एक बार फिर कांग्रेस अपना वास्तविक चेहरा दिखने से नहीं रोक पाई । ऐसा सैकड़ों बार हो चुका है; पर क्योंकि वह (कु)संस्कार बन चुका है और देश की अधिकतर आबादी इस “कांग्रेस-कल्चर” में ढल चुकी है इसलिए किसी को भी सही-गलत का भान नहीं होता ।
वरना ; कांग्रेस तो अपने जन्म से ही अपना असली चेहरा छुपाने का संस्कार लेकर पली-बढ़ी। इसे बनाया ही इसलिए गया था एक अंग्रेज द्वारा ; कि दिखने में ये भारतीय लगे और स्वार्थ सिद्ध हो अंग्रेजों का । आज तक वही हो रहा है ; पहले इसके पास दिखाने के लिए गांधीजी का चेहरा था; स्वार्थ सिद्ध करा नेहरू जी ने, अब वे नहीं रहे तो इन्होंने उनके चरित्र गढ़ लिए उनके नाम से ही फायदा उठाने का तरीका इजाद कर लिया ; पर स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं थरूर व अन्य सभी इसके नेता । ये इतने शातिर हो गए हैं अपने स्वार्थों के लिए, कि नया चेहरा (दिखाने के लिए ) महिमामंडित करने के लिए और जनता में उसका प्रभाव बनाने के लिए झुकने में कहीं रीढ़ की हड्डी आड़े न आये इसलिए अपनी रीढ़ की हड्डी को ही निष्क्रिय कर देते हैं ताकि हमेशा झुकी ही रहे। अवरोध न बने ।
और इनका ये कल्चर संस्कार बन चुका है। देश के नागरिकों को अब ये अटपटा नहीं लगता ।
थरूर तो "बेचारा" इसलिए है, कि कांग्रेस में जितने भी ; और कांग्रेस में ही क्यों सभी पार्टियों(क्योंकि सभी भी कमोबेश वही कल्चर छ गया है) में जितने भी हैं कोई भी ऐसा है जो अपने पद और प्रभाव का दुरूपयोग करके लाभ उठाने की प्रवृत्ति न रखता हो ? नीचे ग्राम स्तर से लेकर ऊपर तक कोई भी ऐसा है ? शायद नहीं । और ये लाभ; किसी गरीब को नहीं; किसी लाचार को नहीं बल्कि उनको पहुँचाया जाता है जो अथाह दौलत के मालिक हैं। गरीब पर जो अहसान किया जाता है; वह उसके लिए लाभ नहीं अपितु उसकी आवश्यकता होती है। जिसकी एवज में ये उसे जीवन भर के लिए वोट देने को अपना गुलाम बना लेते हैं ।
तो क्या थरूर बेचारा नहीं है कि वह असली चेहरा छुपाने की कला नहीं सीख पाया या उसका साथ बड़े नेताओं द्वारा नहीं दिया गया। जिस कारण वह देश की जनता को खुली आँखों जिन्दा मक्खी निगलवाने की कोशिश कर रहा था क्योंकि उसने कांग्रेस की ट्रेनिंग नहीं ली थी ; इसलिए ।
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