ताजा प्रविष्ठियां
Sunday, December 27, 2009
एन. डी. हो गए बेपरदा
हम तो यही कह सकते हैं( बड़े बेपरदा होकर तेरे कूंचे से हम नकले ) ।
आजकल मैं अपने अड्डे से बहार हूँ इसलिए कुछ टाईम बाद सुचारू रूप से चलूँगा ।
Thursday, December 17, 2009
शब्दों का कार्टून

आख़िर नेताओं को महँगाई का अहसास हो ही
चलो अच्छा है अपना पूरा करके अब शायद, ये जनता के लिए कुछ सोचें, या तो महँगाई कम करें या आम आदमी की आमदनी बढ़ाएं। हम तो इसी उम्मीद में रहेंगे। हमारे नेताओं में अभी शर्म बची हुई है,तभी तो जब उनके खाने के लाले पड़ गए महँगाई से तब मज़बूरी में उन्होंने अपने वेतन-भत्ते बढ़ाये। अब इनके बिना काम तो चल नहीं सकता इसलिए कुछ भार जनता पर डालना ही पड़ेगा। और जनता तो धोबी के गधे की तरह है, कितना ही बोझा लाद दो कुछ नहीं कहती,क्योंकि चुनाव में खूब खा- पीकर वोट दिया है। अगर कहे, तो धोबी की तरह ही उसकी धुनाई करके सीधा कर देगी। आख़िर सरकार है अपने बारे में सोचने का उसे पूरा हक़ है। इसमें
Wednesday, December 16, 2009
छोटे राज्य चाहने वालो...छोटे राज्य के फायदे जान लो
Monday, December 14, 2009
Sunday, December 13, 2009
नेताओं की पैदाईश पर रोक कैसे लगे..?
इस देश में समस्याएँ ही समस्याएँ हैं,फ़िर भी हमारे नेता समस्याओं को और पैदा करते जा रहे हैं।आज देश में जो भी समस्या है उसके पीछे या उसे बनने वाला नेता ही है। हालाँकि जैसे जनसँख्या पर रोक लगाने का उपाय, परिवार नियोजन जैसा कार्यक्रम है, वैसा अभी तक समस्याओं पर रोक लगाने का कोई उपाय नहीं खोजा जा सका। शायद मुमकिन भी नहीं। जब तक नेता(राजनीतिक) पैदा होना बंद न हों।
कोई ऐसा तरीका ढूँढना होगा जिससे नेता पैदा होना बंद हो जायें। एक गौर करने लायक तरीका ये है कि (राजनीतिक) नेता उसे ही बनाया जाए जिसके आगे-पीछे, दायें-बांयें ऊपर नीचे कोई न हो।
Thursday, December 10, 2009
शर्म
वैसे बहुत अच्छे लक्षण हैं हमारे देश के,हमारे यहाँ के लोगों, खासकर “नेता लोगों” को,अगर शर्म आने लग जाए तो देश में कुछ सुधार होने लगे। जब से शर्म आनी कम हो गई है तभी से देश में बुराईयाँ-भ्रष्टाचार बढ़ने लगे।
इन्हें सोचना चाहिए , जिस मुद्दे को लेकर इन शर्मीले लोगों को कलंक की हद तक शर्म आयी, उसी मुद्दे पर "पिछले पाँच सौ सालों से बहुत से लोगों को शर्म आ रही थी"। सो उनहोंने उस शर्म को धो दिया, वरना वह भी कलंक का अनुभव कर रहे थे।
और वास्तव में शर्म आनी भी ऐसी ही बातों के लिए चाहिए थी,लेकिन इन लोगों की "शर्म भी बड़ी बेशर्म है" पिछले साठ-बासठ सालों से ऐसी बातों के लिए नहीं आ रही,जैसे स्वतन्त्र होने के बाद भी हम विदेशियों द्वारा बनाये कानून को लागू किए हुए हैं, जैसे स्वतन्त्र होने के बाद भी हम विदेशियों द्वारा बनाई गई शिक्षा पद्दति से पढ़ने-पढ़ाने को मजबूर हैं,जैसे हमारी अपनी सशक्त भाषाएँ होने के बाद भी हम विदेशी भाषाओँ में पढ़ने को अपना सौभाग्य समझने लगे हैं, जैसे न्याय व्यवस्था में भी हम विदेशी गुलामी को नहीं त्याग सके, इसी तरह के और भी बहुत से कारण शर्म करने के हैं।
इन पर शर्म करने की किसी को फुर्सत नहीं है। तारीफ की बात ये है कि उन लोगों को भी नहीं है जिन्हें अयोध्या मुद्दा या ईमारत कलंक लग रहा था।
इन सब बातों के साथ अब तो वर्तमान में भी इतने मुद्दे शर्म करने को हो गए है, उन पर किसी नेता को शर्म नही है बिल्कुल बेशर्म होगये हैं, जैसे नेतागिरी बेईमानी का प्रतीक बन गई है,जैसे नेतागिरी गुंडागर्दी का पर्याय बन गई है
ये कितनी बड़ी शर्म और कलंक की बात है कि हमारे देश का सौ लाख करोड़ रूपये विदेशी बैंकों जमा हैं जबकि सैकड़ों बैंक हमारे देश में हैं। क्या सोचते होंगे विदेशी हम भारतीयों के बारे में अपने घर में चोरी करके पड़ोसी का घर भर रहे हैं।
तब इन्हें शर्म नहीं आती जब हमारे खिलाड़ी (क्रिकेट के) विदेशी टटपुन्जिये पत्रकारों द्वारा बहिष्कृत कर दिए जाते हैं कि उन्होंने अपनी भाषा में क्यों बोला।
ऐसे ही उन खिलाडियों के ऊपर भी इन्हें शर्म नहीं आती जो चार पैसे मिलने के बाद अंग्रेजी को ही अपनी पैतृक भाषा समझने लगते हैं। जैसे ये उनकी पत्रकारिता के गुलाम हो गए हों।
इन बेशर्म शर्मिलों को तब भी शर्म नहीं आती जब इनका कोई बिरादर अपने लिए करोड़ों रूपये का महल बनवाता है फ़िर उसे बुलेटप्रुफ भी करवाता है,जैसे वो पैसा..........या जैसे बुलेटप्रुफ बनवा कर ये अजर-अमर हो जायेंगे।
आख़िर शर्म का भी कोई मानदंड तो होना ही चाहिए, शर्मीले बनो तो ऐसी सभी बातों के लिए शर्म आनी चाहिए जिनसे देश की समाज की आँखे नीची होती हों। नंगापन फैलते देख तुम्हें शर्म नहीं आती,उल्टा उसे सही ठहराते हो,क्योंकि "कुछ शर्मीले जो ताकतवर भी थे"ने उन्हें पीट दिया। पीटने पर शर्म आई तो ठीक लेकिन नंगापन ठीक तो नहीं।
तो जनाब शर्म करो पर कुछ सोच कर। शर्म करने के कुछ वास्तविक मुद्दे भी हैं उनपर शर्म करो, अगर वास्तविक शर्मीले हो तो। क्योंकि उन मुद्दों पर हो सकता है कि वोट न मिले। केवल ऐसे मुद्दे पर क्यों शर्म करते हो,जिस पर तुम्हें भी वोट मिलें और उन्हें भी जिन्होंने तुम्हारे अनुसार शर्म करने का काम किया है।