एक दिन सुबह आस्था चैनल पर योग शिविर के सीधे प्रसारण में "स्वामी रामदेव जी महाराज" ने किसी समाचार पत्र से पढ़ कर एक चुटकुला सुनाया कि; ‘अमरीका वालों ने कहा; हमारे यहाँ कुत्ते फ़ुटबाल खेलते हैं,तो जापान वालों ने कहा हमारे यहाँ मछलियाँ नाचती हैं, इसी तरह चीन वालों ने भी अपनी विशेषता बताई, भारत वाले ने कहा’;‘यह तो कुछ भी नहीं’ “हमारे यहाँ तो गधे सरकार चलाते हैं”।
बात हँसने वाली तो है ही; पर हँसने के साथ ही चिंतन करने वाली भी है ।
वो भी तब; जब हमारा "विदेश मंत्री" यु.एन.ओ की बैठक में जाये और भाषण देते समय “मौरीसस के विदेश मंत्री का भाषण पढ़ दे।
ये भी सोचने की बात है कि; जो लोग (या "….") सरकार चला रहे हों और किसी से अपनी संपत्ति का विश्लेषण करने को कहें, फिर कुछ दिन बाद ही उस सत्ताधारी पार्टी का दूसरा साथी उनके “गधे पन” को उनका अपना व्यवहार बता ,पार्टी और सरकार का पल्ला झाड़ दे ।
लेकिन; मुझे तो लगता है कि हमारे यहाँ “गधे केवल सरकार ही नहीं चलाते” अपितु; "कुछ" अख़बार और पत्रिकाएं भी चलाते हैं, "कुछ" न्यूज चैनल भी चलाते हैं, "कुछ" धार्मिक संस्थाएं भी चलाते हैं और भी न जाने क्या-क्या चलाते हैं। हाँ; "कुछ ब्लॉग" भी चलाते हैं, मैं ब्लोगरों को …… नहीं समझता था पर कुछ ब्लोगर अपने को वही…. सिद्ध करते हैं, फिर इन्हें सही बात गाली जैसी लगती है।
पर हमारे यहाँ के “गधे जरा चालाक किस्म” के हैं। क्योंकि इनके पूर्वजों को अंग्रेज सिखा-पढ़ा गए थे; तो वह सिखाई-पढ़ाई इनके जीन्सों में आ गयी है। अपनी चालाकी से इन्होंने जनता को मूर्ख बना कर आज तक अपना उल्लू सीधा किया है।
इनका गठजोड़ बड़ा मजबूत है समय पर सब अघोषित रूप से एक हो जाते हैं, क्योंकि इन्होने व्यवस्था बनायीं ही ऐसी है कि इन सबके हित एक दूसरे से जुड़े हैं। एक के “रेंकने”पर सभी अपनी- अपनी जगह पर अपने को रेंकने से रोक नहीं पाते। "ये"(रैकना) इनका (गधों का) विशेष स्वभाव होता है; इसे चालाकी से व्यवहार में लाना अंग्रेज सिखा गए थे।
तभी तो इनमे से किसी को भी “स्वामी रामदेव जी का नितीश की प्रशंसा करना नहीं दीखता”, इनमे से किसी को भी “स्वामी रामदेव जी का महात्मा गाँधी को पूजनीय मानना और उनकी नीतियों को आधार बना कर पूरे देश में आन्दोलन खड़ा करना” नहीं दीखता, इनमे से किसी को भी “स्वामी जी का ममता बनर्जी की प्रशंसा करना नहीं दीखता’, “इनमे से किसी को भी बिहार की बाढ़ पीड़ित जनता को दिया गया सेवा-सहयोग नहीं दीखता”, “इनको इनके प्रधान मंत्री को सबसे भ्रष्ट सरकार के सबसे ईमानदार प्रधान मंत्री वाली प्रशंसा भी नहीं दिखती”, इनको भारत स्वाभिमान की यात्रा "जिसमे दो लाख" लोग प्रतिदिन बाबा जी से प्रेरित हो रहे हैं वो भी नहीं दीखते, जबकि सीधा प्रसारण आता है, इन्हें बाबा जी के "वो बोल" भी नहीं सुनाई देते जो इटली और स्विश बैंको को यहाँ लाने के लिए जवाब मांग रहे हैं, इन्हें स्वामी जी का स्वदेशी का आह्वान नहीं दिखाई देता, इन्हें स्वामी जी द्वारा किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार का विरोध चाहे धार्मिक हो, राजनीतिक हो, सांस्कृतिक, हो शैक्षिक हो, सामाजिक हो नहीं दीखता, इन्हें उपरोक्त बातें नहीं दिखाई देती जिनके प्रति अब जनता जाग गयी है,( शक होता है कि ये गधे हैं या उल्लू; क्योंकि उजाले को झुठलाने का प्रयास कर रहे हैं )।
क्या कहूँ ? विदेशी संस्कृति में तो सुकरात का विरोध हुआ, क्योंकि वहां "जाहिल" लोग रहते थे, जीसस का विरोध हुआ वहां भी वही स्थिति थी,क्योंकि इन्होंने सच बोलने का साहस किया था। और भी उदाहरण होंगे, पर हमारे देश में तो विद्वता और विद्वानों का विरोध नहीं; अपितु उनसे "शास्त्रार्थ" करने की परंपरा रही है; जिससे सत्य स्थापित हो सके। तभी तो जितने महापुरुष यहाँ हुए उतने कहीं नहीं हुए। उसका एक कारण ये भी था कि यहाँ जाहिल लोग नहीं रहते थे अपितु सत्य को स्वीकारने वाले लोग रहते थे ।
यहाँ सत्य, सभ्यता, संस्कृति,संस्कारों का प्रकाश पूरी दुनिया से बहुत पहले हो गया था । फिर भी अगर आज चालाक गधों की उपमा मुझे इन बुद्धिजीवियों (तथाकथित)
को देनी पड़ रही है तो उसके लिए वो अंग्रेज शाबाशी के योग्य हैं जो इतना परिवर्तन करने में सफल रहे। पर इस समय जो देश के हालात हो गए हैं इन्हें अब तो जानना चाहिए कि इन हालातों के लिए जिम्मेदार कौन है ।
मुझे तो यह "आन्दोलन" आदि शंकराचार्य द्वारा की गयी "दिग्विजय यात्रा" के सामान लगता है। आज स्वामी जी ने जितने मुद्दे देश के लोगों के दिमागों में भर दिए हैं वह बहुत बड़ी संख्या में हैं जिन्हें “ये लोग” इन छोटी-छोटी बातों में नहीं उलझा सकते। कोई बाबा ( पता नहीं चिलमची है ?) खड़ा हो जाता है उस चैनल पर, “जिसका पता ही नहीं किस दुनिया की बात करता है”। इसी तरह के और भी कई चैनलों पर कुछ "चालाक गधे" कोई भी निरर्थक बात को स्वामीजी के विरोध में पेश करने का प्रयास करते दिख जायेंगे। इनको अपना तो पता नहीं कि ये न्यूज चैनल हैं या विज्ञापन चैनल। ऐसे ही "कुछ नेता" जिनकी निष्ठा देश क्या अपने पिता के प्रति भी नहीं अपनी पार्टी या राजमाता-राजकुमार के प्रति अधिक है वह "चैलेन्ज करता" दिख जाता है और कोई पत्र पत्रिका या चैनल उसे दिखाने को लालायित रहता है। पर जनता का सवाल बन चुका कि विदेशी बैंक किसके लिए बुलाये ? उस पर सब चुप हैं। ४७ में हुयी गद्दारी के लिए सब चुप हैं; किसलिए ? अरे ...... ! गधा चालाकी भी करेगा तो भी गधा ही रहेगा , और जानते हो ! ज्यादा ही रैन्केगा तो आस-पास की जनता दुत्कारने लगती है।
मैं इन्हें (विरोधियों को) गधा नहीं कहता (चालाक गधा)। मेरे कहने से बन भी नहीं जायेंगे । अपने को गधा मानेंगे भी क्यों । ये सब स्वामीजी का विरोध करते, पर कभी उनके द्वारा लाखों को दिए जा रहे जीवन दान को भी वर्णित कर देते, उन पर बहस करवा देते, उनको विश्लेषित करवा देते, तो न जाने कितने और लोगों को प्राणयाम का लाभ पहुँचता, और कितनी तेजी विश्व भर में योग आयुर्वेद विख्यात होता। या उनके द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन को कभी प्रयाप्त समय के लिए दिखा देते। दिल्ली की इतनी बड़ी रैली को ये एक दो मिनट के लिए दिखा पाए। इन्होंने कभी नहीं दिखाया कि आज स्वामीजी की आवाज के साथ कितने देशभक्तों की आवाजें मिल रही हैं ।
ये दिखाते स्वामी जी पर आरोप लगाने वालों को, उनके द्वारा बनाये जा रहे सामान को बदनाम करने वालों को, मनगढ़ंत आरोप लगाने वालों को या जो आज से बीस साल पहले के हालातो को बताने में लगे हैं उनको।
ये सभी भ्रष्ट हैं; अपने-अपने क्षेत्र में ।
क्या इनका प्रयास सफल होगा ? नहीं होगा ; क्योंकि सारी जनता इनकी तरह उल्लू नहीं है कि उजाला न देखे । देखना आने वाले समय में इन सबको मुहं छुपाना मुश्किल होगा । हमें भी पता लग रहा है कि कैसे जयचंद ने गद्दारी की होगी ।
मैं जनता हूँ ये कहेंगे कि; 'इन्हें देशभक्ति के लिए स्वामी जी या मेरे प्रमाण पत्र की जरुरत नहीं है, पर मेरा कहना है कि इन्हें भी इस तरह की घटिया चालाकी जो देशभक्तों को बुरी लगे नहीं करनी चाहिए। स्वामी जी से भी इन्हें जवाब मांगने या कुछ सिद्ध करने को कहना देशभक्तों का खून ही खौलायेगा ।
अंत में.... मेरे इस लेख से यदि किसी देशभक्त (गेहूं के साथ घुन) को बुरा लगा हो तो क्षमा कर देना और गधों को बुरा लगे तो बुरा लगने के लिए ही तो लिखा है, लगे ।
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ReplyDeleteआज बाबा रामदेव के पीछे पड़े हैं सभी । यदि कोई इमानदारी के रास्ते पर चलकर , देश हित में कुछ करना चाहता है तो सारे असामाजिक तत्व इतना विचलित क्यूँ हो रहे हैं।क्या बाबा रामदेव ने कोई गुनाह किया है , घोटाला किया है , जो लोग उनके विरोध में सर उठा रहे हैं ?
लोग डरते हैं , सत्यवादियों से , इमानदार लोगों से , देश भक्तों से , अन्याय और अनाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों से । ऐसा इसलिए है क्यूंकि उनकी बईमानी से चल रही दूकान बंद जो हो जायेगी।लोग स्वयं तो कुछ करना नहीं चाहते , लेकिन अच्छे लोगों की राह में रोड़ा अटकाना , निंदा करना आदि उनका प्रिय शगल बन जाता है । ईर्ष्या का इलाज नहीं है ।
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