हम सब भ्रष्टों* से त्रस्त** हैं,
भ्रष्ट सारे अपने में मस्त हैं ।
क्योंकि;
त्रस्तों में से कुछ के हौसले पस्त हैं,
कुछ पर इनका वरदहस्त है ,
लेकिन;
स्वामी जी त्रस्तों के हौसले जगाने में व्यस्त हैं ।
जाति-संप्रदाय,धर्म-मजहब की खुल रही गिरफ्त है।
पर;
भ्रष्ट और चमचे अपने-आप में आश्वस्त हैं,
कि ;
सरकार इनकी पूरी सरपरस्त है,
इसीलिए;
कुछ भ्रष्ट ओ गद्दार ज्यादा ही बदमस्त हैं।
न्यूज नहीं न्यूड चैनल;
त्रस्तों को बुद्धू बनाने में अभ्यस्त हैं ,
इनपर;
साक्षात्कार के लिए
खुद्दार ओ गद्दारों की आमदरफ्त है ।
जागे हुए लोग स्वामीजी के साथ हमरस्त हैं,
सरकार हड़बड़ाहट में अस्तव्यस्त हैं,
सारे भ्रष्टों और गद्दारों के हौसले अब पस्त हैं । *भ्रष्ट--धार्मिक,राजनैतिक,सामाजिक,आर्थिक आदि सभी प्रकार के भ्रष्ट । ** सभी प्रकार के त्रस्त
व्यंग्य के माध्यम से अभिव्यक्ति अच्छी लगी , शायद मै आपके व्लाग पर देर आया हूँ गलती मेरी
ReplyDeleteक्योंकि लेट आने में अभ्यस्त
Shandar vyangya.
ReplyDelete---------
पैरों तले जमीन खिसक जाए!
क्या इससे मर्दानगी कम हो जाती है ?