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Thursday, July 8, 2010

क्या गुलामी हमारे जींस में है

जिस तरह से आजकल समाचार जगत, अभी केवल क्वींस बैटन के भारत में भ्रमण पर ख़ुशी से बौराया हुआ है ; तब क्या होगा जब प्रिंस चार्ल्स खेलों के दौरान भारत आएगा ? शायद हमारे पत्रकार और उनके मालिक अपनी रीढ़ को तब तक लचीला बना लें जिससे उस समय बार-बार झुकने में शर्मिंदा न होना पड़े | 
इसी सन्दर्भ में मुझे एक इमेल (भारत स्वाभिमान ट्रस्ट "स्वामी रामदेव जी द्वारा संचालित" के एक सदस्य द्वारा)   मिला जो मैं अपने ब्लॉग पर दे रहा हूँ | कविता नागार्जुन की है, कितना जोरदार थप्पड़ है कृपया जो पढ़ें अवश्य बताएं |

ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय तो कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान अक्टूबर में भारत नहीं आ रही हैं...लेकिन उनके बेटे प्रिंस चार्ल्स उनकी नुमाइंदगी करेंगे...रानी नहीं आ रही तो क्या कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए उनकी बेटन तो है...25 जून को वाघा बार्डर से देश में प्रवेश के बाद बेटन को देश के कोने-कोने में ले जाया जा रहा है...ये बेटन 30 सितंबर को दिल्ली पहुंचेगी...आज से करीब 49 साल पहले 1961 में भी यहीं रानी एलिजाबेथ द्वितीय पाकिस्तान के साथ भारत के दौरे पर आई थीं...लेकिन उस वक्त फक्कड़ कवि नागार्जुन ने कविता के माध्यम से रानी के सामने बिछे जाने की भारतीयों की प्रवृत्ति पर जो तंज कसा था, वो आज के हालात में भी पूरी तरह सटीक बैठता है...
नागार्जुन
जन्म: 1911, निधन: 5 नवम्बर 1998

आओ रानी...
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी,
यही हुई है राय जवाहरलाल की,
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की,
यही हुई है राय जवाहरलाल की,
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !
आओ शाही बैण्ड बजायें,
आओ बन्दनवार सजायें,
खुशियों में डूबे उतरायें,
आओ तुमको सैर करायें--
उटकमंड की, शिमला-नैनीताल की,
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !
तुम मुस्कान लुटाती आओ,
तुम वरदान लुटाती जाओ,
आओ जी चांदी के पथ पर,
आओ जी कंचन के रथ पर,
नज़र बिछी है, एक-एक दिक्पाल की,
छ्टा दिखाओ गति की लय की ताल की,
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !
सैनिक तुम्हें सलामी देंगे,
लोग-बाग बलि-बलि जायेंगे,
दॄग-दॄग में खुशियां छ्लकेंगी,
ओसों में दूबें झलकेंगी.
प्रणति मिलेगी नये राष्ट्र के भाल की,
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !
बेबस-बेसुध, सूखे-रुखडे़,
हम ठहरे तिनकों के टुकडे़,
टहनी हो तुम भारी-भरकम डाल की,
खोज खबर तो लो अपने भक्तों के खास महाल की !
लो कपूर की लपट,
आरती लो सोने की थाल की,
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !
भूखी भारत-माता के सूखे हाथों को चूम लो,
प्रेसिडेन्ट की लंच-डिनर में स्वाद बदल लो, झूम लो,
पद्म-भूषणों, भारत-रत्नों से उनके उद्गार लो,
पार्लमेण्ट के प्रतिनिधियों से आदर लो, सत्कार लो,
मिनिस्टरों से शेकहैण्ड लो, जनता से जयकार लो,
दायें-बायें खडे हज़ारी आफ़िसरों से प्यार लो,
धनकुबेर उत्सुक दीखेंगे उनके ज़रा दुलार लो,
होंठों को कम्पित कर लो, रह-रह के कनखी मार लो,
बिजली की यह दीपमालिका फिर-फिर इसे निहार लो,
यह तो नयी नयी दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो,
एक बात कह दूं मलका, थोडी-सी लाज उधार लो,
बापू को मत छेडो, अपने पुरखों से उपहार लो,
जय ब्रिटेन की जय हो इस कलिकाल की !
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की,
यही हुई है राय जवाहरलाल की,
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !

1 comment:

  1. बाबा की यह कविता अभी ४/६ दिन पहले ही पढ़ी..जबरदस्त!

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