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Thursday, November 5, 2009

चढ़ते सूरज को सलाम करो

लेकिन एक बिरादरी है "जो अपने-आप को देश का समाज का पहरुआ बताती है और कुछ हद तक है भी और अपने हथियार को चौथा खम्बा कहती है, जी हाँ पत्रकार और पत्र-पत्रिकाएँ आज के समय में इनके साथ टेलीविजन के लोग भी जुड़ गए हैं जिनका काम ही ये है........


कहते हैं हमें गुलाम बनाने से पहले, अंग्रेजों ने हमारे राजाओं से यहाँ व्यापार करने की इजाजत मांगी थी , उसके बाद धीरे-धीरे पूरे देश पर कब्जा कर लिया; और जो राजा पूरी हेकड़ी के साथ राज करते थे उन्हें एक-एक करके हटाते गए। जिन्होंने विरोध किया उन्हें देश के गद्दारों के साथ मिल कर ठिकाने लगाते गए। इस तरह पूरे भारत पर जब उनका नियंत्रण हो गया तो उन्होंने नीतियाँ बदलने और अपने देश के अनुकूल नीतियाँ बनाना शुरू कर दिया।
यहाँ तक भी प्रजा को कोई परेशानी नहीं हुयी होगी। प्रजा पर जब अत्याचार भी हुए तो उसे उन्होंने अपनी नियति ही माना। क्योंकि ऐसा ही हमारी परम्पराओं से हमारे मन में बैठा था कि राजा भगवान् होता है, लेकिन जब राज और राजा उदासीन पड़ जाए या प्रजा को इन दोनों से कोई विशेष लाभ न दिखाई दे तो प्रजा कहने लगती है कि “कोऊ नृप होय हमें का हानी”। यही हमारे राजाओं ने किया था।
ऐसे में अंग्रेजों ने कुछ प्रभावशाली व थोड़ा धनी-मानी लोगों को पद और पदवियां देकर अपनी सुरक्षा दीवार भी बना ली, इन लोगों ने अंग्रेजों के गुण गाये। आम जनता में उनका डर और इज्जत भी बनाई ताकि विरोध करने वाले डरें और इज्जत करने वाले उन्हें धिक्कारें। लेकिन फ़िर भी शायद ज्यादातर लोगों के मनों में अंग्रेजो के प्रति विद्रोह की भवना बेशक दबी रही हो लेकिन विरोध और गुस्सा दीखता रहता था। क्योंकि अट्ठारह सौ सत्तावन का विद्रोह बेशक असफल हुआ, पर जितना भी हुआ वह बहुत अधिक था, उस स्थिति तक पहुँचने के लिए, बिना आम जन के विरोध के सम्भव नहीं था।
खैर.... जो भी हुआ उसके बाद देश की साधारण जनता जो अभी तक शांत थी वह समझदार हो गई और विरोध के स्वरों को हवा-पानी देने लगी कोई नेतृत्व तलाशने लगी। ऐसी परस्थितियों में अंग्रजों के वो चमचे काम आए जिनको उन्होंने पद और पदवियां देकर न जाने कौन -कौन सा बहादुर बनाया हुआ था।
आम जनता में अंग्रेज सरकार के विरोध की हवा धीरे-धीरे निकालने के लिए,
एक अंग्रेज अधिकारी ने कांग्रेस नाम की संस्था का गठन कर दिया, जिसके बारे में कहा जाता है कि आरम्भ में इसके सदस्य वही बन सकते थे जो अंग्रेजी भाषा जानते हों। ये और बात है कि बाद में इसी कांग्रेस में अंग्रेज विरोधी लोगों ने पकड़ बना कर कांग्रेस के द्वारा ही बड़ा आन्दोलन खड़ा किया पूरे भारत को एक किया और लड़ाई लड़ी।
ये सब भूमिका इसलिए बाँध रहा हूँ कि आज जितनी बुरी स्थिति हमारे देश की है तब(अंग्रेजों के समय )इतनी बुरी स्थिति नहीं थी। तब हम राजनीतिक,आर्थिक और प्रशासनिक रूप से परतंत्र थे। आज तो हम स्वतंत्रता के नाम पर हर क्षेत्र में लुट रहे हैं, अब तो स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि हम अपनी भाषा, अपनी संस्क्रति-संस्कारों,अपनी परम्पराओं-मान्यताओं को न केवल भूल चुके हैं वरन उनकी खिल्ली उडाने में भी शर्म नहीं आती।
भ्रष्टाचार, अब संस्कारित हो गया है अपराध बढ़ते जा रहे हैं, आज हम विकास और प्रगति के नाम पर,शिक्षा के नाम पर आधुनिकता के नाम पर अनजाने में अपनी पीठ थपथपाते हैं अगर अध्ययन किया जाए तो ये हमारे पुराने समय के आगे केवल झुनझुना मात्र ही हैं। उससे भी बुरी बात ये है कि हम(आम जनता) ये सब देख सुन कर भी भुगतते रहने के आदि हो गए हैं या अपनी दाल-रोटी कमाने से हमें समय नही मिल पाता।
लेकिन एक बिरादरी है "जो अपने-आप को देश का समाज का पहरुआ बताती है और कुछ हद तक है भी और अपने हथियार को चौथा खम्बा कहती है, जी हाँ पत्रकार और पत्र-पत्रिकाएँ आज के समय में इनके साथ टेलीविजन के लोग भी जुड़ गए हैं जिनका काम ही ये है कि जो सही हो रहा है उसे आम जनता को बताएं जो ग़लत हो रहा है उसे भी आम जनता को बताने के साथ विरोध के लिए मार्गदर्शन भी करें और नेतृत्व पैदा करने में सहायक हों" वह भी चुप बैठी है क्यों ...?
क्या ये वैसे ही नहीं है जैसे अंग्रेजो के समय उनके चमचे जो या तो रायबहादुर बन चुके होते थे या बनने की उम्मीद में, या कुछ आर्थिक लाभ और ठेकेदारी के लालच में उनके गुण गाते रहते थे और जो अंग्रेजों के विरोधी थे उनकी खिल्ली उड़ाया करते थे।
आज के बड़े बुद्धिजीवी,और अपने को पत्रकार कहने वाले लोग, किसी न किसी लालच में, या हो सकता है डरकर, या हो सकता है अपने जातिद्रोह के कारण, अलग-अलग गुटों में, अलग-अलग विचारधाराओं में, अलग-अलग सरकारों (राजनीतिक पार्टियों ), में बंट कर जो कुछ.... अच्छा भी हो रहा है उसकी अनदेखी कर रहे हैं। या कभी थोड़ा-बहुत ध्यान देते भी हैं तो खिचाई के अंदाज में।
मैं ध्यानाकर्षित करना चाहता हूँ "बाबा रामदेव" के प्रयासों पर। फूंक मार कर लोगों के रोग दूर करने की विद्या से जिस तरह से आम जनता के रोग दूर हो रहे हैं ये दुनिया के ज्ञात इतिहास में सबसे बड़ा चमत्कार है। जो मानव और मानवता के साथ ही स्रष्टि के लिए समर्पित है; लेकिन जैसे हमारे पत्रकार और उनके संस्थान उन्हें नजरंदाज कर रहे हैं वह इनकी ईमानदारी पर सोचने को मजबूर करता है, क्योंकि बाबा रामदेव शुरू से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का विरोध करते हैं इसलिए ...? और जैसे उनके शिविरों में सुबह पाँच बजे लोग पहुँच जाया करते हैं और न केवल प्राणायाम करते हैं , अपने देश की हर समस्या पर बाबा की बातें बड़े ध्यान से सुनते हैं। पूरे देश में जिस तरह "भारत स्वभिमान ट्रस्ट" के सदस्य बनकर एक आन्दोलन शान्ति से तैयार हो रहा है वह अगले दो-तीन सालों में दिखेगा।
जो चमत्कार आज प्राणायाम से हो रहे हैं वह किसी से छुपे नहीं हैं, और इसीलिए आज संसार में बाबा रामदेव किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं लेकिन इन समाचार माध्यमों और उनके नौकरों(पत्रकारों) की भी कुछ नैतिकता बनती है कि नहीं? क्योंकि ये बड़ी डींगें हांकते रहते है कि समाज का भला तभी हो सकता है जब लोकतंत्र का चौथा खम्बा नैतिक हो, निष्पक्ष हो, निडर हो, ईमानदार हो,तभी समाज का भला हो सकता है। इसीलिए ये धारावाहिकों और फिल्मों को चौबीसों घंटे दिखा सकते हैं, पर भारत स्वाभिमान ट्रस्ट जो व्यवस्था परिवर्तन कि हुंकार भर रहा है उसे एक बार भी नहीं दिखाते। भारत की समस्याओं पर विचार तो करते हैं एक-एक घंटे के कार्यक्रम चलाते हैं पर इसी विषय पर बाबा रामदेव ने जो दर्शन दिया है या विचार दिए है ये उनसे परहेज कर जाते हैं, राजीव दीक्षित जो अर्थशास्त्र के आंकडों के साथ बात बताते हैं ,हमारे देश में कितनी लूट हो रही है यह बताते हैं ये उन बातों से परहेज कर जाते हैं....आख़िर क्यों...? क्या इनका ये व्यवहार इनकी ईमानदारी पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता ...?
मैंने पढ़ा है तथा देखा (उत्तराखंड आन्दोलन में ) भी है कि जब स्वतंत्रता आन्दोलन शुरू हुआ था तो जिन क्रांतिकारियों को जल्दी समझ आ गया था कि हमें आजाद होना चाहिए ,और वह इसकी बात करते थे या कोई प्रदर्शन करते थे तो उपरोक्त चमचे, लाभार्थी, या कोई बहादुर का खिताब पाए लोग उनकी खिल्ली उडाते थे।
ऐसा तो मैंने प्रत्यक्ष रूप से उत्तराखंड आन्दोलन में भी देखा है, जो लोग उत्तराखंड प्रदेश बनवाना चाहते थे उनकी अन्य पार्टियों के कार्यकर्त्ता हँसी उडाया करते थे , आज वही सत्ता में है मलाई खा रहे हैं। यही व्यवहार वर्तमान में इस बिरादरी का है। कल को वा-वा बटोरने वाले यही होंगे।
अब देता हूँ एक उदहारण, इस तबके के लोगों के व्यवहार का , आज (14 नव)मधुमेह दिवस है (डायबिटीज डे ) बहुत बड़ी-बड़ी बातें प्रिंट व इ मीडिया में हो रही हैं। बड़े-बड़े लेख लिखे गए हैं। चैनलों पर वार्ताएं चल रही हैं,विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं, सरकार भी दिखाने के लिए यही सब कर रही है, ये जानते हुए भी कि प्राणायाम से सैकड़ों मधुमेह के रोगी अब तक ठीक हो गए हैं। और तारीफ की बात ये,कि कई लेखों में इन रोगियों के लिए निर्देश भी लिखे हैं कि व्यायाम-योग करने से इसे नियंत्रित किया जा सकता है,पर बाबा रामदेव का नाम व उनके द्वारा कराया जा रहा प्राणायाम का उल्लेख उनमें करने से इनकी प्रतिष्ठा कम हो जायेगी। पता नहीं क्यो....?
हो सकता है सभी ऐसे न हों मैं ये उनके लिए नहीं लिख रहा, लेकिन जो हैं उन्हें अपने अन्दर झांकना चाहिए; क्या वह अविश्वास का पात्र नहीं बन रहे, या कहीं इन्हे कोई डर या लालच तो नहीं, जैसा अंग्रेजों के ज़माने में उस समय के संभ्रांत समझे जाने वाले लोगों में था।

क्योंकि बाबा रामदेव बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का,उनके जीरो तकनिकी से बने सामान का विरोध करते हैं, क्योंकि बाबा अंग्रेजों के बनाये कानून जो आजाद भारत में लागू हैं उनका विरोध करते हैं, क्योंकि बाबा स्वदेशी का आह्वान करते हैं कि स्वदेशी शिक्षा, चिकित्सा , न्याय और राज व्यस्था लागू करने की बात करते हैं इसी का नाम उन्होंने सम्पूर्ण आजादी का आन्दोलन रखा है
तो भारत के संभ्रांत लोगो जागो चमकते हुए सूरज को देखने का प्रयास करो तथा समर्थन करो क्योंकि विरोध करने वाली बात स्वामी राम देव कर ही नहीं रहे हैं।




























































































































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