मुसलमानो माफ़ कर दो; करते क्यों नहीं ? क्या चाहते हो; अब “नेताजी” क्या नाक रगड़ कर माफ़ी मांगें ? क्यों गिरे हुए को और गिरा रहे हो ? बेचारे ! अपनी करनी पर शर्मिंदा हैं माफ़ी मांग रहे हैं ; क्या ये कम है ? परदे के पीछे तो जितनी बार कहोगे, 'थूका भी चाट लेंगे' पर सबके सामने तो मत चटवाओ। पूरे भारत में अकेले नेता हैं; (उत्तरप्रदेश में) , “मुसलमानों के”, इन्हें माफ़ न किया तो किसे वोट दोगे । कमसेकम माफ़ी तो मांग रहे हैं ; वरना ये अकड़ में बिलकुल "सूखा लक्कड़" हैं । याद नहीं ? जब इन्हें मौलाना तक की उपाधि दे दी थी लोगों ने; क्योंकि इन्होने राम का नाम लेने पर ही पाबन्दी लगा दी थी (ऐसा मैंने सुना है)। ये तुम्हारे लिए सब कुछ सुनने-करने–सहने को तैयार हैं। वरना कोई (खानदानी) कैसे अपनी पहचान किसी और से मान सकता है । गोलियां और बोलियाँ चल जाती हैं, इसे तो गाली समझा जाता है।
पर इन्होने सुना और सब्र करा, केवल तुम्हारे लिए । यकीन मानो ये तो इस्लाम कबूल कर लेते पर क्या करें इनका कुनबा कुछ बड़ा हो गया; इनका अकेले आने को मन नहीं करता। और साथ कोई आएगा नहीं। जो साथ आने वाला (ठाकुर साब) था; उसे इन्होने अपने हाथों से धक्के दे कर निकल दिया। करें बेटे – बहू और भाईयों का मोह होता ही ऐसा है । पर तुम्हारे लिए नहीं; तुम्हारे लिए तो ये अपने को भी दांव पर लगा सकते हैं, जितना कहो उतना नीचे गिर सकते हैं। अपना क्या..... ये तुम्हारा थूका हुआ चाट सकते हैं। ये सब तो तुमने पहले भी आजमाया हुआ है। इनकी बराबरी करने की कोशिश कुछ कांग्रेसी नेताओं ने करी पर कर न सके। उन्हें तुमने भी घास नहीं डाली।
अब तुम्हारी बारी है इन्हें माफ़ कर दो । ‘ कर दो; मेरे भाईयो कर दो’, तुम्हारा मजहब भी यही सिखाता है , तुम्हारे मुल्ला – मौलवी भी यही कहते हैं,कि मुआफी मांगने वालों को मुआफी बख्श देनी चाहिए। जब एक काफ़िर केवल नाम का काफ़िर हो और पूरा मसलमान हो तो फिर कैसा हिचकना ? फिर तुम्हारे पास कोई और चारा भी तो नहीं चरने के लिए । इन पर ही भरोसा करना पड़ेगा; मज़बूरी है। जैसे “कांग्रेस की मज़बूरी है गाँधी जी जरुरी हैं” ऐसे ही “मुसलमानों की मज़बूरी है ….( नेता जी) जरुरी हैं”।
वैसे अभी मजे ले सकते हो। चुनाव अभी दूर हैं तब तक माफ़ी मनवाते रहो। नचनिया की तरह नाच नचाते रहो । चुनाव के समय माफ़ करना; अभी कोई जल्दी नहीं । थुकवाते रहो चटवाते रहो, आगे के लिए और पक्के हो जायेंगे। आईंदा ऐसी गलती के लिए सौ बार तौबा कबुलवाओ, ताकि किसी धकियाये हुए हिन्दू नेता को अपने साथ लेने की जुर्रत न करें। पर एक बात का ध्यान रखना; कि इतना नीचे भी न झुकवाना कि उठ ही न सकें। अपनी ही नजरों में गिर जाएँ । दूसरे का गिराया तो उठ सकता है पर अपनी नजर में गिरा हुआ उठना जरा कठिन होता है ।
GAJAB LIKHA SHANKARJI<>>>
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keep Writing..
Rajendra
Ati Sundar. Par aajkal ke neta kurshi ke liye apne maa - baap, beta beti aur khud ko bechane ke liye tatpar rahte hain yah satya hai.
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने। ये ऐसे नेता हैं कि कितना भी गिर जायँ, मौके आने पर तुरन्त कपड़े झाड़ कर खड़े हो जायेंगे।
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