‘ पिछले दिनों मीडिया में एक समाचार देखा ; कि लौकी (घिया ) का जूस पीने से एक व्यक्ति जो वैज्ञानिक भी था कीमौत हो गयी ' । जाँच हुयी तो पता चला कि "लौकी जहरीली" थी । यहाँ तक कि चैनल वाले “शायद” सब्जी कीदुकान भी दिखा कर बता रहे थे कि उस दुकान की सभी लौकियाँ जहरीली पाई गयीं ।
कारण ! पता नहीं शायद लौकी को जल्द बड़ा करने के लिए किसी दवा का इंजेक्शन दिया जाता है, जिसकी अधिकमात्रा में जहर जैसा गुण होता है; उसके कारण ! या भगवान जाने कोई साजिश थी उसके कारण ।
बहरहाल जो भी हो ; इस तरह की घटनाएँ पहले भी बहुतायत में हुयीं हैं । जहरीली शराब से कई - कई सौ लोगमरते देखे हैं । या गलत दवा खाने से या इंजेक्शन से भी मरते देखे हैं । चिकित्सकों द्वारा अकसर लापरवाही से तोआये दिन मौतें होती रहती हैं । पर सब्जियों और फलों के जूस से अभी तक इस तरह की मौत देखी - सुनी नहींथी , जो अब सुनने में आ गयी । इसका कारण उनका जहरीला होना बताया गया , पिछले कुछ समय से उस दवाकी बड़ी मात्रा में धरपकड़ भी हो रही है ।
पत्रकारिता में, व्यवसाय के प्रति समर्पण देखना हो तो; “18 से 24 जुलाई 2010 का संडे नई दुनिया” साप्ताहिक पत्रके साथ मुफ्त पत्रिका में देखें । "आवरण कथा" इसके स्वास्थ्य संपादक के नाम से छपी है “ देसी दवा खतरा एजान”।
हमारे ये पत्रिका वाले अपने व्यवसाय (पत्रकारिता) के प्रति कितने ईमानदार हैं, इस लेख को देख कर पता लगता है। और कुछ सीखने को भी मिलता है । अगर आप भारतीय खानपान के, रहन - सहन के और भारतीयता के विरोधीहो तो; इन सबका विरोध करने के लिए आँख-कान बंद लो । आखिर विरोधी धर्म निभाना है । सही गलत क्यादेखना ?स्वामी रामदेव जी से जैसे इनका पिछले जन्मों का बैर हो । ये (विरोधी ) हर जन्म में बुराई से लड़ने वालों के विरोधमें खड़े हो जाते हैं । इस जन्म में तो स्वामी रामदेव जी ने अभी तक प्रत्यक्ष में किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा । हाँ ; परोक्ष में तो बहुतों का नुकसान हो रहा होगा । क्या पता आपका भी कुछ नुकसान हो रहा हो ; जो आप आँख मूंदकर विरोध करते हो ।
पर इस बार तो आप इन सब बुराईयों के प्रति समर्पित सम्मानित लोगों और उनकी कम्पनियों के लिए जैसेआसमान से कूदे कुम्भकर्ण की तरह हो । जो स्वयं तो स्वामी जी के विरुद्ध बोल नहीं पा रहे थे ; ये कहना चाहिए किसच के आगे घिग्घी बनी हुयी थी । आपने उनमे एक नई उम्मीद जगा दी; कि कोई है ! जो निरपट झूठ बोल सकताहै । केवल बोल ही नहीं सकता अपितु ; अपने जैसे ही कुछ औरों (चिकित्सकों) को भी इसी कार्य के लिए राजी करसकता है । आपने सिद्ध कर दिया कि आपमें कितनी सम्भावनाये हैं ; किसी भी सच को एकदम से नजरंदाज करनेकी ।
अब देखो न जिस लौकी के जूस को मरने वाला पिछले चार साल से सपत्नीक पी रहा था, इसका तो आपने जिक्रकिया, जिस दिन वह मरा वह जूस जहरीला था, आपने इसका भी जिक्र किया; पर जहर की बात इससे आगे नहींकरी ।
इससे आगे तो बस ! मन गए भाई आपको, आपने तो सदियों से चली आ रही खानपान की परम्पराओं को हीकटघरे में खड़ा करवा दिया जैसे वो सब भी बाबा जी ने ही बताया हो । जबकि; हमने जो सुना पिछले पांच साल सेबाबा जी कडवी लौकी का जूस या सब्जी दोनों के लिए मना करते हैं । और भी सावधानियां जो हो सकती हैं बताते हैं। पर विरोधी अगर सच बात को मान कर चले तो विरोध कैसे हो ? इसीलिए आपने अपने समर्थन में कुछ औरविरोधी भी राजी किये जो पेशे में शायद दवा कम्पनियों की सलाह को भगवान का कथन मानते हैं और समाज मेंभगवान् की तरह माने जाते हैं पर स्वयं ; भगवान और भारतीयता को नहीं मानते ।
वो चिकित्सक ; आखिर कब तक चुप बैठते या सब्र करते । कोई झोला छाप चिकित्सक तो हैं नहीं; कि सौ - पचासरुपये की हानि हो रही हो । ये तो पंचसितारा चिकित्सक हैं । एक बीमार भी अगर स्वामीजी के द्वारा बताये खान - पान व रहन - सहन की पारंपरिक विधियों से ठीक हो गया तो इनका तो लाखों का नुकसान हो जाता होगा । यहाँ तोलाखों के ठीक होने का सिलसिला चल पड़ा है ।
क्या होगा ? इस तरह तो इनके पंचसितारा अस्पतालों के मालिकों की भूखे रहने की नौबत हो जाएगी ? स्वयंइनका क्या होगा ? जो आदतें बन गयीं हैं सुख - सुविधाओं (अय्यासियों) की, दवा कम्पनियों के द्वारा दिए जा रहेमौज – मस्ती के पैकेजों की, वह सब कहाँ से मिलेगा ? भई; ये प्रतिनिधित्व करते हैं अपने पेशे से जुड़े पेशेवरलोगों का ।
अब किसी छोटे-मोटे व्यक्ति का विरोध करना हो तो एकाध से ही काम चल जाता, ये स्वामी जी तो विश्व प्रसिद्धहस्ती हैं । केवल भारत में ही इनके द्वारा “कुछ” (बुरे )लोग पीड़ित नहीं हैं विश्व में भी हैं । जो नहीं चाहते कि ये सोयेहुए लोगों को जगाएं। अब देखो न विश्व का सबसे बड़ा कैंसर का अस्पताल एम. डी. एंडरसन के वैज्ञानिक जैसे लोगभी जाग गए और स्वामी रामदेवजी के साथ मिल कर कैंसर पर शोध के लिए लालायित हैं ।
और हमारे इन चिकित्सकों को बाबाजी नीम हकीम से अलग कुछ नहीं लगे । पढ़ते ही ऐसा लगा जैसे बाबाजी सेइनका जन्म-जन्मान्तरों का बैर हो । शायद हो भी ; क्या पता । लगता है जैसे इहें बाबाजी के कामों से बहुत हीज्यादा आर्थिक हानि हुयी है ; या ! कुछ ज्यादा ही लाभ के लालच में ( दवा कम्पनियों द्वारा ) ये चिकित्सकप्रायोजित होंगे ।
इतनी बड़ी-बड़ी डिग्रियां ले रखी हैं तभी तो पंचसितारा चिकित्सक कहलाते हैं । पर फिर भी किसी को नहीं सूझाकि वह जूस जहरीला कैसे हुआ । कोई भोजन में फाईबर की बात कर रहा है तो कोई घरेलू नुस्खों की , कोई प्रमाणपर आधारित दवा की बात कर रहा है तो कोई ड्रग एक्ट की , किसी को जूस पीकर मरना मजाक भी लगा, कोई जूसऔर सूप को कैसे पीना चाहिए यह ही बताने लगा ।
बुरा न मानना; इनसे तो अपने झोला छाप ही अच्छे जो आम लोगों को सवेरे जल्दी उठने, कुछ प्राणायाम योगकरने और सही खान-पान के तरीके अपनाने को कहते हैं ।
धन्य होए ऐसे पत्रकार – पत्रकारिता – पत्रिकाएं और चिकित्सक ।
मैंने इस पत्रिका के लिए "प्रतिक्रिया" इमेल द्वारा भेजी थी जिसके जवाब में चेतावनी संदेश आया कि दोबारा न भेजना । मेल यह है :
संडे नई दुनिया पत्रिका के 18 से 24 जुलाई के अंक में आवरण कथा "देसी दवा खतरा- ए-जान" पढ़ कर लगा; ' कि पूरी रिपोर्ट स्वास्थ्य संपादक ने पूर्वाग्रह से ग्रसित मनोस्थिति में लिखी है ' |
इस लेख को पढ़ कर लगा कि लेखक और कुछ चिकित्सक केवल स्वामी रामदेव के विरोध के लिए कमर कसे हुए हैं और कुछ नहीं | वरना ; जिस लौकी के जूस पीने से मौत हुयी है वह जहरीली थी, " इस बात को उस दिन सभी समाचारों में दिखाया भी गया था और देश की जनता ने देखा भी था, उस दुकान में अन्य लौकियाँ भी जहरीली पाई गयीं , इन्होने भी देखा होगा , " पर इन विरोधी मानसिकता वालों ने जहर को मुद्दा न बनाकर बाबा रामदेव और सदियों से चली आ रही भारतीय खानपान की परम्पराओं को कटघरे में घेरने का असफल प्रयास किया |
वरना ; जिस लौकी को भारतीय समाज जन्म - जन्मान्तरों से विभिन्न तरीकों से खाता आ रहा है,और मरने वाला भी पिछले चार साल से पत्नी के साथ लौकी का ही जूस पी रहा था वह जिस कारण से मरा है वह लौकी का जहरीला होना है पर इन्होने उस जहर की कहीं पर भी एक लाईन में चर्चा नहीं की | बड़े-बड़े विशेषज्ञों में से किसी को जूस पीकर मरना हास्यास्पद भी लगा पर जहर की बात फिर भी नहीं सूझी |
आज कितने लोग उन एलोपैथी की दवाओं के दुष्प्रभाव से मर रहे हैं | जिन्हें प्रमाण पर आधारित दवाएं कहा जाता है | जिनका परिक्षण पहले जानवरों पर किया जाता है, जिन्हें मधुमेह है या नहीं का पता नहीं होता | फिर ; मानव रोगियों को दिया जाता है, पर "ये" जानते हुए भी नहीं बताएँगे , पर हमने भी शोधों में पढ़ा है कि उन दवाओं के दुष्प्रभावों से मरीज अपनी आँखें , किडनी, आंतें ,दिल , दिमाग सब बीमार बना लेता है | एक दिन दवा खाते - खाते उस दवा को भी पचाने की शक्ति खोकर काल कवलित हो जाता है | ऐसे लाखों में नहीं आज तक करोड़ों मामले हो गए होंगे |
मेरी नजर में इन्होने वही कार्य किया जो; विरोधियों को ही करना चाहिए | ताकि वह अपनी पहचान बना सकें | स्वामी रामदेव जी के अभियान को इससे बल ही मिलेगा | जैसे ; बिना दो तारों के विद्युत् बल्ब नहीं जलता, वैसे ही बिना विरोधी के; सही काम करने वाले को भी सफलता मिलने में समय अधिक लगता है |
आपने बिल्कुल सत्य कहा है। आप हरिभूमि में प्रकाशित मेरा व्यंग्य लौकी कातिल भई और ज्ञान दर्पण जाने अनजाने दूषित होते खाद्य पदार्थ ब्लॉग में प्रकाशित लेख देखिए। सच्चाई यही है और छिप नहीं सकती।
ReplyDeleteआपसे पूरी तरह से सहमत हूँ ,इन कायरों में स्वामी जी से सीधी टक्कर लेने की हिम्मत नहीं है ,परदे के पीछे से छुपकर पीठ पर ही वार करते हैं ये
ReplyDelete@शंकर जी
ReplyDeleteमैं आपको हम सबके साझा ब्लॉग का member और follower बनने के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ,
http://blog-parliament.blogspot.com/
कृपया इस ब्लॉग का member व् follower बनने से पहले इस ब्लॉग की सबसे पहली पोस्ट को ज़रूर पढ़ें
धन्यवाद
महक
@शंकर जी
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महक
इस तरह के पत्रकारिता पे तरस आता है ,ये पत्रकारिता है या दलाली ...
ReplyDeleteइस धंदा दारी पत्रकारिता की पोल खोल के रख दी।
ReplyDeleteऐसी ही जागरूकता फ़ैलाते रहिए।
१९५० से सदी के अंत तक शाकाहार को भी बदनाम करने की पुरजोर कोशिशें जारी थीं. और जब करोड़ो भारतीय 'स्वस्थ्य' की चिंता के कारण मांसाहारी या अंडाहारी बन गए, तो आज खुद अमेरिका और यूरोप के शोध संस्थान मांसाहार छोड़ने की सलाह दे रहे हैं.
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ब्लॉग का फॉण्ट साइज़ बढ़ा लें. छोटे फॉण्ट साइज़ के कारण अधिकतर लोग चाहते हुए भी यह आलेख नहीं पढ़ पाएंगे.
पूर्ण सत्य प्रस्तुत करने से सनसनी कैसे फैलेगी ??? मीडिया को तो सनसनी फैलाना है ।
ReplyDeleteबाबा रामदेव जी के मार्गदर्शन मैं योग करके संपुर्ण देश मैं एक जो योग क्रांति आई है उससे ग्लैक्सो से लेकर पैप्सी तक का व्यापार प्रभावित हुआ है.....औऱ ये भाङे के मीडियाई टट्टू जो दिखा रहे हैं उनसे देश की जनता भ्रमित होने वाली नहीं है
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही विश्लेषण किया है. योग और पारंपरिक चिकत्सा से कई डाक्टर भी घबराए हुए है.
ReplyDeleteफुलारा जी, रामदेव जी की ताकत से लोग बौखला गये हैं....
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