हम आजकल नेताओं से नैतिकता की अपेक्षा करने लगे हैं।
वो भी उस पार्टी के नेताओं से जिसका भारत पर सबसे अधिक प्रभाव व सबसे अधिक राज रहा है। जाहिर है, कि अनैतिकता फैलाने में भी सबसे अधिक योगदान उसी पार्टी का होगा, उसके नेताओं का होगा। अब आज क्यों हमारे बुद्धिजीवी, हमारे न्यूज चैनल उन नेताओं से ये अपेक्षा करते हैं कि वे नैतिकता दिखाएँ ?
इस देश की जनता नैतिकता दिखाने वालों को तुच्छ समझती है , जो स्वयं अय्याशी नहीं कर सकता वह आम आदमी का क्या भला करेगा, जब स्वयं अय्याशी करेगा तब कमसेकम आम आदमी के लिए दो रोटी की सोचेगा , जो ख़ुद ही दो रोटी पर गुजारा करता होगा वह आम आदमी को क्या देगा, आम आदमी के हिस्से तो आधी रोटी भी नहीं आनी ।
नैतिकता वो भी नेताओं से , जिन्होंने स्वयं कमाया है , कोई जनता की कमाई थोड़े ही अय्याशी पर लुटा रहे थे जनता की कमाई तो सरकार लुटाती है, तब इन्हें (न्यूज चैनलों व बुद्धिजीवियों को) नहीं समझ आता कि क्या कहें। क्योंकि इन्हें विज्ञापनी बजट में हिस्सा मिल जाता है ।
नेताओं की बात छोड़ दें तो कई अन्यों की इसी तरह की अनैतिकता के दायरे में आने वाली बातों को ये (न्यूज चैनल ) खूब प्रसारित करते है ,क्रिकेटरों की एक-एक करोड़ की कारें , करोड़ों के बनते मकान व उनके अन्य खर्च , जो अय्याशी की श्रेणी में आते हैं ,
और कमसेकम इन खिलाड़ियों के लिए तो बिल्कुल ही अनैतिक हैं क्योंकि ये आम आदमी के बीच से और आम आदमी के कारण करोड़ों कमा रहे हैं, अगर आम आदमी इनके खेल और विज्ञापन न देखे तो इनका क्या होगा। लेकिन इन लोगों (न्यूज चैनलों को) नहीं दीखता , जब हमारी सरकारें अपने सांसदों-विधायकों-अधिकारीयों-कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने को निर्लज्जता से नियम बनाते हैं
क्या वो अनैतिकता नहीं है ? आम आदमी के लिए तो सौ रूपये रोज वो भी साल में केवल सौ दिन ,मतलब ,साल में दस हजार मात्र। इसमें अनैतिकता नहीं दिखती। नेताओं के पीछे पड़े रहते हैं। बड़े आदमी नेता बनते हैं जिन्होंने जिंदगी पंचसितारा होटलों में ही काटी है, वह हमें लगती है अय्याशी, उनके लिए तो जिंदगी की जरुरत है जैसे हमें जीने के लिए रोटी चाहिए –उन्हें जीने के लिए पंचसितारा होटल चाहिए। नैतिकता-अनैतिकता पर बहस करनी थी तो तब करते जब इन जैसे उद्योगपतियों को या पैसे वालों को राजनीतिक पार्टियाँ अपने हित में सांसद या विधायक बनाती हैं , अब इस बात पर गाल बजा कर कोई फायदा नहीं अगर यही लोग या इनकी कम्पनियां तुम्हें विज्ञापन दे देंगी तो सब एकदम चुप हो जाओगे । बाकी रहा आम आदमी, उसके लिए तो ठीक ही है ,जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय। अब तो राजनीति में लोग आते ही अनैतिकता के लिए हैं । नैतिकता स्थापित करने का ठेका अगर नेताओं को दे दोगे तो काम चलना मुश्किल होगा ।
आपको हिन्दी में लिखता देख गर्वित हूँ.
ReplyDeleteभाषा की सेवा एवं उसके प्रसार के लिये आपके योगदान हेतु आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ.