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Saturday, September 5, 2009

विश्वास नहीं होता न......होगा .... होगा

सर्वप्रथम वायुयान का आविष्कार १९०३ में राइट बंधुओं ने नहीं किया ……, वरन, उससे पहले ,
१८६५ में तारपांडे दंपत्ति ने मरुत्सवा नामक सौर उर्जा से उड़ने वाला वायुयान बनाया था ।
विश्वास नहीं होता न …… अभी तो और झटके खाने को तैयार रहिये ।
न्यूटन से भी ५०० वर्ष पूर्व ही गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज हो चुकी थी , जिसे "भास्कराचार्य" ने किया था। आज जिस परमाणु को लेकर बड़े-बड़े देश और उनके वैज्ञानिक चमत्कृत हैं
उस परमाणु की खोज हजारों साल पहले हमारे महर्षि, "कणाद" कर चुके थे।

विश्वास नहीं होता न …….,
होगा भी नहीं , क्योंकि , ये हमें अंग्रजों ने नहीं बताया।
"हमारे लिए ज्ञान के कपाट तो अंग्रेजों ने ही खोले हैं , उससे पहले तो हम लिखना पढ़ना भी नहीं जानते थे"। जो, आज भी ऐसा ही सोचते हैं वह इन बातों पर विश्वास नहीं करेंगे , उनकी आंखों पर चढ़ा चश्मा अपनी जगह बना चुका है ,वह खांचे में फिट हो गया है। जिसे अब खींच कर निकलने पीड़ा भी होती है, जिंदगी भर जिस बात का नमक खाया अब उसको कैसे झूठ मानें।
लेकिन सच तो सच ही होता है, जिस तरह अंधेरे में ये कह देने से कि सूर्य होता ही नहीं है , सुबह होने पर स्वत: झूठ साबित हो जाता है। लेकिन फ़िर भी जिसकी आँखें बंद हो उन्हें अँधेरा ही दिखेगा।
कहते हैं की किसी भी आविष्कार के लिए पहले कल्पना होती है तब
उस कल्पना के आधार पर आविष्कार होता है , जैसे पक्षियों को उड़ते देख कर ये कल्पना हुयी क्या हम भी उड़ सकते हैं । जिन बातों की कल्पना आज वैज्ञानिक करते हैं या बनाने की बात करते हैं, हमारे प्राचीन ग्रंथों में तो आज के जितने आधुनिक यन्त्र हैं , उनका उपयोग करते हुए प्रर्दशित किया हुआ है। इन ग्रंथों की
प्राचीनता को तो आज पुरी दुनिया मानती है।
जैसे कुबेर का पुष्पक विमान जिसे रावण और बाद में राम ने भी
इस्तेमाल किया था। राम- रावण युद्ध में जितने प्रकार के बाणों और अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग हुआ था ,वैसे हथियारों की आज के वैज्ञानिक अभी कल्पना भी नहीं कर सके हैं ।
अग्नि बाण-आग बरसाता था , वरुणास्त्र जल की इतनी वर्षा करता था कि शत्रु घबरा जाता था , इनसे भी आगे ऐसा बाण कि जिस पर छोड़ा वह जल-थल-नभ कहीं भी दौड़े वह उसे मारने के लिए पीछे पड़ा रहा, जब तक वह (इन्द्र का पुत्र जयंत ) श्रीराम के पैरों में गिर कर माफ़ी नहीं मांग लेता तब तक वह उसके पीछे लगा रहता है । विश्वास नहीं होता न ।
होगा, बस वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से सोचना-देखना शुरू कर दो ।
भारतीय धर्म ग्रंथों की विशेषता ही यह है कि आध्यात्म के साथ ही इनमें विज्ञान भी है , जिन मंत्रों को हमें देवताओं की आराधना के लिए बताया है उन्हीं मंत्रों में विज्ञान की परिभाषाएं भी बनती हैं । बस दिमाग पर पड़ी धूल झाड़नी पड़ेगी ,शुरु में कुछ किताबें पढ़नी पड़ेंगी जैसे, श्री नरेन्द्र कोहली की रामायण पर आधारित राम कथा के दोनों भाग, आचार्य चतुरसेन की वयं रक्षाम: गुरुदत्त का तो कोई भी उपन्यास जो थोड़ा बड़ा हो पढ़ लो ,अपने आप विदेशी चश्मा उतर जाएगा सब कुछ समझ आने लगेगा , कि प्रतीकों व अलंकारों के द्रष्टिकोण से जो कहानियाँ हमारे ग्रंथों में लिखी हैं उनका वैज्ञानिक तरीके से भी निष्कर्ष बनता है । जैसे भगवान् शिव के गंगा को अपने सर पर धारण करने का मतलब ये है कि उन्होंने अति प्रबल वेग वती गंगा को अपने दिमाग से शिवालिक की घाटियों में इस तरह घुमाया कि उसका वेग बहुत कम हो गया वरना,कहते हैं कि वह पृथ्वी के अन्दर चली जाती। क्या शिवजी एक वैज्ञानिक नहीं थे...? राजा भगीरथ स्वयं या उनके द्वारा नियुक्त लोग वैज्ञानिक नहीं थे, जिन्होंने ये जान लिया था कि गंगा के पानी में अमृत के सामान शक्ति है और इसे पृथ्वी पर जनसामान्य के लिए लेजाना चाहिए।
वैज्ञानिक तो थे ही, परोपकार की भावना भी थी ।
महर्षि भारद्वाज के ग्रन्थ वैमानिक शास्त्र को पढ़ कर तारपांडे दंपत्ति ने उपरोक्त विमान बनाया था जो सौर उर्जा से उड़ता था , कहते हैं भास्कराचार्य ने सिद्धांत शिरोमणि ग्रन्थ की रचना की उसमें गोलाध्याय भाग में ये बताया कि पृथ्वी गोल है । आज के भूगोल वेत्ता जिन ग्रह नक्षत्रों की दूरी और गति को बड़े-बड़े यंत्रों द्वारा बताते हैं हमारे वैज्ञानिकों ने तब उन दूरियों व गतियों के बारे में जान कर समझ लिया था ,शायद तब तक यूरोप वाले सामाजिक जीवन जीना शुरू भी नहीं कर पाए थे ।
जिन्हें हम वैज्ञानिक कहते हैं वही ऋषि कहलाते थे , ऋषि विश्वामित्र ने ही राम-लक्ष्मण को कई प्रकार की युद्ध विद्याएँ सिखायीं थी । कौरव-पांडवों को भी गुरु द्रोणाचार्य ने धनुर्विद्या में निपुण किया था । ये सब ऋषि कहलाते थे ,ये ही अविष्कार करते और ग्रन्थ लिखते थे ।
बहुत लंबा लेख हो गया अब बंद करता हूँ इस विषय पर फ़िर कभी दोबारा लिखूंगा बहुत ही रोचक व अंतहीन विषय है । पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद ।

2 comments:

  1. अपनी वैदिक सभ्यता के उज्जवल पक्ष को सामने रखने के लिए आपका धन्यवाद्!!
    जब तक इस देश के लोगों की आँखों पर चढा पश्चिमी चश्मा नहीं उतर जाता,तब तक शायद ही कोई इन बातों पर विश्वास करेगा.....लेकिन शायद ये लोग नहीं जानते कि जहाँ विज्ञान की अन्तिम सीमा रेखा है,वहां से तो वैदिक ज्ञान-विज्ञान का प्रारंभ होता है!!
    ज्योतिष की सार्थकता

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