ताजा प्रविष्ठियां

Thursday, May 28, 2009

“रैंगिंग”(गुंडागर्दी)


अब रैंगिंग पर सरकार जुर्माना लगायेगी,
लगता है इससे रैंगिंग पर रोक लगेगी, पर कुछ हद तक ;

क्योंकि ज्यादातर रैंगिंग करने वाले छात्र
उन बड़े बापों के “होनहार”(स )पूत होते हैं;
जिनके लिए ढाई लाख रूपये एकाध घंटे का
मनोरंजन होता है।
पिछले दस-पन्द्रह साल से जिस तरह की रैंगिंग
की घटनाएं सुनाई दे रहीं हैं उससे लगता है
कि कहीं न कहीं हमारी स्कूली शिक्षा में दोष है।
जो मानसिक विकृति पैदा कर रही है।
ध्यान देने की बात ये है कि ये रैंगिंग करने वाले छात्र
बड़े-बड़े पब्लिक स्कूलों में पढ़े लिखे छात्र होते हैं।
जहाँ पैसा पानी की तरह बहाया जाता है।( अब तो पानी भी कम ही मिलताl है)।
और शिक्षा उनको कैसी मिलती है ,ये, उनके कॉलेजों में आकर पता लगता है।
ऎसी अच्छी शिक्षा से गुंडे-बदमाश पैदा होते हैं तो शिक्षा में बदलाव की भी जरुरत है

Wednesday, May 27, 2009

"पहाड़ में रहना नहीं चाहते शिक्षक"

केवल शिक्षक ही क्यों
पहाड़ में कोई भी कर्मचारी नहीं
रहना चाहता ।
कर्मचारी ही क्यों, पहाड़ में जब पहाड़ के
नेता नहीं रहना चाहते,
जनता में से भी कौन रहना चाहता है ?

कारण, असुविधाएं,
न घर में पानी आता है,
न अस्पतालों में डॉक्टर हैं,
न स्कूलों में अच्छी शिक्षा के लिए अध्यापक हैं
मतलब, असुविधाएं ही असुविधाएं
सुबह-सुबह साढे तीन बजे पानी भरने के लिए उठना
पड़ता है ।
शिक्षक ही क्यों कोई भी पहाड़ में रहना नहीं चाहता।
यहाँ की नियति है "पलायन"

इसीलिए तो पहाड़ के केन्द्र में गैरसैण राजधानी की मांग सही
लगती है। इसके बनने पर इसके चारों ओर पचास-साठ किलोमीटर
का क्षेत्र विकसित होगा । और पलायन रुकेगा।

Tuesday, May 26, 2009

" पंजाब गुस्से में है "

पंजाब गुस्से में है
और जब कोई गुस्से में होता है,
पर कुछ कर नहीं पाता है
तब अपने घर के शीशे तोड़ता,और,
ख़ुद ही अपने घर में आग लगाता है।

इससे पहले वह अपने बाल नोचता है,और,
हाथ पैर पटकता है , पर,

पंजाब ,सीधे गुस्से में आ जाता है।

आख़िर क्या करें पंजाब वाले
आस्ट्रिया में कांड हो गया, दुःख के
साथ-साथ गुस्सा भी आ गया। वहां तो जा नहीं सकते
इसलिए अपने ही घर में आग लगा दी।
अपने भाईयों को मार दिया।
आख़िर गुस्सा (बहादुरी)जो दिखाना है।

अगर नहीं दिखाया तो कौम पर लगा
बहादुरी का ठप्पा धुंधला नहीं जाएगा ।
पंज-पियारों की दी हुयी ,
तलवार की "आब" भी तो दिखानी है।

Saturday, May 23, 2009

कई दिनों बाद

बन गई सरकार
हम रहे बेकार,
पिछले कुछ दिनों
से मेरे या…..र
हमारे यहाँ
बिजली और इंटरनेट
दोनों होगये बेकार
हवाई दुनिया से
न रहा कोई सरोकार
अब,

बन गई सरकार
सरकारी कर्मचारी
आलस छोड़ कर ,फ़िर,
हो गए तैयार
हमारे हाथ में तो,
कुछ नहीं,

पर,सोचा,
आप सब को बता दें ,
कितने लापरवाह

होते हैं
कर्मचारी

जब ढीली होती है सरकार .

चुनाव का सबक
जब नेता आम जनता से दूर हो जाते हैं,(केवल अपने व अपनों के हो जाते हैं)
तो जनता उन्हें अपने से दूर कर देती है। ( देर से अक्ल आती है पर दुरुस्त आती है)
कांग्रेस
कांग्रेस एक स्वामी.. भक्त पार्टी है
(स्वामी एक ही है बाकि भक्त हैं)

भा.ज.पा
भाजपा कई स्वामिभक्त पार्टी है
(इसमें सभी स्वामी हैं)
कम्युनिष्ट
कम्युनिष्ट तो बिना स्वामी और भक्तों की पार्टी है
(ये स्वामी और भक्त वाली थ्योरी को ग़लत मानते हैं)
आम जनता
आम जनता ने एक स्वामी भक्त पार्टी को अपना मत दिया,कई स्वामी भक्त पार्टी को अर्ध मत दिया , बिना स्वामिभक्त
पार्टी को अल्पमत दिया । जातिवादियों, इलाकावादियों सौदेबाजों को खारिज करना शुरू कर दिया।

चुनाव २००९
सबके कयास फ़ेल , कईयों की अभिलाषा धूल में मिल गई।
पर एक बात बहुत अच्छी हूई कि भारत की जनता ने दो दलीय
व्यवस्था की तरफ़ अपना रुझान दिखा दिया है।

सौदेबाजों की मुट्ठी से अब रेत फिसलती रहनी चाहिए,
अगली बार के चुनाव के लिए कुछ ऐसी नजीर बननी चाहिए।

सुझाव
इसके लिए दोनों मुख्य दलों को पॉँच साल तक ऐसे प्रयास
करने चाहिए
१.कांग्रेस, भाजपा के जितने भी राष्ट्रीय मुद्दे हैं उन्हें अपना ले।( क्योंकि उन मुद्दों पर भाजपा को भी बहुत वोट मिले हैं )
कांग्रेस के स्वामी सोचें अगर वे मुद्दे अपना लेंगे तो उनकी सीटें कम नहीं पड़ेंगी।
२.भाजपा को कांग्रेस के मुद्दे घोषणा पत्र के अनुसार लागु करने के लिए दबाव बनाये रखना चाहिए ।
बाकि बाद में,
“पढने के लिए धन्यवाद”।

Saturday, May 9, 2009

अपना अंदाज

सब कुछ ख़त्म करो

महंगाई ..इतनी बढ़ाओ-इतनी बढ़ाओ कि लोग खरीदना-खाना छोड़ दें महंगाई ख़त्म।
प्रदुषण.. इतना बढ़ाओ इतना बढ़……. कि कुछ बचे ही नहीं …. प्रदुषण ख़त्म।
गरीबी ...इतनी बढ़ाओ …. गरीब ही न बचें … तो गरीबी ख़त्म।
शराब …. इतनी पिलाओ इतनी……. कि शराबी बचे ही न पीने वाले ही न बचें तो शराब ख़त्म।
आरक्षण .. इतना बढ़ाओ….. कि सबको देदो … आरक्षण ख़त्म।
भ्रष्टाचार… इतना बढ़ाओ… (छूट दो) कि सरकार को वेतन ही न देना पड़े । भ्रष्टाचार ख़त्म।
क्रिकेट …. इतना खेलो… कि लोग बोर हो जायें …. देखना बंद कर दें क्रिकेट ख़त्म ।
दहेज़….. इतना दो … .. कि नौकर बना लो (खरीद लो गुलाम की तरह )दहेज़ ख़त्म।
जंगलों में आग ..इतनी लगाओ कि जंगल ही न बचें ,फ़िर आग ही नहीं लगेगी ।
इसी तरह और भी बहुत कुछ ख़त्म हो सकता है।

Friday, May 8, 2009

“पप्पूजी परेशान न हों ”

वोट न देने वाले पप्पू, तो वोट न देकर पप्पू बने ।
जिन्होंने वोट दिया है वो आने वाले पॉँच साल के लिए पप्पू बनने वाले है।
मतलब वोट देकर भी पप्पू ही बनना है।
पिछले पचास साल से वोट देने वाले पप्पू ही तो बन रहे हैं।
(वोट न देने वालों को जिस तरह पप्पू कहा जा रहा है। और ,पप्पू नाम के लिए जिस तरह से न्यूज चैनलों ने
एक स्वयं समझ सी विकसित कर दी है, जिसका अर्थ ऐसा बनरहा है जैसे मुर्ख समझा जा रहा हो। )

जब पप्पू बनना ही है तो वोट देकर ही पप्पू बनें
क्योंकि वोट देकर पप्पू बनने में कुछ ज्यादा मजा है।

जैसे जानबूझ कर करेले की कड़वी सब्जी खाते हैं ।

Wednesday, May 6, 2009

हाल-ऐ-मुल्क

हाले मुल्क, क्या बयां करें दोस्तो,
बस ये समझ लो,
मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की।
असर, दवा का ख़त्म हो गया ,
बस ये समझ लो,
दवा भी दर्द का,सबब बन गई ।

अब तो हालात ऐसे नाजुक हैं दोस्तो,
बस ये समझ लो,
नशे की सूईयाँ हमारी जरुरत बन गई।
सय्याद फांसता है ज्यों, बुलबुले सैलाब को,
बस ये समझ लो,
हमारे हुक्मरानों की नीयत बन गई।
हाले मुल्क क्या बयां करें दोस्तो,
बस ये समझ लो,
मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की।

ग़लत वोट

“सावधान… देशवासियो एक ग़लत वोट पूरे राष्ट्र को अपाहिज बना देता है”।
यह प्रचार एक पार्टी अपने कैसेट चला कर कर रही है।
काश , ये बात जब लोकतंत्र लागू किया था तब समझाई होती , तो आज देश का ये हाल नहीं
होता ।
आज जो पार्टी यह प्रचार कर रही है, शुरू से स्वयं केवल ग़लत वोटों के कारण
इस देश पर ज्यादा समय तक राज कर गई है। आजकी ज्यादातर समस्याएं उसके तत्कालीन नेताओं
की अदूर्दशिता का ही फल हैं । नक्सलवाद ,जातिवाद,किसी भी धर्म की कट्टरवादिता, आतंकवाद
क्षेत्रवाद,भ्रष्टाचार,नैतिक-हीनता , सबकी जड़ में उन नेताओं की अदूरदर्शी सोच व अंग्रेज
मानसिकता ही है।

ग़लत वोट

जब तक इस देश में गरीबी,भूख , बेरोजगारी रहेगी, बिना पूंछ और मूंछ के शेर(नेताओं के चमचे व अंधभक्त)
रहेंगे तब तक ग़लत वोट पड़ता रहेगा।

क्योंकि
पॉँच सौ रुपये में एक गरीब परिवार का महीने भर का राशन आ जाता है।
सौ-डेढ़ सौ रुपये में कोई बेरोजगार इन पार्टियों का कार्यकर्त्ता या वोटर बन जाता।
शराबी तो केवल एक पौउवे में अपने वोट का सौदा कर लेते हैं ।

वरना क्या जरुरत है ?
इन राष्ट्रीय पार्टियों को अपने प्रचार में करोड़ों रुपये बहने की ।
क्या देश की जनता को नहीं पता कि इनका चुनाव-चिन्ह क्या है,या इनकी पार्टी की क्या नीति है।
चुनाव आयोग भी केवल धोखेबाज की भूमिका निभाता है।

Tuesday, May 5, 2009

मुद्राराक्षस (एक विकृत मानसिकता)

मुद्राराक्षस जी आपका लेख(ब्राह्मणवाद का कफस) पढ़ कर हमारे भी “अज्ञानचक्षु खुल कर ज्ञानचक्षु बंद हो गए”। आपकी अंतरपे़रणा, वास्तव में गजब की है, अध्ययन की जरुरत ही नहीं पड़ती ! अच्छा है, अध्ययन करने से कहीं बा़ह्मणत्व न आ जाए। ब्राह्मण इतने चालाक हैं (आपके अनुसार) कि आपको भी वाल्मीकि की तरह पूजने लगेंगे। इन ब्राहमणों ने आदि से आज तक सारे संसार को मूर्ख बनाकर रखा है। नामको इतने सारे शास्त्र बना दिए कि जिन्दगी भर केवल नाम लें तो भी ख़त्म न हों। आपने नहीं देखे-सुने होंगे हमने भी केवल सुने हैं देखने के लिए बा़ह्मणत्व की ज्योति चाहिए जिसके आप विरोधी हैं। इन्होंने ये प्रचार किया कि इन ग्रंथों में सारा सांसारिक ज्ञान ,परोक्ष-अपरोक्ष, भौतिक-अभौतिक,मूर्त-अमूर्त, यहाँ तक कि दुर्ज्ञान भी इन्हीं में है, इन्होंने चालाकी यह दिखाई कि उनकी भाषा संस्कृत रखी ,जिसके लिए बहाना बनाया कि उस समय अन्य कोई भाषा नहीं थी,जिसे केवल ब्राह्मण ही जानते थे। जिन ग्रंथों(वेदों) के लेखक का पता नहीं चला उन्हें अपौरुषेय घोषित कर दिया ,क्या पता आप जैसे किसी अंतर्प्रेरित व्यक्ति ने लिखे हों। (लिखे ही होंगे ,पर ये क्यों बताएँगे आपको पढ़ना आता नहीं हमें जरुरत नहीं ) अपने को ब्रह्मा (श्रष्टिकर्ता)से उत्पन्न मान लिया , जैसे अन्य श्रष्टि स्वयं पैदा हुयी हो। अन्य वर्णों में से किसी ने इनकी बराबरी की तो इन्होंने उसे अपने समकक्ष मान लिया ,बल्कि उसकी पूजा करके अपनी चतुराई का ही परिचय दिया,आप जानते होंगे कई उदाहरण हमारे ग्रंथों में भी हैं; जैसे ऋषि वाल्मीकि,विश्वामित्र व अन्य। और अपने ही बीच के उन विद्वानों को इन्होंने राक्षस घोषित कर दिया जो इनके विरूद्ध थे ; जैसे राक्षस रावण व अन्य भी। आप तो शायद अपने आप राक्षस हो गए वरना ये लोग आज भी उतने ही शक्तिशाली हैं जितने पहले थेउसका कारण इनके अन्दर इनके पूर्वजों का जींस पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। जिस जींस प्रणाली को आज के ब्राह्मण(वैज्ञानिक) सिद्ध कर चुके हैं । जी हाँ आपने लिखा है इनमें कोई वैज्ञानिक नहीं हुआ, ऐसा नहीं है , जो भी वैज्ञानिक हुआ उसे इन्होंने ब्राह्मण मान लिया , ऐसा ये आदि काल से करते आ रहे हैं । इन्होंने वानरराज बाली को मरवा दिया अन्य भी कई उदहारण हैं । मैंने तो एक उपन्यास में पढ़ा था कि अयोध्या में राम का राजतिलक भी इन्होंने ही नहीं होने दिया क्योंकि (ये दूरद्रष्टा तो होते ही हैं) इन्होंने जान लिया था कि दक्षिण में रावण अति विद्वान् होता जा रहा है और उसे केवल राम ही मार सकता है। इन्होंने षड्यंत्र रचा उधर रावण की बुद्धी को भ्रष्ट करने वाले उसके आस-पास के ब्राह्मण ही तो थे, उसके अन्दर घमंड
किसने पैदा किया नारद मुनि ने, जहाँ घमंड पैदा हुआ उसमें अवगुण आते गए जिनके कारण वह मारा गया । वरना वह इतना विद्वान् (वैज्ञानिक) हो गया था कि स्वर्ग तक सोने की सीढ़ी लगाने का लक्ष्य बना चुका था। जिन लोगों ने सुधार वादी आन्दोलन चलाया और सफल हुए उन्हें इन्होंने अपना अवतार मान लिया,भगवान बुद्ध,भगवान महावीर,गुरु गोविन्द सिंह व अन्य चौबीस अवतार बताते हैं ।
इन्हीं ब्राह्मणों के कारण आज जो अपने को विद्वान् समझते हैं ये उन्हें कम्युनिस्ट(राक्षस) समझने लगते हैं। जबकि कम्युनिज्म इनके धर्मग्रंथों में पहले से ही उन्नत रूप में है। क्योंकि इनके धर्मग्रंथों में राक्षस कि परिभाषा आज के कम्युनिष्टों के विचारों से मेल खाती है
यही साजिश आज ये लोग बाबा साहब, कांशी राम, मायावती,मुलायम सिंह ,पासवान इत्यादि के साथ कर चुके हैं। देखिये न दलित वर्ग के लिए जिसने भी संघर्ष किए आज उसे ही गाली मिल रही है । बल्कि उसी वर्ग के लोग उनके विरोधी हो गए हैं,यह भी इन्हीं की साजिश है। उपन्यास सम्राट प्रेमचंद हों या महात्मा गाँधी , कांशीराम हों या मायावती , मुलायम हों या पासवान,यहाँ तक कि भगवान राम का भी
विरोध इन्हीं से करवाने लगे, आप भी सावधान रहना कल को आप पर भी ऊँगली न उठ जाए,क्योंकि इनकी(दलितों की) प्रवृति ऐसी ही बन रही है। जो आरक्षण देगा लाभ देगा ये उसके ही गुण गायेंगे । इन्हें नहीं पता कि इन्हें कमजोर करने की ये भी ब्राह्मणों की ही साजिश है,लाईन में खड़े लंगड़े को अलग करके एक लड्डू ज्यादा देकर कहा जाए कि तू लंगड़ा है इसलिए लड्डू खा लंगडे़पन पर मत सोच। ये प्रकृति प्रदत्त है,कमजोर और शक्तिशाली की बनावट प्रकृति में ही है।
क्या कारण हो सकता है, ये किसी मनुष्यों के जींसों पर शोध करने वाले वैज्ञानिक से पूछना चाहिए।
माफ़ करना बात ब्राह्मणों की चल रही थी , तो मेरा ये कहना है की जो वर्ग अपनों का नहीं हुआ वह दूसरो(दलितों
) का क्या होगा ।
दलितों का भला ऐसे नहीं होगा जैसे आप या मायावती या अन्य करना चाह रहे हैं। उन्हें अपने अन्दर से ये हीन-भावना निकालनी होगी कि ब्राह्मण या अन्य सवर्ण हमसे श्रेष्ठ होते हैं और उन्हें नीचा दिखा कर ही हम उनसे श्रेष्ठ हो सकते हैं। आख़िर पौराणिक ग्रंथो को नकार कर या उनका हवाला देकर आप झूठे उदाहरण दे कर उन्हें भी अपनी जड़ों से काट रहे हैं। झूठ के पाँव नहीं होते यह जान कर भी आप न जाने क्यों आने वाले समय के लिए अपने को कलंकित करना चाहते हैं ।
श्रीमान जी अगर शोध हो तो पता लगेगा कि भेदभाव प्राकृतिक ही होता है। जो,श्रेष्ठ होता है वो राज करता है,इसका उदाहरण आज मायावती हैं क्या वह ब्राहमणों के साथ-साथ अन्य सवर्णों को हुक्म पर नहीं घुमा रहीं।
वैसे क्या सवर्णों-सवर्णों में भेदभाव नहीं है,ब्राह्मणों में आपस में भी छोटे-बड़े होते हैं जिनके आपस में रिश्ते नहीं होते , आगे-पीछे बेशक एक दूसरे के यहाँ खाना खा लें पर समारोहों में नाक का सवाल बना लेते हैं कि हमसे छोटी जात का ब्राह्मण है उसके यहाँ नहीं खाऊँगा या अलग रसोई लगेगी। लेकिन इससे छोटे ब्राह्मण के मन में हीन भावना तो नहीं बनती न.तो महाराज हीन भवना समाप्त करो । बाकी रहा हिन्दी(भाषा),हिंदू(सभ्यता),हिन्दुस्तान(भारत-माता)का आपका विरोध, तो मैं याद दिला दूँ कि रक्ष-संस्कृति को मानने वाले(राक्षस)आज से नहीं श्रष्टि आरम्भ से ही विरोध करते रहे हैं पर आज तक सफल नहीं हुए क्योंकि हारना- जीतना मनुष्य द्वारा निर्मित संबंधों में होता है प्राकृतिक रूप से जो समृद्ध हो वो न हारता है न जीतता है। ज्ञान-विज्ञानं के लिए हाथ कंगन को आर्शी क्या,पर उलूक प्रकृति के प्राणी को उजाला नहीं दिखाई देता।पर कानों से सुन तो सकते हैं , इसके लिए आज कल बाबा रामदेव के कायक्रम में कभी-कभी राजीव दीक्षित आते हैं जो हिंदू इतिहास व ज्ञान-विज्ञानं के बारे में बताते हैं,उन्होंने ही बताया कि कभी हमारे यहाँ नाई व मोची
भी कुशलता से सर्जरी करते थे । खगोल विज्ञानं व गणित के विषय में हम दुनिया में सबसे पहले से जानते हैं उसके लिए आपको रोजाना सुबह जल्दी उठाना पड़ेगा। अगर प्राणायाम भी कर लो तो स्वस्थ भी हो जाओगे । बीमार व्यक्ति को कितने ही स्वादिस्ट व्यंजन खिला दो उसे अच्छे नहीं लगेंगे । इसी तरह ज्ञान के सम्बन्ध में भी समझ लो, जब तक मन साफ़ न हो कितना ही अच्छा ज्ञान हो मन उसमें से बुराईयाँ ही ग्रहण करेगा ।
कुछ ग़लत लिख दिया हो जो आपको बुरा लगे ,तो बुरा मान लेना-मेरी बला से ।

Saturday, May 2, 2009

पहाडों में आग

पहाड़ के जंगल इस समय आग से
धू-धू कर जल रहे हैं ,
जबकि आग बुझाने के नाम पर
करोड़ों रुपये का बजट बनाकर
खर्चा दिखाया जाता है।
भ्रष्टाचार के कारण यह करोड़ों रूपया आग बुझाने के नहीं
आग लगाने का कारण बन रहा है। क्योंकि आग नहीं लगेगी तो रूपया खर्च कहाँ दिखायेंगे।
अगर आग लगने पर जुर्माना (सम्बंधित ग्राम-सभा व वनाधिकारियों पर)
लगाया जाए तो शायद आग लगनी बंद हो सकती है।
मतलब ,अभी तो आग लगने पर उन्हें इनाम मिल रहा है। तभी आग लगने की घटनाएँ
बढती जा रहीं हैं।

Friday, May 1, 2009

पत्रकारों की पिटाई


मुम्बई में किसी धन्नासेठ के लड़के की शादी में
पत्रकारों की पिटाई हुयी ।
पत्रकारों को अपनी स्वान प्रवृति के कारण इसी
तरह पिटना होता है । जो लोग नहीं चाहते कि
ये लोग उनके बीच में आयें ये वहां जबरदस्ती जाते

हैं । अगर कोई नेता इनके साथ ऐसा करता तो ये उसका
बहिष्कार कर देते ।