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Sunday, October 3, 2010

ये कोई मजाक नहीं हैं

सब शांत होकर अब खेलों का आरम्भ देखो, फिर खेल भी देखना । जो हो चुका; उसे भूल जाओ । सरकार औरआयोजकों का ध्यान मत बँटाओ, उन्होंने जो “अर्जित” किया है उसे सँभालने दो । किसी के मुंह के अन्दरगया "कौर” निकलवाना लगभग असंभव तो होता ही है, पाप भी होता है ।

उनका भाग्य ! जो देश की महान जनता ने ये अवसर उन्हें सौंपा । क्योंकि किसी को भी ये अवसर मिलता वोभी वही करता जो इन्होने किया है ।
कुछ नया तो नहीं किया । सभी अपनी-अपनी जगह पर यही तो कर रहे हैं । बताओ तो जरा; कौन दूध का धुला है.....?

फिर ; ये तो बेचारे अंग्रेजों के वंशज, कैसे अपने खून को लजा सकते हैं ? इन्होने तो लूटने (भ्रष्टाचार) के मामलेमें उनसे भी अधिक तरक्की कर ली है । उनकी केवल चमड़ी का रंग सफ़ेद था,
इन्होने अपने खून तक का रंगसफ़ेद कर लिया ।

पक्के "विकासवादी" हैंकुछ तो छूटता इनसे; जिसका विकास न हुआ हो । अब ये अलग बात है कि विकास “नकारात्मक-सकारात्मक” कहीं को भी हुआ; हुआ तो सही । आज हम इस लायक तो बने कि; ‘ जिन अंग्रजों से उनके जातेसमय हमारे नेताओं ने वादा किया था कि हम भारत को उनके नक्शेकदम पर ले जाते हुए, भारत में कभी भीभारतीयता
नहीं पनपने देंगे ’ उन्हें अपने यहाँ की तरक्की दिखाने के लिए, और हम कितना उनके एहसानमंद हैं कि उन्होंने हमें अपनी भाषा-संस्कार-सभ्यता-साहित्य हमें दिया है , जिसका हम आज पैंसठ वर्ष बाद भीपालन कर रहे हैं ।

सदा इस प्रयास में लगे रहते हैं कि अंग्रेजियत यहाँ से कहीं मिट न जाये । इसलिए आओ तुन्हीं उदघाटन करोहम अपनी महामहिम को समझा लेंगे वह आपको देख-देख कर ही निहाल होती रहेंगी । देखो ! हम अभी भीनहीं बदले हैं तुम्हारी जी हजूरी करने में हमें अभी भी आनंद का अनुभव होता है

2 comments:

  1. उत्तम व्यंग्य !

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  2. नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

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