ब्लॉग जगत में आजकल सार्थक कोई मुद्दा नहीं उठाया जा रहा । इसका अर्थ यह नहीं है कि मुद्दे हैं ही नहीं ; मुद्दे तो हैं , पर उनकी पहचान नहीं हो पा रही । अपने बारे में अगर कहूँ; तो मेरे मन में जो मुद्दे आमजन की या हम ब्लोगरों की बहस का विषय बन सकते हैं वे सब स्वामी रामदेव जी महाराज ने “भारतस्वाभिमान आन्दोलन” के रूप में साधारण जनता के सामने में रख दिए हैं । अब हम तो जो भी मुद्दा उठाते हैं वह सीधे भारत स्वाभिमान आन्दोलन से जुड़ जाता है । इससे हमें तो खैर ख़ुशी मिलती है कि आज एक विश्व व्यापी पहचान के बाबाजी उन्हीं बातों को पूरे जोर शोर से उठा रहे हैं जिन्हें हम लड़कपन से सोच-सोच कर परेशान होते थे । और न केवल उठा रहे हैं अपितु साधारण जन के मन में इस तरह से बिठा रहे हैं कि;स्वतंत्रता के बाद पहली बार लोगों को समझ आने लगा है कि हमारे साथ धोखा हुआ है ।
और सच पूछो तो हुआ भी है । आखिर कुछ बदलना ही नहीं था तो फिर हमारे शहीदों ने कुर्बानियां दी क्यों ?
अब साधारण जनता की सोच को ब्लोगर किस तरह कंप्यूटर पर व्यक्त करे ? वह कोई साधारण जनता की तरह दाल रोटी की चिंता करने वाला निरीह प्राणी तो नहीं है । वह तो "कंप्यूटर धारक"(खाता-पीता) या अच्छी नौकरी प्राप्त करके दिल बहलाने को ब्लोगिंग करता है । उसकी क्या जिम्मेदारी ! कि वह “व्यवस्था परिवर्तन” के विषय में सोचे ।
जाहिर है मानवोचित गुण उसमे भी विद्यमान होंगे । जब इतने बड़े-बड़े पदों पर पहुंचे नेता जिन मुद्दों को लेकर ऊँचे स्थानों पर पहुँच कर उनसे अपना पल्ला झाड़ लेते हैं तो ब्लोगर तो केवल टिप्पणियों का लालची है । उसने चाहे कुछ भी सोच कर ब्लॉग बनाया हो, प्रोफाईल में चाहे डिग्रियां और उद्देश्य कितने ही बड़े हों पर बाद में सब भूल जाते हैं बस टिप्पणियां नजर आती हैं । खैर….. फिर भी ब्लोगिंग एक चस्का तो है ही ।
कुछ प्रश्न मुझे बार-बार खटकते हैं । हालाँकि ! बुद्धिजीवी प्रकार के लोग इनको समझाने का प्रयास भी करते हैं पर फिर भी प्रश्न अपनी जगह पर कायम रहते हैं । कारण ….? जिस सन्दर्भ में ये प्रश्न हैं उनकी केवल सैद्धान्तिकता ही सिद्ध कर पाते हैं व्यवहारिकता शायद उनकी है ही नहीं । इन प्रश्नों की संख्या तो अधिक है पर एक-एक कर अगर ये प्रश्न ब्लॉग पटल पर रखे जाएँ तो शायद मेरे जैसों का कुछ ज्ञानवर्धन कर जाएँ या उन प्रश्नों की सार्थकता, क्या उस परिप्रेक्ष में निरर्थक है ? जिस परिप्रेक्ष में मैं वो प्रश्न उठा रहा हूँ; ये पता लग जाये ।
मेरा प्रश्न है कि ........... अगर हमारे देश में राष्ट्रपति "प्रकृति" के पद न हों तो ! क्या देश नहीं चलेगा या देश को कोई हानि होगी ? मतलब ये है कि राष्ट्रपति पद की प्रासंगिकता केवल सैद्धांतिक ही है व्यावहारिक रूप से यह पद केवल खर्चीला है और कुछ नहीं ।
......rastrpati pd ki prasngita kewal saidhantik hi hai vywharik rup se yh pd kewal kharchila hai or kuch nahi aapse purnth sahmat hun lakin .....km se km un sajayapta mujrimo ke liye to rastrpati pd ek ummdid ki kiran hai jinhen adalat ne mrtyu dand ki saja suna di hai ...........anyth rastrpati bhi dehs ki dash or disha ko badalney main mahatvpurn bhumika nibha sakta hai udharan ke liye APJ Abdul kalam sahab....
ReplyDeletemaf kijiyega kalam sahab merey adarsh hain.
vicharniy post hetu abhaar