राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़ी हर उस “शै” ‘व्यक्ति, संस्था,सरकार,परिवार, ख़िलाड़ी और बुद्धिजीवी,
विरोधी/समर्थक’ को धन्यवाद। इनके कारण आज हमें यह तो पता लगा कि हमारे देश की संसार के देशों में इतनी प्रतिष्ठा है कि उसके कम होने की चिंता भी होनी चाहिए।
वर्ना; हमें कैसे पता लगता ? अगर इन खेलों को आमंत्रित करने वाले ही, हमारे यहाँ की भुखमरी-भ्रष्टाचार और दिल्ली के भिखारियों का ख्याल करके इन्हें आमंत्रित ही न करते।
हमें कैसे पता लगता ? अपने देश की प्रतिष्ठा का,अगर;इतना बड़ा बजट इस आयोजन में हमारे नेता-अधिकारी-ठेकेदार आपस में बांटते नहीं। जहाँ तक कुछ लोगों का ये कहना है कि ये आयोजन महंगा है,तो मैं बता दूँ;महान वही होता है जो अपना घर फूंक कर दुनिया को तमाशा दिखाता है । हमारा देश (नेता-अधिकारी-ठेकेदार)तो इस कार्य के लिए ही पहचाना जाता है।
धन्यवाद उन विरोधियों को भी, कि; तुमने अंत समय में भ्रष्टाचार और अव्यवस्थाओं की पोल-खोल कर उन लोगों को नींद से जगा दिया, जो देश की प्रतिष्ठा को समझते हैं और उसे बचाना चाहते हैं । पर किसी के जगाने पर ही जागते हैं। और फिर संयम का पाठ पढ़ाने लगते हैं, इन्हें नहीं पता कि भारत की प्रतिष्ठा इतनी नही है कि उसे बचाने की चिंता की जाये ।
और
प्रतिष्ठा बचाने वाले लोगों को इसलिए धन्यवाद, कि; उन्हें देश की प्रतिष्ठा का कुछ तो ख्याल है। पर उनकी चिंता को दूर करने के लिए इतना बता दूँ कि; हमारे देश की प्रतिष्ठा कम नहीं हो सकती, क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि संसार के सौ देशों की अर्थव्यवस्था हमारे "विदेशों में छुपाये धन" से चलती है । सोच लो उनके साथ साथ और देश भी हमें कितना प्रतिष्ठित नजर से देखते होंगे। संसार में हमारी प्रतिष्ठा कम कैसे हो सकती है ? जबकि इसको पाने के लिए हमने अपनी भाषा को, संस्कृति-संस्कारों को, अपनी सभ्यता को छोड़ दिया। प्रतिष्ठा कम होने का डर तो तब होता जब हमने अपनी प्रतिष्ठा को पाया होता।
हमने तो अपनी जो नई प्रतिष्ठा, आजादी के बाद बनायी है उसमे तो कोई डर है ही नहीं। कपडे छिनने का डर उसे होना चाहिए जिसने अपने कपड़े पहने हों, जिसने कपड़े से लेकर जूता चप्पल और चश्मा तक विदेशी पहन रखा हो उसे किस बात का डर।
इसलिए हमारे महानुभावो चिंतित न होओ हमारी आज की प्रतिष्ठा में कोई भी अंतर नहीं पड़ने वाला । अमरीका वालों की नजर में हम मूर्ख, ब्रिटेन की नजर में गुलाम और पश्चिम के “सभ्य” देशों की नजर में “असभ्य गड़रिये”ही रहेंगे।
इसलिए अगर हंसी उड़ने की चिंता करनी है तो पहले अपने देश को अपना तो बनाओ जब सबकुछ हमारा होगा, दिखावा नहीं होगा, तो हंसी उड़ने का डर नहीं रहेगा । हमें तब शर्म आनी चाहिए जब हम चिल्ला-चिल्ला कर विदेशी कम्पनियों को अपने यहाँ व्यापार करने के लिए बुलाते हैं इतना बड़ा देश होने के बावजूद। और वे हमारे नागरिकों को जहर भी पिलाते हैं और आर्थिक रूप से लूटते भी हैं ।
desh ki pratishtha bachane ka jimma hamara swayam ka hi hai...sahi aalekh
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