"उ.प्र.पुलिस व परिवहन निगम के चालकों की"
स्थान … दिल्ली का आनंद विहार बस अड्डा__ हमारी उत्तराखंड परिवहन निगम की बस भर चुकी थी, चलने का समय पन्द्रह मिनट पहले हो गया था लेकिन चालक बाहर ही दिखाई दे रहा था।
यात्री बार-बार बस को चलाने को कह रहे थे चालक उन्हें समझाता कि बाहर तो जाम लगा है मैं गाड़ी चला कर ले कहाँ जाऊं, आख़िर यात्रियों की जिद से हमारा चालक तो अपनी जगह पर बैठ गया गाड़ी मोड़ कर बहार निकलने वाले रास्ते पर ले आया पर जब वहां पर खड़े-खड़े बहुत देर हो गई तो हम कुछ लोग उतर कर देखने चले गए कि मामला क्या है , और जब कुछ आगे जाकर देखा कि उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की तीस-चालीस बसें इस तरह से सटा के अड़ा के खड़ी कर रखीं हैं कि जैसे हड़ताल कर दी हो और अभी उनके पीछे से उस रास्ते से बसें आ रहीं थीं, जिस रास्ते से बसों को बाहर निकलना होता है , और चालक; कुछ आपस में हँसी-मजाक और कुछ अपनी-अपनी बसें आगे पीछे करने को उलझे हुए थे। कोई-कोई चालक तो बस ग़लत दिशा में खड़ी कर के स्वयं लापता था । वहां न बस अड्डे के प्रबंधकों का कोई इंतजाम था न दिल्ली पुलिस का , कुछ ठीक ठाक चालकों से मालूम हुआ कि पुलिस होती तो ये उनकी भी नहीं सुनते , वह इस प्रकार की स्थिति देख कर मुहं छुपा कर खिसक लेते हैं दिल्ली सरकार और बस अड्डे के प्रबंधन का हाल तो वैसे ही दिखाई देता है इतनी गन्दगी जैसे महीनों से सफाई न की हो इतनी टूट-फुट जैसे सालों से कोई देख ही न रहा हो।
तो साहब वहां से लगभग एक घंटा देरी से निकले और चल पड़े , लेकिन गाजियाबाद से पहले कुछ पुलिस वालों ने इकट्ठे ऐसे हाथ दिए जैसे उन्हें डर हो कि चालक बस भगा कर न ले जाए। खैर बस के रुकते ही चार-पॉँच खाकी वर्दी धारियों ने इस तरह से धड़ा धड़ अन्दर घुस कर लोगों के सामानों पर हाथ लगा-लगा कर पूछना शुरू कर दिया कि जैसे धावा बोलना या छापा मरना होता है या अपराधियों पर मनोवैज्ञानिक डर बैठाने के लिए ऐसा किया जाता है।“ये अटैची किसकी है… खोल, अरे…. सुना नहीं ये ब्रीफकेश किसका है… खोलता क्यों नहीं… खोल इसे फटाफट, ये बैग किसका है… क्या भर रक्खा है इसमे….दिखा” इस तरह से बस में बठे सभी यात्रियों के सामानों की जाँच की गई और मिला क्या एक यात्री के बैग से एक बोतल शराब की, बस, पुलिस वालों की बांछें खिल गयीं। वह उसे लेकर उतरे साथ ही जिसकी वह बोतल थी उसे उतरने के लिए कह कर “आजा भई आजा” उसे लेकर चले गए जब दस मिनट हो गए तो मैंने भी जाकर देखा कि वो आबकारी विभाग की चौकी थी करीब आठ-दस पुलिस वाले उस आदमी से बहस करने में लगे थे कि “तुझे पता नहीं शराब लेजाना गैरकानूनी है”पुलिस वाले अपने संस्कार भूल जाते हैं आम आदमी से बात करते समय , वह आदमी उस पुलिस वाले से उम्र में बड़ा होगा ,बोला, जनाब एक बोतल ही तो है हम तो जब भी जाते हैं एकाध बोतल ले ही जाते हैं ,फ़िर हमें पता ही नहीं कि शराब ले जाने पर पाबन्दी है , पुलिस वाले का कहना था “एक ही बोतल है मत बोल… तुझे पता नहीं बन्दूक की एक ही गोली आदमी की जान लेलेती है” मेरे साथ और भी दो-तीन लोग वहां पर आ गए थे जब हम में से कोई बोला कि एक बोतल ले जाने पर कब से पाबन्दी लग गई तो वह खा जाने वाले अंदाज में घूरते हुए बोला कि “तू क्या कोई हमारा अफ़्शर है….
चल यहाँ से बस में बैठ” न बोलने की तमीज न शक्ल से ही शरीफ पता नहीं पुलिस वाले थे या कोई…… क्योंकि पिछले दस पन्द्रह साल में पुलिस वाले कमसेकम बोलने की तमीज तो सीख गए हैं, और पिछले इतने ही समय से मैंने ऐसी चैकिंग भी नहीं देखी ।
तो साहब काफी बहस-मुबाहस के बाद आख़िर जिनकी वह बोतल थी उन महाशय ने उनसे बोतल ली और वहीं पीछे की तरफ़ उसे खोल कर शराब फैंक दी , जिसकी कि उन महोदय ने जिद कर रखी थी कि बोतल छोड़ कर नहीं जाऊँगा या तो फैंक कर जाऊँगा या लेकर जाऊँगा। पुलिस वालों के मुह लटक गए कि न माया मिली न रम (बोतल) । मेरी समझ में नहीं आता कि आम आदमी कहाँ जाए नेताओं में गुंडे बदमाश, पुलिस तो पहले ही अपने गुंडा धर्म के लिए जानी जाती है इस तरह की गुंडा गर्दी के लिए क्या कुछ हो सकता है ? सरकारें अपनी बेशर्मी कब छोडेंगी या उन्हें अपनी शक्तियां कब याद आएँगी ? क्यों आम आदमी के मन में सरकारे अपनी जोकरों वाली छवि बना रहीं हैं
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