(हमारा शिक्षक चिंताओं से तनावों से त्रस्त है)
आज के बच्चे क्या सीखें शिक्षकों से, अपने अधिकारों नाम पर कैसे हड़ताल करना या ब्लैकमेल करना , कैसे संगठन का नेता.......................................
पहले के जिन शिक्षकों को हम आदर्श के रूप में आज अपने बच्चों को बताते हैं अगर वैसे शिक्षक आज इक्का-दुक्का कहीं हैं भी तो अपनी जमात में हँसी या उपेक्षा का पात्र बने हुए हैं ,"आदर्शवाद" आज के समय में "सम्मानजनक" नहीं "मजाक" का शब्द बन गया है । आज के शिक्षकों में, जो मैंने देखा है उठते-बैठते,सोते-जागते,पढ़ते-पढ़ाते हर समय अपने वेतन-भत्तों ,प्रमोशनों के हिसाब लगाने में ही रहते हैं ,या फ़िर आयकर बचाने या भरने के कारण चिंता में रहते हैं । अभी संगठनों की राजनीती की दौड़-भाग अलग है । हमारा शिक्षक चिंताओं से, तनावों से त्रस्त है। इसीलिए शायद अन्यों के मुकाबले ज्यादा रोगग्रस्त है।
आज के बच्चे क्या सीखें शिक्षकों से ? अपने अधिकारों के नाम पर कैसे हड़ताल करना या ब्लैकमेल करना , कैसे संगठन का नेता बनना , ये कहना कि कर्तव्यों की बातों से केवल पेट भर सकता है, नेताओं-ठेकेदारों या उद्योगपतियों की तरह गाड़ी-बंगला नहीं खरीद सकते, इसलिए,ट्यूशन पढाना जरुरी है। स्कूलों में जो वेतन मिलता है वह तो केवल रजिस्टर में उपस्तिथि दर्ज करने के लिए होता है पढ़ने के लिए तो गाइडें खरीदो, या ट्यूशन पढ़ने के लिए आओ।
No comments:
Post a Comment
हिन्दी में कमेंट्स लिखने के लिए साइड-बार में दिए गए लिंक का प्रयोग करें