क्रिकेट ख़त्म ।
दहेज़….. इतना दो … .. कि नौकर बना लो (खरीद लो गुलाम की तरह )दहेज़ ख़त्म।
जंगलों में आग ..इतनी लगाओ कि जंगल ही न बचें ,फ़िर आग ही नहीं लगेगी ।
इसी तरह और भी बहुत कुछ ख़त्म हो सकता है।

1 comment:

  1. अच्‍छा लिखा है .. आज इसी नीति पर तो चला जा रहा है।

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