केन्द्र सरकार की दिखावे को ही सही अतिव्ययता को मितव्ययता में बदलने की कोशिश का स्वागत होना चाहिए , क्या पता दिखावे के फैशन की तरह यह भी फैशन (चलन) बन जाए ।
वरना आजादी के बाद तो बिल्ली ने इतने चूहे खाए हैं कि अब ये अगर पूरे पचास साल तक मितव्ययता बरतें, लगातार , तब इनपर विश्वाश होगा । वरना तो, ऐसा ही लग रहा है कि अब चूहे खाने मुश्किल होगये हैं इसलिए ये दिखावा करना पड़ रहा है।
लेकिन पार्टी के बड़े नेता बेशक अपने खर्च कम कर देंगे , पर उनका क्या होगा जो राजनीति में आते ही अय्याशी के लिए हैं । उन अधिकारीयों का क्या होगा जिनके खून में कई पीढियों के लिए फिजूलखर्ची समां गई है।
इनके साथ ही एक चिंता और सता रही है कि उन पाँच सितारा होटलों-रिसौर्टों, बड़ी-बड़ी हवाई कम्पनियों व इनसे जुड़े पेशेवर कर्मचारियों का क्या होगा ? अगर ये मितव्ययता वाला फैशन चल पड़ा तो जिन अय्याशो के दम पर ये सब टिके हुए हैं बेकार हो जायेंगे ।
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