दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, 'हमारे देश भारत' के मुखिया; ‘प्रधान मंत्री जी क्या आप सच में इतने ईमानदार हैं ! जितना “किसी खेत या गोदाम का चौकीदार”होता है ?
अगर हाँ ! तो फिर बताएं;"बाड़" ही खेत को क्यों खा रही है ? गोदाम की दीवारें ही अन्न को सड़ा रहीं हैं ।
इतने सारे घोटाले आपके सामने होते रहे और आप चुपचाप देखते रहे क्यों ?
इससे आपकी ईमानदारी पर विश्वास नहीं होता। महोदय ! भ्रष्टाचार केवल आर्थिक ही नहीं होता है ; पद का लालच भी भ्रष्टाचार होता है, किसी दबाव में कुछ न करना भी भ्रष्टचार होता है; यहाँ तक कि अपनी जिंदगी के डर से देश के मुखिया के पद पर बैठ कर चुप रहना भी भ्रष्टाचार होता है; और उससे भी बड़ी बात; अयोग्य होकर पद पर चिपके रहने को भी भष्टाचार माना जाता है।
तो महोदय ! जरा बताएं तो सही आप ईमानदार कैसे हैं ? हमें तो नहीं लगते।
हमें तो आपके अर्थशात्री होने पर भी शक हो रहा है । दुनिया चाहे आपको कितना बड़ा अर्थशास्त्री माने; क्योंकि उन्हें तो आप लाभ पहुंचा रहे हैं। आपने कौन स वाला अर्थशास्त्र पढ़ा है जिसमे महँगाई बढ़ा कर गरीबी दूर करने के उपाय बताये हैं। वो कौन स अर्थशास्त्र है जरा हमें भी तो समझाओ; कि अपने यहाँ के लोगों पर महँगाई थोपे जाओ और विदेशियों को लूटने का आमंत्रण दिए जाओ। ये कौन सा अर्थशास्त्र है कि देश की आधी से ज्यादा आबादी भूख से बिलबिलाती रहे और कोई अपने लिए सत्ताईस मंजिला महल बनवाये ।
आदरणीय प्रधान मंत्री जी अगर आप सचमुच में ईमानदार हैं तो ! घबराहट में ऐसी कार्रवाही क्यों कर रहे हैं ? उन लोगों पर जिन्होंने लोकतान्त्रिक तरीके से जनता को भ्रष्टाचार,अव्यवस्थाओं और विदेशी तंत्र के प्रति जागरूक कर दिया है।
आदरणीय प्रधान मंत्री जी हमें तो आपकी ईमानदारी पर शक हो ही रहा है,साथ ही आपके बेशर्म होने का प्रमाण भी मिल रहा है । इन मंत्रियों(वकील चौकड़ी) ने आपकी इज्जत का ढिंढोरा सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिटवा दिया है । और आप पिटने दे रहे हैं। महोदय सुप्रीम कोर्ट की तो इज्जत करो, अगर आप ही ऐसी उच्च संस्थाओं का आदेश नहीं मानेंगे तो पूरे देश में क्या संदेश जायेगा ?
एक अंतिम बात; महोदय ! आपकी पार्टी के नेता तो चलो पूरे ही "चौराहे पर हमाम" में रहते हैं। सुरेश कलमाड़ी जैसे; 'जेल में भी (जेलर) से खेल करने लगे, पर पकडे गए' क्या करें समय भी बुरा चल रहा है; इसीलिए तो दूसरी पार्टियों वाले भी यहाँ आकर वो ही सब करने लगे जिससे सरकार की नाक कई-कई बार कट गयी । और आपको मज़बूरी व्यक्त करनी पड़ी; कि कुछ नहीं कर सकते।
अब तो लगता है कांग्रेस का अंत समय आ गया है ऐसे में आप तो अपनी साख बचाओ। जैसे महात्मा गाँधी जी ने अपनी साख बचायी थी उन्नीस सौ सैंतालिस में, ऐसा मैंने सुना है कि उन्होंने कहा था कि जो कुछ भी इस नेहरू सरकार में हो रहा है उससे मैं असंतुष्ट हूँ और एक फरवरी उन्नीस सौ अड़तालीस से मैं दूसरा आजादी का आन्दोलन शुरू कर रहा हूँ । बेचारे ! उन्हें क्या पता था ........... । आप के लिए तो आन्दोलन शुरू करने की जरुरत ही नहीं; वह शुरू हो चुका है बस आपने समर्थन देना है ।
गंभीर सवाल, इनके जवाब खोजे जाने चाहिए।
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जादुई चिकित्सा !
इश्क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।
कौन कहता कि मनमोहन ईमानदार है?
ReplyDeleteयदि वह ईमानदार है तो उससे बड़ा कोई मुर्ख नहीं है कि एक ईमानदार प्रधान मंत्री के राज में जनता बेहाल है और उस ईमानदार को कुछ पता ही नहीं| हर ओर भ्रष्टाचार है और उसे कुछ पता ही नहीं|
राजनितिक महत्वकांक्षा और सत्ता के सुख के लिए कुर्सी पर विराजमान र्रहने के लिए मौनव्रत धारण किया है...बहुत ही सार्थक प्रश्न....
ReplyDeleteमनमोहन सिंह देश के प्रधान मंत्री हैं . उनके ये कहने से कि वो ईमानदार हैं बात नहीं बनती. मनमोहन सिंह एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूर्ण संस्था हैं. वो ये कहें कि मैं इमानदार हूँ और बाकि लोगों से मेरा कोई लेना देना नहीं तो वो अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते. अगर वो अपने मंत्रिमंडल के लोगों को बेईमानी करने से नहीं रोक सकते तो उन्हें इस्तीफ़ा दे देना चाहिए. देश एक कमजोर प्रधानमंत्री को ढोने के लिए बाध्य नहीं है. वैसे भी आजकल ये चर्चा जोरों पर है कि मैडम सोनियाजी के विदेश दोरों पर ३ वर्ष में १८८० करोड़ रूपया खर्च हुआ है. है कोई जवाब तथाकथित ईमानदार प्रधानमंत्री के पास?
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