आश्चर्य होता है ... !
कि सूरज सर पर चमक रहा हो; और कोई उसे अनदेखा करे, वो भी आखें होते हुए...! दोपहर के चमकते सूर्य को अँधा भी बेशक देख नहीं पाता; पर उसकी गर्मी से तो वह भी बेहाल हो कर उसकी चरम स्थिति का अंदाजा लगा लेता है। पर जिन्होंने आँखों पर चश्मा लगा रखा हो वो भी लोहे का उनके लिए क्या कहें ?
कुछ ऐसा ही हमारे देश के वो लोग कर रहे हैं; जिन्हें "कुछ लोगों" ने बुद्धिजीवी मान रखा है। वो देश की समस्याओं पर अपने लेख लिखते हैं, समाचार चैनलों पर बहस-मुबाहसों में जाते हैं, और एक बड़े आन्दोलन की पैरवी भी करते हैं, देश के लोगों से जागने की अपेक्षा भी करते हैं, किसी सर्वमान्य नेता की आवश्यकता पर भी ध्यान आकर्षित करते हैं ।
पर ; जो "बहस" आम जनता के बीच शुरू हो चुकी है कि ‘अब तो अगर कुछ भला इस देश का हो सकता है तो "बाबा रामदेव" ही कर सकते हैं; और किसी से उम्मीद नहीं’, इस बात को नजरंदाज कर जाते हैं ।
जिस बड़े आन्दोलन और जनता से जागने की वह अपेक्षा करते हैं वह भी आरम्भ हो चुका है। और सर्वमान्य नेता के रूप में बाबा राम देव जी लोगों के दिलों में छा गए हैं। पर ये लोग पता नहीं क्यों उन्हें अनदेखा कर रहे हैं ? जबकि देश के मुख्य मुस्लिम व्यक्तित्व, मुख्य इसाई व्यक्तित्व, और अधिकतर सामाजिक लोग बाबाजी की आवाज में आवाज मिला रहे हैं।
तब मेरे मन से आवाज निकली कि ऋषियों के वंशज समझ रहे हैं- असुरों के वंशज भड़क रहे हैं।
शोध का विषय है
कि "एक खानदान के पूर्वजों" से लेकर आज तक के वंशजों द्वारा किया गया और किया जा रहा नुकसान, “कुछ लोगों (पत्रकारों)और कुछ” समाचार घरानों ( इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट) को इस गाँधी ( उस गाँधी नहीं ) खानदान के पैर दबाने में और तेल मालिश करने में धन के आलावा और क्या मिलता है ? जहाँ तक ये सोचते हैं कि सुरक्षा भी मिलती है तो सब जानते हैं कि कांग्रेस अपने ही लोगों को "दुनिया से कूच" करवाने के लिए बदनाम है ।
आज के समय में किसी भी बात को छुपाना बड़ा मुश्किल है; और पुराने "लिखित दस्तावेज" भी सब इनके "कुकर्मों" के मिल गए हैं; फिर भी इन लोगों को ऐसा क्यों लगता है कि लोग अभी भी मूर्ख बन जायेंगे ?
इन्हें एक "दुत्कारे हुए नेता" की पूर्वांचल स्वाभिमान यात्रा तो दिखती है; पर जो सम्पूर्ण देश में चल रही है "भारत स्वाभिमान यात्रा" नहीं दिखाई देती। ये क्रिकेट पर तो दिनभर चौबीसों घंटे अपनी रोटियां सेंक सकते हैं; पर जो देश की अस्मिता से जुड़ा मुद्दा है उस पर देश भक्तों की आँखों को तरसाते हैं। उलटे "उस तरह" के लोगों को अपने चैनलों पर दिखाते हैं जो "उस खानदान" के एक बच्चे की चरण वंदना में अपने "टूटे हुए पांव" और "रीढ़ की हड्डी का लचीलापन" भी भूल जाते हैं। जी हाँ मैं "बिट्टा" की बात कर रहा हूँ। ईटीवी उत्तर प्रदेश पर राहुल गाँधी की गन्दगी ( बुराईयाँ ) छुपा रहा था ।
इन्हें दिल्ली की रैली भी केवल एक नजर को दिखाई दी। फिर हम चैनल बदलते रहे । पर वो नहीं दिखाई दी । फिर ! अपने को देश का समाज का हितैसी बताते नहीं थकते।
तब मेरे मन से आवाज निकली कि; भ्रष्टाचार को संस्कार मत बनाओ- पिछलग्गुओ होश में आओ, होश में आओ- होश में आओ ।
देश द्रोह
कोई मुझे देशप्रेम की परिभाषा समझाए। क्या केवल सरकार की, नेताओं की भक्ति करना देशभक्ति है ? या अपने देश की संस्कृति-संस्कार, पूर्वजों का सम्मान, सभ्यता-साहित्य और यहाँ रहने वाले लोगों से प्रेम करे ये देशप्रेम है ?
इस द्रष्टि से मेरी नजर में वो सभी देशद्रोही हैं जो भारत स्वाभिमान के इस आन्दोलन को अनदेखा कर रहे हैं, वो अब अधिक दिन इस देश की जनता को नहीं बरगला सकते । अपनी पीठ भले ही थपथपा सकते हैं पर आने वाले समय में जयचंदों की श्रेणी में गिने जायेंगे।
तब मेरे मन से आवाज निकली;
कौन देशभक्त कौन गद्दार-जान गयी जनता हो गयी समझदार ।
विचारणीय...
ReplyDeleteबहुत सॉलिड लेख लिखा है आपने। आय एम विथ यू।
ReplyDeleteविचारों को झकझोरने वाली बात कही आपने। बधाई।
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
देश का सारा मीडिया असुरों के हाथो बिक गया लगता है.... जो भारत स्वाभिमान जैसी ऐतिहासिक क्रांति पर मौन है और बाबा के बारे में ५ सेकंड की भी खबर नहीं है...व्यर्थ ख़बरों पर पूरा पूरा दिन विशेषज्ञों के साथ चर्चा में लगे रहते हैं ...की किस अभिनेता ने कितने रुपये की कार अपनी बहन को दी कौन किसके साथ भाग गया इत्यादि
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