बाजारवाद का कमाल है वरना कौन पूछ रहा है ।
धौनी की कमाई सब देख रहे हैं खर्चे कोई नहीं देखता। जबकि अभी कमाई का आंकड़ा हाफ सेंचुरी भी पूरा नहीं हो पाया। सेंचुरी के लिए तो अभी पूरे इक्यावन करोड़ और चाहिए।
ये तो ऑन रिकॉर्ड आंकड़े हैं ऑफ रिकॉर्ड , क्या पता पूरी सेंचुरी हो।
लेकिन जनाब इतने में भी पूरा कहाँ पड़ता है। अब हाफ सेंचुरी वाले आंकड़े को ही ले लें तो इसमें से कई करोड़ तो आयकर में ही चला जाता होगा, बचे कुछ करोड़ों में से अभी उनका मकान निर्माणाधीन हैं,जाने कितने करोड़ का बजट होगा,अब आम आदमी की तरह का मकान तो होगा नहीं, न जाने कितने विशेषज्ञ होंगे जिनकी फीसें ही करोड़ों में होगी। फ़िर मकान बनते-बनते बजट लगभग दोगुना हो जाता है। पहले की बात और थी आम आदमी की तरह थे एक कमरे के मकान में भी गुजारा हो जाता था। तो अपने नाम के अनुरूप पूरा stendard देखना पड़ता है। फ़िर अन्य खर्चे भी हैं गाड़ी भी एक करोड़ की खरीदनी जरुरी है। मोटर बायिकें तो कई चाहिए , क्या होता है उनंचास करोड़ से, जैसी हेसियत-वैसा खर्चा, ये भी कम ही पड़ता है चिंता में घुले रहते हैं जब खेल नहीं पाएंगे तब क्या होगा कौन देगा। इन सारी बातों को कोई नहीं देखता-कमाई सब देखते है, इस कमाई के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं तुम्हें क्या पता। इस पैसे के लिए कितना झूठ जीना पड़ता है । विज्ञापनों के लिए , अपनी आत्मा तक को नजरअंदाज करना पड़ता है जब बेकार वस्तु का विज्ञापन करना पड़ता है जिससे बेचारे देश के भोले लोगों को कोई फायदा नहीं, उल्टा नुक्सान ही होता होगा। फ़िर ये अकेले धौनी की बात नहीं है जितने भी क्रिकेट के कारण इस देश में "भागवान" बने हैं सबकी बात है । बाजारवाद का कमाल है वरना कौन पूछ रहा है।
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