उत्तराखंड में चुनावी मुद्दे प्रत्यक्ष में कुछ नहीं हैं।
हाँ ;
जिस पार्टी ने जितने ज्यादा गरीब बनाये होंगे उसके उतने ज्यादा वोट।
नहीं समझे न , भई गरीब बनाने का मतलब , “बी.पी.एल राशन
कार्ड बनाना”अभी भी नहीं समझे ; अरे भाई कोई गरीब हो न हो
राशन कार्ड गरीबी रेखा से नीचे वाला बन जाएगा , अगर आप किसी
भी एक पार्टी से जुड़े हों तो ,अब समझ गए न.और ऊपर पहाड़ में
ज्यादातर दो ही पार्टियों का बोलबाला है.
एक और मुद्दा, जिसने ज्यादा राहत राशि बांटी होगी , वास्तव में जरुरतमंद
को मिले न मिले पर अपने कार्यकर्ताओं व समर्थकों को जरुर मिलनी चाहिए
आप कहेंगे ऐसा कैसे हो सकता है,एन.डी.तिवारी जी,बी.सी.खंडूरी जी जैसों के
राज में, अरे महाराज ये हिंदुस्तान है उसमे भी फ़िर ये उत्तराखंड है। यहाँ
कुछ भी हो सकता है।
यहाँ जो भी सरकार बनती है वह काफी संवेदनशील होती है अब ये अलग बात
है की सरकार बनने के बाद आम जनता का जोश तो ठंडा पड़ जाता है इनके कार्य-
कर्ताओं का जोश दोगुना-चौगुना हो जाता है। इसीलिए ऊपर से आदेश हो जाते हैं
कि कार्यकर्ताओं (ठेकेदारों)को ही ठेके दिए जायें , कार्यकर्ताओं के कार्यकर्ताओं
को, काम उपलब्ध करवाना छोटी इकाईयों का काम है। ऊपर से तो ये आदेश हो जाते
हैं कि येन केन प्रकारेण हमारे आदमियों को काम मिलना चाहिए.इसीलिए तो कहीं
पानी हो न हो पर सिंचाई गूल बन रही है,नदी या नाला सूखा है पर उस पर पुल बन
जा रहा है क्योंकि इन पार्टियों के आदमियों को काम देना है। योजना बद्ध तरीके से
काम होता है, अगर कार्यकर्ताओं को लाभ ही न हो तो सरकार का क्या लाभ। अब जो बड़े या
छोटे ठेके ले सकते हैं उन्हें ठेके दो, जो कुछ नहीं कर सकते उन्हें राहत
कोशों से उनकी हैसियत के अनुसार राशि का इंतजाम करवा दो बस, यही राजनीति उत्तराखंड
में चल रही है। इसी तरह बड़े नेताओं ने बड़ी-बड़ी घोषणाएं करके शिलान्याश कर
दिए डिग्री कालेज ,आई. टी. आई. हौस्पिटल , व स्कूल सब जगह यही हाल है कहीं ठेकेदारों
नेताओं-अधिकारियों की मिलीभगत से जरुरत न होने पर भी ये बन गए। (जहाँ जरुरत है वहां
कोई बड़ा ठेकेदार नही है इसलिए नही बने) , अब उनमे स्टाफ
नहीं है। क्षेत्रीय पार्टियाँ भी इन्हीं की भाषा बोलती हैं।
समय के अनुसार खोजपरक लेख के लिए बधाई .
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