आख़िर नेताओं को महँगाई का अहसास हो ही
चलो अच्छा है अपना पूरा करके अब शायद, ये जनता के लिए कुछ सोचें, या तो महँगाई कम करें या आम आदमी की आमदनी बढ़ाएं। हम तो इसी उम्मीद में रहेंगे। हमारे नेताओं में अभी शर्म बची हुई है,तभी तो जब उनके खाने के लाले पड़ गए महँगाई से तब मज़बूरी में उन्होंने अपने वेतन-भत्ते बढ़ाये। अब इनके बिना काम तो चल नहीं सकता इसलिए कुछ भार जनता पर डालना ही पड़ेगा। और जनता तो धोबी के गधे की तरह है, कितना ही बोझा लाद दो कुछ नहीं कहती,क्योंकि चुनाव में खूब खा- पीकर वोट दिया है। अगर कहे, तो धोबी की तरह ही उसकी धुनाई करके सीधा कर देगी। आख़िर सरकार है अपने बारे में सोचने का उसे पूरा हक़ है। इसमें
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